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पउमचरियं
[६७.१६अह ते बिभीसणसुओ, सुभूसणो भणइ उज्झिउं सकं । पविसह लकानयरिं, लोलह जुवईउ मोत्तणं ॥ १६ ॥ ते एव भणियमेत्ता, सकवाडं भञ्जिऊण वरदारं । लङ्कापुरी पविट्टा, पवयभडा चञ्चला चण्डा ॥ १७ ॥ सोऊण दुन्दुभिरवं, ताण पविट्ठाण जणवओ खुभिओ। किं किं ? ति उल्लवन्तो, भयविहलविसंटुओ नाओ ॥ १८ ॥ संपत्तं पवयबलं, हा ताय ! महाभयं समुप्पन्न । पविससु घरं तुरन्तो, मा एत्थ तुमं विवाइहिसि ॥ १९ ॥ हा भद्द ! परित्तायह,भाउय ! मा जाह लहु नियत्तेहि । अवि धाह किं न पेच्छह, परबलवित्तासिय नयरिं ॥ २० ॥ नायरजणेण एवं, गाढं हाहारवं करेन्तेणं । खुब्भइ दसाणणहर, अन्नोन्नं लङयन्तेणं ॥ २१ ॥ काएत्थ गलियरयणा, भउद्या तुडियमेहलकलावा । हत्थावलम्बियकरा, अन्ना पुण वच्चइ तुरन्ती ॥ २२ ॥ अन्ना भएण विलया, गरुयनियम्बा सणेण तुरन्ती । हंसि व पउमसण्डे, कह कह वि पयं परिदृवइ ॥ २३ ॥ पीणुन्नयथणजुयला, अइगरुयपरिस्समाउला बाला । अह दारुणे वि य भए, वच्चइ लीलाएँ रच्छासु ॥ २४ ॥ अन्नाएँ गलइ हारो, अन्नाए कडयकुण्डलाहरणं । अन्नाएँ उत्तरिजं, विवडियवडियं न विन्नायं ॥ २५ ॥ एवं तु नायरजणे, भयविहलविसंटुले मओ राया । सन्नज्झिऊण सबलो, रावणभवणं समल्लीणो ॥ २६ ।। जुझं समुबहन्तो, तेहि समं रावणस्स महिलाए । मन्दोयरीऍ रुद्धो, जिणवरसमयं सरन्तीए ॥ २७ ॥ एयन्तरम्मि द९, नयरजणं भयसमाउलं देवा । सन्तीहराहिवासी, वच्छल्लं उज्जया काउं ॥ २८ ॥ सन्तीहराउ सहसा, उप्पइया नह्यलं महाघोरा । दाढाकरालवयणा, निदाहरविसन्निहा कूरा ॥ २९ ॥ आसा हवन्ति हत्थी, सीहा वग्धा य दारुणा सप्पा । मेहा य अग्गिपवणा, होन्ति पुणो पबयसरिच्छा ॥ ३० ॥
अह ते घोरायारे, देवे दट्टण वाणराणीयं । भग्गं भउदुयमणं, संपेल्लोपेल्ल कुणमाणं ॥ ३१ ॥ सुभूषण ने उन्हें कहा कि शंकाका त्याग करके लंकानगरीमें तुम प्रवेश करो और युवतियों को छोड़कर उन्हें ललचाओ। (१६) इस प्रकार कहने पर किवाड़से युक्त उत्तम दरवाजेको तोड़कर चंचल और प्रचण्ड बानर-सुभटोंने लंकापुरीमें प्रवेश किया। (१७)
प्रविष्ट उनकी दुन्दुभिकी ध्वनि सुनकर लोग क्षुब्ध हो गये। क्या है ? क्या है ?'-ऐसा कहते हुए वे भयसे विह्वल एवं व्याकुल हो गये । (१८) हा तात! वानर सेना आ पहुँची है। बड़ा भारी डर पैदा हुआ है। जल्दी ही घरमें प्रवेश करो, अन्यथा तुम यहाँ मारे जाओगे। (१६) हा भद्र ! बचाओ। भाई ! तुम मत जात्रो। जल्दी ही लौट आओ। अरे, दौड़ो। शत्रुकी सेनासे वित्रासित नगरीको क्या तुम नहीं देखते ? (२०) इस प्रकार हाहारव करते हुए तथा एक-दूसरे को लाँघते हुए नगरजनों के कारण रावणका महल भी क्षुब्ध हो गया। (२०) भयसे पलायन करनेवाली किसी स्त्रीकी मेखलाके टूट जानेसे रत्न बिखर गये थे, तो कोई हाथसे हाथक्षा अवलम्बन देकर जल्दी जल्दी जा रही थी । (२२) भयसे विकल हो चिल्लाती हुई कोई भारी नितम्बवाली स्त्री हड़बड़ी में किसी तरह, पद्मखण्डमें हंसीकी भाँति, पर रखती थी। (२३) मोटे और ऊँचे स्तनोंवाली तथा बहुत भारी परिश्रमसे आकुल कोई स्त्री दारुण भय उपस्थित होने पर भी मुहल्ले से धीरे-धीरे लीलापूर्वक जाती थी। (२४) दूसरी किसीका हार गिर पड़ा, किसीके कड़े, कुण्डल तथा आभरण गिर पड़े, किसीका उत्तरीय गिर पड़ा, फिर भी किसीको मालूम ही न हो पाया । (२५)
इस प्रकार भयसे विह्वल एवं क्षुब्ध नगरजनोंको देखकर मय राजा तैयार होकर सेनाके साथ रावणके महलके पास आया । (२६) उनके साथ युद्ध करते हुए उसको जिनवरके सिद्धान्तका स्मरण करनेवाली रावणकी पत्नी मन्दोदरीने रोका । (२७) इस वीच नगरजनोंको भयसे व्याकुल देखकर भगवान् शान्तिनाथके मन्दिरके अधिवासी देव धर्मका अनुराग दिखानेके लिए तैयार हुए। (२८) शान्तिनाथके मन्दिरमेंसे अतिभयंकर. विकराल दाँतोंसे युक्त वदनवाले, ग्रीष्मकालीन सूर्य जैसे तेजस्वी तथा क्रूर वे आकाशमें उड़े। (२६) उन्होंने घोड़े, हाथी, सिंह, बाघ, भयंकर सर्प, मेघ, आग बरसानेवाले पवन तथा पर्वत जैसा रूप धारण किया। (३०) उन भयंकर आकारवाले देवोंको देखकर भयसे मनमें परेशान वानरसेना एक-दूसरेको पेरती हुई भाग खड़ी हुई। (३१) शान्तिनाथके मन्दिरमें रहनेवाले देवोंने वानर सेनाको विध्वस्त किया है यह
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