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पउमचरियं
आवडिए संगामे, संपइ किं तुम्ह किं व रामस्स । सुणिहामि असोभणयं वत्तं तेणं मए रुण्णं ॥ १९ ॥ सौ तेहि वि पडिभणिया, अम्मो ! बल-केसवाण अइरेणं । सुणिहिसि माणविभङ्गं, समरे अम्हेहि कीरन्तं ॥२०॥ सीया भणइ कुमारे, न य जुत्तं एरिसं ववसिउं जे । नमियबो चेव गुरू हवइह लोए ठिई एसा ॥ २१ ॥ ते एव जंपमाणि, संथावेऊण अत्तणो जणणि । दोण्णि वि मज्जियनिमिया, आहरणविभूसियसरीरा ॥ २२ ॥ सिद्धाण नमोकारं, काऊणं मत्तगयवरारूढा । तो निग्गया कुमारा, बलसहिया कोसलाभिमुहं ॥ २३ ॥ दस नोहसहस्सा खलु, गहियकुहाडा बलस्स पुरहुत्ता । छिन्नन्ता तरुनिवहं वञ्चन्ति तओ तहिं सुहडा ॥ २४॥ ताण अणुमग्गओ पुण, खर- करह - बइल - महिसमाईया । वच्चन्ति रयण-कञ्चण चेलियबहुधन्नभरभरिया || २५ || नाणा उह गहियकरा, नाणानेवत्थउज्जला नोहा । वच्चन्ति य दढदप्पा, चञ्चलचंमरा वरतुरंगा ॥ २६ ॥ ताणं अणुमग्गेणं, मत्तगया बहलधाउविच्छुरिया । वञ्चन्ति रहवरा पुण, कयसोहा ऊसियधओहा ॥ तम्बोल- पुप्फ-चन्दण-कुङ्कुम - कप्पूर - चेलियाईयं । सवं पि सुप्पभूयं, अत्थि कुमाराण खन्धारे ॥ एवं ते बलसहिया, संपत्ता कोसलापुरीविसयं । पुण्डुच्छु- सालिपउरं, काणण-वण-वप्पर मणिज्जं ॥ नोयणमेतेसु पयाणएसु, एवं कमेण संपत्ता । कोसलपुरीऍ नियडे, नदीऍ आवासिया वीरो ॥ दट्टण तं कुमारा, पवयसिहरोहतुङ्गपायारं । पुच्छन्ति वज्जनङ्घ, मामय ! किं दीसए एयं १ ॥ तो भइ वज्जनो, साएया पुरवरी हवइ एसा । जत्थऽच्छर तुम्ह पिया, पउमो लच्छीहरसमग्गो ॥ ३२ ॥ सुणिऊण समासन्ने, हलहर - नारायणा पराणीयं । जंपन्ति कस्स लोए, संपइ मरणं समासन्नं ॥ ३३ ॥ अहवा वि किं व भण्णइ ?, सो अप्पाऊ न एत्थ संदेहो । जो एइ अम्ह पासं, कयन्तअवलोइओ पुरिसो ॥ ३४ ॥
३१ ॥
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मैं सूनूगी । इसीसे मैं रोती थी । (१६) उन्होंने उसे कहा कि, माताजी! हमारे द्वारा युद्धमें किए गए बलदेव और केशवके मानभंगके बारेमें तुम शीघ्र ही सुनोगी । (२०) सीताने कुमारोंसे कहा कि तुम्हारे लिए ऐसा करना योग्य नहीं है, क्योंकि गुरुजन वन्दन करने योग्य होते हैं। लोकमें यही स्थिति है । (२१) इस तरह कहती हुई अपनी माताको सान्त्वना देकर उन दोनोंने स्नान-भोजन किया तथा शरीर को आभूषणों से अलंकृत किया । (२२)
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२७ ॥
२८ ॥ २९ ॥
३० ॥
सिद्धों को नमस्कार करके मत्त हाथी पर आरूढ़ वे कुमार सेना के साथ साकेतकी ओर निकल पड़े । (२३) दस हज़ार योद्धा हाथमें कुल्हाड़ी लेकर सेनाके आगे जाकर पेड़ों को काटते थे । फिर वहाँ सुभट जाते थे । (२४) फिर उनके पीछे पीछे रत्न, सोना, वस्त्र तथा अनेक तरह के धान्यके भारसे लदे हुए गवे, ऊँट, बैल, भैंसे आदि जाते थे । (२५) उनके पीछे नानाप्रकार के आयुध हाथमें धारण किए हुए, नाना-भाँतिके वस्त्रोंसे उज्ज्वल तथा अत्यन्त दर्पयुक्त, योद्धा और चंचल चमरवाले घोड़े जाते थे । २६) उनके पीछे पीछे गेरू आदि धातुसे अत्यन्त चित्रित मत्त हाथी तथा सजाए गए और ऊँची ध्वजाओंवाले रथ जाते थे । ( २७ कुमारोंकी छावनी में ताम्बूल, पुष्प, चन्दन, कुंकुम, कर्पूर, वस्त्र आदि सब कुछ बहुतायत से था । (२८) इस तरह सेना के साथ वे सफेद ऊख और धानसे भरे हुए तथा बारा-बगीचों और किलोंसे रमणीय साकेतपुरीके देश में श्रा पहुँचे । (२६) योजनमात्र प्रयाण करते हुए वे वीर क्रमशः साकेतपुरीके समीप आ पहुँचे और नदी पर डेरा डाला । (३०) पर्वत शिखरके समान उत्तुङ्ग प्राकारवाले उस नगरको देखकर कुमारोंने वज्रघसे पूँछा कि, मामा ! यह क्या दीखता है ! (३१) तब जंघने कहा कि यह साकेत नगरी है जहाँ तुम्हारे पिता राम लक्ष्मणके साथ रहते हैं । (३२)
समीप में आई हुई शत्रुकी सेनाके बारेमें सुनकर राम और लक्ष्मण ने कहा कि लोकमें किसकी मृत्यु अब नजदीक आई है । (३३) अथवा क्या कहा जाय ! वह अल्पायु है इसमें सन्देह नहीं । जो पुरुष हमारे पास आता है वह यमके द्वारा देखा गया है । (३४) तब पास में बैठे हुए विराधितसे रामने सहसा कहा कि सिंह और गरुड़ की ध्वजा से युक्त १. सा तेहिं प० प्रत्य० । २. तरगहणं, ब० - प्रत्य० । ३. ० सयाईया -- प्रत्य• । ५. कणचमया ऊ० प्रत्य०। ६. धीरा - प्रत्य० । ७. ०ङ्गसंघायं मु० ।
४.
• चदला व० मु० |
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