Book Title: Paumchariyam Part 2
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 403
________________ १५८ मुद्रित पाठ ३८ तुमने पिंजर को ३९ तुम्हारा ५ कितने ५ पेड़ों... बहुत बार ८ कितने को... तप्त ८ तौबा... पिलाया ३२ जो... प्राप्त ३७ वह... राम ३७ भरहक्षेत्र में भाया ४२ वे... तथा ४२ के... सुमित्रा ५३ वटा से युक्त नोट : पठितव्य पाठ तुमने स्नेहपिंजर को तुम Jain Education International पउमचरिय उद्देश - ११८ कितनेक पेड़ों से लगे हुए थे और उनको बहुत बार कितने को तट ताँबे जैसा पानी पिलाया जो अनेक करोड़ों भव में वेदना प्राप्त करते हुए भी प्राप्त वह राम ७९ पद्मपुर में... उसी ८१ भावों की कथा ८३ वह ८३ भामण्डल देव को ८६ पन्द्रह हजार ९३ भाव से सुनता है ९५ धनार्थी ... धन ९८ पुण्य के १०८ और... करो । ११० देवलोगों को ये इस संशोधित अनुवाद में स्वीकरणीय पाठान्तरों का अनुवाद भी शामिल है । ***.**** मुद्रित पाठ ३९ केवलज्ञानातिशय ३९ है । भरतक्षेत्र में उतरने लगा । वे दोनों जनक और कनक तथा कैकेई और सुन्दर कान्तिवाली सुमित्रा छा से युक्त ५४ हुआ है । ६६ श्री दास ७४ वे... करेंगे । For Private & Personal Use Only पठितव्य पाठ केवलज्ञानातिशयप्राप्त हो । हुआ । ऋषिदास वह देव आदि कई भव प्राप्त करेगा । पद्मपुर में लक्ष्मण चक्रधर होकर उसी भवों का वर्णन वह देव भामण्डल को सत्रह हजार भाव से पढ़ता है और सुनता है धनार्थी महा विपुल धन शुभ और दूसरे की स्त्री से दूर रहो । देवलोग ये www.jainelibrary.org

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