Book Title: Paumchariyam Part 2
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 401
________________ पउमचरिय मुद्रित पाठ १५ बनाकर...में २९ किलों से ६ सैकड़ों २. विकसित ३५ विपुल पुण्यवाली ३५ टन उदरस्थ २७ क्योंकि...सकता । ३. भकार्य १८ सर्वगुप्तने...दे दी। ६. नरक योमियां है। ६९ नरकावास )होते हैं। ७६ तथा...वे ११५ भोजनांग, वस्त्रांग ११५ दियांग पठितव्य पाठ मुद्रित पाठ पठितव्य पाठ उद्देश--९९ बनाकर उस साधु पुरुष के द्वारा मैं बेतों से ३६ ऐसा...कहकर 'इसी प्रकार हो' ऐसा कहकर उद्देश--१०० x निकाल दो। १० जानकर सुनकर विगलित १९ सुभटों से श्रेष्ठ रथों से x निकाल दो। उन पुण्यशाली उदरस्थ १९ वे...चल वे हलधर, चक्रधर तथा कुमार चल उद्देश--१०१ क्योंकि मैं तुम निर्लज्ज को इस रूप में नहीं देख सकता । उद्देश-१०२ भसभ्य कार्य १२७ सागरोपम की पल्य की सर्वगुप्तने दीक्षा देकर भार्याओं को १५ उनके भी...विजय उनके (आगे) चारों दिशाओं में पूर्व सौंप दी। से प्रारंभ करके अहमिन्द्रों के विजय नरकावास हैं । १४६ तथा...जानो। तथा (इनके बीच में ऊपर) सुन्दर नरकावास) तथा प्रस्तर होते हैं। विमान सर्वार्थसिद्ध जानो । (ये पाँच तथा दुःख से कराहते हुए और अंगों अनुत्तर विमान भी कहलाते हैं)। को मरोड़ते हुए वे भोजनांग, भाजनांग, वस्त्रांग १७९ जिससे जीव जिससे भव्य जीव -दीपिकांग १९६ भावति भावित उद्देश-१०३ पनदत्त से उसे छीन करके २० (भनार्य पुरुष) (हरिण) दुर्जनों द्वारा उस कन्या के लिए निषिद २३ और अल से और नदियों के जल से किये जाने पर घर से ७. जो...सुखोंसे जो उत्कृष्ट देव-सुखों से (१७) ८१ सुनकर...श्रीचन्द्रने सुनकर प्रतिबुद्ध श्रीचन्द्रने (१८) ८३ करने वाला, चारित्र करने वाला, विशुद्ध सम्यक्वधारी चारित्र उसके लिए वे हरिण फिर एक रखरे ९३ करके...कर्मों से करके स्त्रैणकर्मों से को मारकर अपने कर्मों के फल-स्वरूप ११ कोदों की खेती कोदों के लिए बाड घोर अंगल में बराह के रूप में उत्पन्न ११७ ब्रह्मदत्त धनदत्त १५१ श्रीको देखा बीके द्वारा देखा बन्दर, व्यापमृगो तथा फिर हरिण १५२ जो लोगों से जो दूसरों को उद्देश-१०४ भोगो, इसमें प्रतिषेध मत करो। १२ नौकरी भाधिपत्य उद्देश-१०५ सौतेन्द्र सुखप्रचुर कौडा । ३. जिससे...सुनाऊँ । जिससे वह सारा वृत्तान्त कह सुनाएगा। अच्युत ५३ जली हुई थी जलायी थी भोगों में भति मोह प्राप्त, ५३ जले और दग्ध मुरोका जलते हुए और दग्ध होते हुए मुरदों का ११ धनदत्तके....करके १७ दुर्जनों द्वारा....घर से १० (१९) १८ (१९) १९...... २. बन्दर...फिर ५ भोगो...करो ११ सौतेन्द्रौटा १४ मत्युत १ भोगों से विभक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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