Book Title: Paumchariyam Part 2
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 402
________________ मुद्रित पाठ ५४ राक्षसों... व्याप्त था; ५४ राक्षसों... वह ५५ डाकिनियों के... और ७ गरुण ४० स्नेह के बन्धन में १ बीर... गणधर १८ महर्षिको ७ भाँखों वाली १६ .... वीणा ९ फिर... लोगों की १८ नरकों में... पान ४२ को में... हो । ११ देखि २२ पूर्व... धुत से ६ नाचना-बजाना ३ स्वाध्याय... निरत ७ पूर्वकी भव सीता १२ मैं... उसके १४ सम्यग्दर्शन... राम के Jain Education International पठितम्य पाठ राक्षस, सियार और प्रेत प्रकाशित हो रहे थे राक्षसादि क्रव्याद प्राणियों से वह डाकिनियों द्वारा धड़ खींचे जाने से डरावना था और गरुड बंधुस्नेह में ८ हिन्दी अनुवाद संशोधन आँखों वाला कोई स्त्री वीणा वीर जिनेन्द्र के बुद्धिशाली और प्रथ मपद (प्रमुख) को प्राप्त गणधर २१ तुम्हारे बिना फिर साधारण लोगों की नरकों में कीचड़ अथवा वीर्य महधिक देव के मनुष्य जन्म में च्युत होने पर भी बोधि बेतीय पूर्वगत श्रुत से नाच-कूद उद्देश - १०६ लोक में मुझे अगुआ करके मोह प्राप्त सभी मूख और पिशाचों के मुद्रित पाठ ५८ वैतालों... रहे थे, उद्देश - १०७ ५९ कहीं... रहा था, ७१ और प्रणाम ७७ अतिप्रचंड... यक्ष के [४२] यहाँ..... है । ४७ हद बुद्धिवाले वे उद्देश - १०९ ९ भामण्डलकी... गई । १३ शास्त्रों को जानते स्वाध्याय और क्रिया में निरत पूर्व भव की सीता मैं वैमानिक देव ऐसा करूँ जिससे वह मेरा मित्र हो जाय तब उसके नरकगत लक्ष्मण को लाकर उसको सम्यग्बोधि प्राप्त करवाके राम के २४ त्याग...हैं । उद्देश - ११० १६ गोत गाने ४१ अमृत रस उद्देश - १११ तुम्हारे चिर सो जाने से उद्देश - ११२ और [२१] मोहन... तो उद्देश - ११३ को तुम ५५ दिन........ हैं | उद्देश - ११० २४ वे उद्देश - ११५ २२ और... गये । उद्देश - ११७ १० ऐसे... और १९. हँसती... कहा २० पास में... उसने २८ राघव 1... हैं ? ३८ हे नाथ ! For Private & Personal Use Only पठितव्य पाठ बैतालों के द्वारा वृक्षसमूह के भाहत होने पर भूतगण घूमने लग गये थे, कहीं नील-पीत प्रकाश दिखाई दे रहा था, और साधु को प्रसन्न करते हुए प्रणाम अतिप्रचंड और भयंकर महायक्ष के यहाँ उत्पन्न हुए हैं । दृढ़ संकल्प के साथ वे भामण्डलकी आयु का निस्तार आ गया । दुर्बुद्धि जानते त्याग कर देंगे । गोत मधुर स्वरसे गाने अमृत स्वर शोणित का जो पान मोहवश कूदने लगें तो १५७ प्रथम राजा हो । दिन क्या सुख से व्यतीत हुए ! उस और रस्ते पर चल पड़े । ऐसा उपसर्ग करके और सीता ने अचानक कहा पास में जाकर उसने राघव ! पासमें यह कौनसी वनस्पति है ? x निकाल दो www.jainelibrary.org

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