Book Title: Paumchariyam Part 2
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 399
________________ १५४ मुद्रित पाठ ४ नदी में... हुए १ निरत हो ६ न ७ हाथी के... पाया १९ करनेवाले... और २१ उत्तमहार २१ किये हुए, सुगन्धित २१ किये हुए ९ नहीं लूँगा । १६ यश १६ कमलों से ३७ आये हुए आप ३९ शत्रुओं को ५ उसकी मृत्यु ५. बकरे ... १५ वरा वह १५-१६ ( वराके) १८ मंगिका २१ घायल.. ... शरीर वाला २ सुरमन्त्र, श्रीमन्त्र ६ मथुरापुरी २१ अपने... लिए २९ मेरा... तब तक ३० कुबेरके ५ भाई लक्ष्मण के ७ उद्विम ऊपर १८ अंगद... शत्रु के Jain Education International पठितव्य पाठ करनेवाले, छत्रधारी और बे उत्तमहार किये हुए और सुगन्धित किये हुए थे। (२१) नदी में वेग से खींचे जाते हुए निष्पादित हो धनशन वह हाथी अपने सुकृत के फलस्वरूप देवगणिकाओं के मध्य में सैकड़ों धारण नहीं करूँगा । जय कलशों से पउमचरियं भज्ञात आप रण में शत्रुओं को उसको अपने लोगों के साथ मृत्यु सुरमन्यु, श्रीमन्यु प्रभापुरी बकरी के बच्चे के रूपमें भवनमें वह धरा (धराके) अंगिका मुद्रित पाठ उद्देश - ८३ दुःखदायी आवाज करता हुआ और मुड़े हुए शरीरवाला उद्देश - ८५ १२ सिदि उद्देश - ८४ x निकाल दो मेरा यह खल स्वभाव वाला दुःखित हृदय तब तक राजा के ११ जो मनुष्य ११ डुब उद्देश - ८६ भाई वीर लक्ष्मण के उद्वि और रुष्ट हो ऊपर अंगद और हनुमान भी दूसरी भोर २२ दामवेन्द्र... भारी २३ जीवलोक... करती है उद्देश -८७ ४४ रथ... सुभट उद्देश - ८८ ६२ साधुओं को ६८ एक १२ ऐसा कहकर २४ ऐसा कहकर २५ वहाँ... किया । उद्देश - ८९ २८ अपने ३३ नर्तक और ५१ होकर... शत्रुम ! ५१ (५१) ६२ काम में निरत उद्देश - ९० २६ कि... वह For Private & Personal Use Only पठितव्य पाठ सम्यक्त्व नाटकों द्वारा प्रशंसित होता हुआ पहले के सुखको प्राप्त हुका । जो लोग संतोष दानवेन्द्रोंने राम और लक्ष्मण का बड़ा भारी जीवलोक में बढ़ चढ़कर हैं रथिक रथसवार के साथ और घोड़े पर अवलम्बित सुभट साधुओं को सदा नमस्कार अकेला ऐसा कहाजाने पर 'ऐसा ही होगा' इस प्रकार कहकर वहाँ पर राजा इन्द्रदत्तको शस्त्रवि द्याभ्यास के लिए आया देखकर (उसके गुरु) दुर्जन शिवाचार्य को धनुर्वेद में उसने सन्तुष्ट किया। • अचलने अपने राजाओं के साथ नर्तक, छत्रगर्तक और होकर घर घर में जिनप्रतिमाओं की स्थापना करके हे शत्रुघ्न ! (५१-५२) काम से समृद्ध शत्रु के कि तुम्हारे पास आने पर पहले जो कुछ कहा गया था वह www.jainelibrary.org

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