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१०४. लवणं- 'कुस पुन्वभवाणुकित्तणपव्वं
तो बिहोस पुण, परिपुच्छइ सयलभूसणं साहुं । भयवं परभवनणियं, कहेहि लवणं - S° कुसच्चरिय || १ || तो भइ मुणी निसुणसु, कायन्दिपुराहिवस्स सूरस्स । रइवद्धणस्स महिला, सुदरिसणा नाम विक्खाया ॥ २ ॥ तीए गब्भुप्पन्ना, दोण्णि सुया पियहियंकरा धीरा । मन्ती उ सबगुत्तो, तत्थ नरिन्दस्स पडिकूलो || ३ || विजयावलि त्ति' नाम, घरिणी मन्तिस्स सा निसासमए । गन्तूण नरवरिन्द, भणइ पहू ! सुणसु मह वयणं ॥४॥ तुज्झाणुरायरता, कन्तं मोत्तूण आगया इहई । इच्छसु मए नराहिब ! मा वक्खेवं कुणसु एत्तो ॥ ५ ॥ भणिया य नरवईणं, विजयावलि ! नेव एरिसं जुतं । परणारिफरिसणं विय, उत्तमपुरिसाण लज्जणयं ॥ ६ ॥ जं एव नरवईणं, भणिया विजयावली गया सगिहं । परपुरिसदिन्नहियया, मुणिया सा तत्थ मन्तीणं ॥ ७ ॥ अइको हवसगएणं, तं नरवइसन्तियं महाभवणं । मन्तीण रयणिसमए, सहसा आलोवियं सवं ॥ ८ ॥ तो गूढसुरङ्गाए, विणिग्गओ नरवई सह सुएहिं । महिलाय ठविय पुरओ, गओ य चाणारसीदेसं ॥ ९ ॥ मन्ती विसबगुत्तो, अक्कमिऊणं च सयलरज्जं सो । पेसेइ निययदूयं, कासिनरिन्दस्स कासिपुरं ॥ १० ॥ तू त दूओ, साहइ कसिवस्स सामियादि । तेणावि उवालद्धो, दूओ अइनिठुर गिराए || ११ ॥ को तुज्झ सामिघायय, गेण्हइ नाम पि उत्तमो पुरिसो । जाणन्तो च्चिय दोसे, पडिवज्जइ नेव भिच्चत्तं ॥ १२ ॥ सह पुतेहिं सुसामी नं ते वहिओ तुमे अणजेणं । तं ते दावेमि "लहुं, रइवद्धणसन्तियं मग्गं ॥ १३ ॥ 1
१०४ लवण और अंकुशके पूर्वभव
एक दिन विभीषणने पुनः सकलभूषण मुनिसे पूछा कि, भगवन् ! लवण और अंकुशका परभव-सम्बन्धी चरित: आप कहें। (१) तब मुनिने कहा कि सुनो :
काकन्दीपुर के स्वामी शूरवीर रतिवर्धन की सुदर्शना नामकी विख्यात पत्नी थी । (२) उसके गर्भ से प्रियंकर और हितंकर नामके दो पुत्र हुए। वहाँ सर्वगुप्त नामका मंत्री राजाका विरोधी था । (३) मंत्री की विजयावली नामकी पत्नी थी। रातके समय जाकर उसने राजासे कहा कि, हे प्रभो ! आप मेरा कहना सुनें । ४) हे राजन् ! आपके प्रेममें अनुरक्त मैं पतिका त्याग करके यहाँ आई हूँ । आप मेरे साथ भोग भोगो और तिरस्कार मत करो। (५) राजाने कहा कि, विजयावली ! ऐसा करना उपयुक्त नहीं है । उत्तम पुरुषोंके लिए परस्रीका स्पर्शन भी लज्जास्पद होता है । (६) जब राजाने ऐसा कहा तर विजयावली अपने घर पर गई । वहाँ मंत्रीने जान लिया कि वह परपुरुषको हृदय दे चुकी है (७) क्रोधके
त्यन्त वशीभूत होकर मंत्रीने रात के समय राजावा सारा महल सहसा जला डाला । (८) सुरंगके गुप्त मार्ग द्वारा राजा पुत्रोंके साथ बाहर निकल गया और पत्नी को आगे करके वाराणसी देश में गया । (६) उस सर्वगुप्त मंत्री ने भी सारे राज्य पर आक्रमण करके काशीनरेशके पास काशीनगरी में अपना दूत भेजा । (१०) उस दूतने जाकर काशीराज कशिपसे स्वामीका कहा हुआ कह सुनाया । उसने भी अत्यन्त निष्ठुर वाणीमें दृतकी भर्त्सना की कि अरे स्वामिघातक ! कौन उत्तम पुरुष तेरा नाम भी ले। दोषोंको जानकर कोई उत्तम पुरुष नौकरी नहीं स्वीकार करता। (११-१२ ) पुत्रोंके साथ अपने स्वामीका अनार्य तुमने जो वध किया है, इससे रतिवर्धनका रास्ता मैं तुम्हें शीघ्र ही दिखाता हूँ । (१३)
१. त्ति णामा घ० प्रत्य० । २. परनारिसेवणं चिय, उ० मु० । ३. तेण वि य उ०- प्रत्य० ४. अकज्जे प्रत्य• । ५. लहु, सिरिवस० - प्रत्य० ।
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