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उमरियं
मुद्रित पाठ २१ मणिकान्त...शिविरमें २४ वाली के पास सहसा ३३ दूतने भी...अथवा
३४ वाघ्रविलम्बो
८ निमित्तों को देखकर २१ कोल वसुन्धर २८ तथा ...बनवाये ।
३. कहीं पर ... समवेग थी,
५ वहाँ...सुना कि १६ लगी कि...चले गये ही?
पडितव्य पाठ मुद्रित पाठ
पठितव्य पाठ मणिकान्त पर्वत के समभागमें
४. उनसे ही अब...करता हूँ। वे हो भब सिर पर भंजलि धारण वाली की सभा में सहसा
करके किसी अन्य को प्रणाः
नहीं करेंगे । दूतने भी प्रत्युत्तरमें कहा-हे ६४ सुन्दर किया
सुन्दर तप किया । व्याघ्र-विलम्बी 1 बिना बिलम्ब
७२ पृथ्वी में ... मच गई । पृथ्वी उल्का और भमिपि भपने निष्ठुर वचन (की भर्त्सना
युफ हो गई। करो) को वापिस ले लो अथवा १०४ शतशः ... सपरिवार शतशः मंगलों से स्तुत्यमान दश . व्याघ्रविलम्बी
मन सपरिवार उश-१० निमित्तों की स्थापना करके १३ वक्षस्थलको...तथा
वस्त्र खींचती हुई, एक इस कोलावसुन्दर
को दबाती हई तथा तथा सेवकों सहित आवास की ४५ जलयंत्रों....वैसे ही उधर जलयंत्रों के द्वारा रोके हुए पान
के छोरे जाने पर वह राजा नद रचना की ।
के विशाल तट पर आभूषण कहीं पर उत्तम सरोवर की भांति
पहिमकर लीला पूर्वक खड़ा है बिना किसी बाधा के वह शान्त
गया, तब उधर वेग से बहतो थी, ५६ तलवार, तोमर
तलवार, शक्ति, तोमर उद्देश-११ इस तरफ उसने सुना कि ७३ मंत्रपूर्वक....चाहिए
मंत्रोद्वारा पशु मारनेयोग्य (हवः लगी कि मुझ मन्दभाग्या के लिए .
करने योग्य) हो जाते हैं। उन दुःख की बात है, क्या मेरा
सोमादि देवों को प्रयत्नपूर्वक तृ प्रिय मार गया है अथवा वह
किया जाता है। भकेला किस तरफ चला गया है? ११७ मिट्टीके...रहे थे।
हाथियों की लीला के सा' तथा अंकुरसे रहित
साथ मेंढक, मोर और बादल शन धर्म में उद्यत
कर रहे थे और पपीहों ने सार पहुँचे और उनके द्वारा तुरंत ही (परिवृत्त कर लिये गये) स्वागत
मिलानी आरंभ कर दी थी : किया गया ।
११९ घासके कारण...पुष्पों के समान धासरूपी....पुष्परूपी...तथा पृथ्वी वह जिनशासन में प्रयत्नशील बना। ......तथा लज्जाशीला पृथ्वी
उद्देश-१२ हरियाहन के भसुरने
४३ जाओ और उत्तम ४३ कोड़ा करो
कीड़ा करते हुए रहो 'ऐसा ही हो' इस प्रकार कह- ४७ दुलंधपुरी
दुर्लयपुरी कर वनमाला ५५ उसकी....रखता
उनकी तरफ देखता भी नहीं।। तृष्णारहित मनसे ६० मेद कर सके,
मेद कह सके, ज्योतिर्मती की कोख से ६३ दुर्लेघपुर
दुर्लध्यपुर श्रमण धर्म का दुलेध्यपुर ६५ किले...लिया।
किले का नाश करने लगा। ७३ दुर्लपपुर
दुर्लभ्यपुर
२५ तथा छिलकेसे रहित ४५ धर्मसे उज्ज्वल ५१ पहुँचे...किया ।
६५ वह...हुआ ।
६ हरिवाहन को ६ भसुर रावणने
उत्तम
२१ ऐसा...बनमाला
२९ निर्विघ्नमन से ३२ देदीप्यमान ३३ श्रावक धर्म का ३८ दुर्लघपुर ११ ॥
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