Book Title: Paumchariyam Part 2
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

Previous | Next

Page 382
________________ १३७ पठितव्य पाठ ८ हिन्दी अनुवाद संशोधन मुद्रित पाठ . पठितव्य पाठ मुद्रित पाठ उद्देश-८ १ सुरतसंगीत सुरसंगीत ५ शस्त्रों का विचार शास्त्रों का विचार १० सुरपुर अलकाके सुरपुर (देवनगरी) के १९. तो मेरा अग्नि में ४१ और बाणों के...गया। भौर कनक व बुध राजा के साथ संनद्ध २०८ धर्म में लोगों ने हो गया । .२१० करने के...त्यागकर ४५ बहुत से पक्षी बहुत से काक ५५ शीर्षक: इन्द्रजीत आदि का.इन्द्रजित् आदि का २१३ और कहाँसे ८. हे दुत ! दुर्वचन हे दुर्वच ! ऐसे वचन २१४ समूह जैसे, ८६ छोटे को (रावण को) छोटे को (कुम्भकर्ण को) ९५ मुसर झसर __ २२२ मारकी....घूमने लगा। ९९ इसके...ले आया ।। इसके अनन्तर दशमुखने सहसा अपने समस्त सैन्यको रणभूमि में यक्षमों के द्वारा चक्र की भाँति घुमाया हुआ देखा। १२३ तथा बाणों की .. तथा बाजोंकी १३. शरीर वाला, उसका शरीर था, १३० धारण करने वाला को धारण किये हुए था, २२३ इस युद्ध में ३० तथा चामर.. रही है तथा उसके सामने चामर डुलाये जा रहे थे २२७ शस्त्रों....शरीरवाला जिसके कारण ध्वजपंक्तियाँ हिल रही थी। (१३०) २३. बन्दरों के साथ ३१ ऐसा कुम्भकर्ण कुम्भकर्ण ३३५ वानरकेतु ने...वह ३१ हुमा । (१३०-१.. हुआ। (१३१) ३२ वज्राक्ष, शुक . वज्राक्ष, बुध, शुक २४७ उसने क्रुद्ध यमको ३४ और...ओर और दक्षिणदिशामें लंकानगरी . ०४७ कर दिया । की ओर २६२ जलसे पीड़ित सा । १३६ कि इस पर्वत...शहरोंमें कि पर्वत पर, नदियों के किनारे तथा गाँव २६२ मानो पूजा कर रहा हो व शहरों में १४. तुम कलियुगमें....पापसे तुम दोष, कालुष्य व पाप से (२५८-२५९) १६५ अथवा...उद्यानमें . अथवा श्रेष्ठ उद्यामगृह में २६३ उसने...पार करके १६६ कर सकूँगा, कर लिया, १६८ विविध...शोभित ग्रामसमूह और नगरों से शोभित १७५ तथा आकार में...वह तथा कुपित और त्रस्त वह २७४ दृष्ट प्रदृष्ट १८२ ऐसा सोचकर...किया तब उस राजा ने एक सौ उत्तम कुमारियाँ २७७ निषुम्भ उसे दी। उस ऋद्धिवान् ने प्रसन्नता ___ आठवाँ उद्देश्य उद्देश-९ ३ किष्किन्धिपुरमें लौट किष्किधिपुरमें लौट भाता था। ११ जब रावण...विवाह भाया। ५ ऋक्षरजाकी ऋक्षरजाको १९ युद्ध क्षेत्र में...फिर भी ५ उत्पन्न और बड़े बड़े बड़े बड़े ५ नलनीला...यी। नल और नील नाम के पुत्र उत्पन्न हुए। पूर्वक उनके साथ विवाह मंगल किया । तो हे सखि ! मेरा धर्म में ऋजु मतिवाले लोगों ने करके यथा सुख-भोगों को भोग कर और देखो कहाँसे समूह के जैसी नीली स्निग्धता वाळे, तत्पश्चोत् वह कभी उसके गात्रों के बीच में घूसने लगा तो कभी आजू बाजू में, तो कभी आगे पीछे। जैसे चक्रारूद होकर वह चपल गति से हाथी को मोहित करता हुआ घूमने लगा । भरण्य में शस्त्रों की मार से अर्जरित शरीर वाला वानर भटों के साथ वानर केतु पर जो व्यसन आपड़ा उसने यमको करके अवरुद्ध कर दिया । जलसे परिपूर्ण सा मानो जिसकी अर्चना-पूजा की गई हो (२५८-२६२) उसने इस प्रकार के समुद्र को देखते हुए बहुत से योजन पार करके हस्त प्रहस्त निशुम्भ भाठवाँ उद्देश जब रावण आवली की पुत्री तनुकञ्चु की विवाह युद्ध क्षेत्र में शत्रुभटों के कारण तनिक भी भयभीत या व्याकुल नहीं होता हूँ, फिर भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406