Book Title: Paumchariyam Part 2
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 394
________________ मुद्रित पाठ १और....प्रविष्ट हुभा। १२ स्मृतिचिन्ह के रूप में १५ में पुलकित १७ कहे जाने पर १९ धीरज नहीं धरते। २. वे गन्धर्वो की कथा २१ शिथिल...हुई है। २६ सच्चे श्रावक हो, ३. लक्ष्मण भी...उसने १७ मृत्यु के...हुए हैं। ५६ भोजन करें, ७३ इस....पवनपुत्र हिन्दी अनुवाद संशोधन पठितव्य पाठ मुद्रित पाठ पठितव्य पाठ उद्देश-५३ और दरवाजे पर (के निकट) ही स्थित ८२ और उत्साह से भौर कोप तथा उत्साह से विभीषण के घर में वह अकेला प्रविष्ट ८७ इन्द्रधनुष की रचना इन्द्रधनुष के सण्डों की रचना हुभा। ८८ दीनभाव से रुदन चिल्लाहट, रुदन रत्म सहित ९४ परपुरुष के जिस तरह परपुरुष के में सन्तुष्ट होकर पुलकित ९. प्रियाकी भाँति वानर के प्रिया को देखने में उसके प्रियतम को पूछे जाने पर उसी तरह वानर के सुख नहीं पाते। ९४ लंका को....सकता। लंका को देखने में मुझे कोई भानन्द वे गीत व कथा नहीं। शिथिलकाय बन जाने से यह अंगूठी ९५ उसे इस निकलकर वन में पड़ी हुई तुम्हें मिली १११ हत...नष्ट हत राक्षस नष्ट है क्या? ११२ मस्तक फटने...मत्त टूटते हुए चमकीले मोतीवाले भौर जिनके सच्ची बात कहने वाले हैं (सत्य की मद का झरना नष्ट हो गया था ऐसे सौगंध लिये हो), मत्त लक्ष्मण भी तब खरदूषण को मारकर १६ शीघ्र ही फेंकी। शीघ्र ही उल्टे रस्ते शिला पर फेंक दिया। उस स्थान पर पहुँचा तो उसने मृत्युपथ पर अधिष्ठित कर दिये गये हैं । १७ और भाते हुए और हनुमान भी भाते हुए पारणा करें, ११ जाने पर कुद जाने पर रावण ऋद्ध 'ऐसा ही हो' इस प्रकार कहकर पवम- १४५ गिरते....दिया । उस भवन के गिरने से यह सारी पृथ्वी पुत्र पर्वतों से अति नियंत्रित होने पर भी गयी हुई सागर के साथ हिल गयी। उद्देश-५४ युद्धाभिमुख (युद्धोत्सुक) २१ कली, गिल बेलीकिल तथा आपकी कुशलता ३५ हुए.. पड़े हुए आकाश को भारित करते हुए। कीर्ति से चल पड़े। उद्देश-५५ इन्द्रजितने ५६ पुत्रों के....गया। राक्षसपति ने भायुध भादि से सन्मद घोर, कालादि इन तथा दूसरे बहुत से सुभटों का xनिकाल दो। स्नेहपूर्वक बहुत सम्मान (पूजा) युवा बलपूर्वक रहते किया जैसे पिता अपने पुत्रों का सोना भात में छिपा करता है। उद्देश-५६ समक्ष मेरा हलकापन हो जायगा । उद्देश-५८ सहोदर विप्र गृहस्थ ७५ रही हुई २ युद्ध में से लौटे हुए ६ तथा कुशलता २. कान्ति से ८ इन्दजितने २३ काल भादि ३५ नैमिषारण्य में ३५ युवा रहते ३६ सोना छिपा १५ समक्ष...पड़ेगा। ४ सहोदर गृहस्थ ९ उहाम...डाला। उदामकीर्ति ने विग्न को तथा सिंह- कदि ने प्रहत कोमार डाला। २५ कान्तिवाले...प्रहार कान्तिवाले बाणों से हनुमान के शरार पर प्रहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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