Book Title: Paumchariyam Part 2
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 395
________________ मुद्रित पाठ ४६ इस... देखेंगे ४९ फेंके गये बाणों से ४९ वानर सैन्य छा गया ५९ इच्छानुसार विहार करने लगे ४ तब... आदि ९ निर्मल... साधु २० अभिमानी...लगा २७ चन्द्रनख के २८ कुंद्ध... ललकारा । ४० नष्ट... उठते थे । 8 तरह... हो । ८ यह फल १४ दृष्टि में २० असफल होने से २२ असमर्थ ६ प्रकार.... महाराज २ हे... बड़े १. दुःखका... पापिनी १९ सुरधीय का पुरोहित है। २२ साधुपुरुष २६ पीड़ित... है । २७ इस नगर में... वह ३१ समक्ष लवण समुद्रके उत्तम... उतरे । Jain Education International पठितव्य पाठ संघर्ष के कारण हाथियों से व्याप्त इस विस्तीर्ण वानर सेना को थोड़ी ही देर में आप विनष्ट सी देखोये । फेंके गये बाण वानर सैन्य पर छा गये । x निकाल दो तब श्रीवृक्ष आदि निर्मल स्वभाव वाळे पउमचरियं यह पाप - फल वैभव में अभिमानी वह तीक्ष्ण बाण निकाल कर उसके समीप जाने लगा । चन्द्रनभ के कुछ अंगद ने मय को ललकारा। मष्ट हाथों वाले कई सुभट भारी प्रहार से भाहत होते हुए भी अपने उद्देश - ६० तरह के अनर्थ को तुम प्राप्त हो गये हो । उद्देश - ६१ तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकने से विरक्त मुद्रित पाठ ६८ आप... बाणों के ६० प्रकार गज के पकड़े जाने पर महाराज हे सुपुरुष 1 अपने बन्धुजनों का त्याग करके बड़े दुःख की उत्तरदायिनी पापिनी सुरगीतपुर का राजा हूँ । ७१ बिना... शंका के ७५ विभीषण उद्देश- ६२ राजा पोड़ित हो गया। परन्तु उस नगर में द्रोणमेघ नामका जो राजा था वह सहित ७६ उस समय दूर लवणसमुद्र के अये भादि भाडम्बर किये जाने के ९ न माता, न पिता बाँधे गये हैं ४५ बाँधने में ४६ निकालने वाले ७३ रावण... शोक उद्देश - ६३ - २७ नगर के तीन गोपुर २९ भयंकर महात्मा ३० भाला ३४ एवं कीर्ति से ३५ आकाश में... भौति ३४ धीर... नामका २४ गुणशालिनी पुत्री ३६ साथ... महान् ५२ पिता... हुए उसने ६९ विशल्या ने... डाला । ७२ लोक में... विमल उद्देश - ६४ For Private & Personal Use Only पठितव्य पाठ आप देखे ! इन्द्रजित ने बाणों के सुग्रीव को बाँध दिया है। स्पष्ट रूप से विराधित इतने में न पिता स्वाभिमान से गिर गिर के उठने की कोशिश करते थे । वेष्टित करने में मिटा करके रावण रात में सोता हुआ शोक तीन बसने योग्य स्थल भयंकर और गदा हाथ में लिए महात्मा माले एवं मदसे नक्षत्रों के साथ आकाश की भाँति धीर त्रिभुवनानन्द नामका गुणशालिनी अनंगहरा नाम की पुत्री साथ प्रहारों से परिपूर्ण महान् पिता के स्थान (गृह) ले जाते हुए उसे रोका गया और उसने विशल्या के उस स्नानजल से क्षण भर में नष्ट कर दिया गया। लोक में मृत्युपथ पर स्थित मनुष्यों के लिए जो विमल पश्चात् वह उत्तम विमान से मीचे उतरी । www.jainelibrary.org

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