Book Title: Paumchariyam Part 2
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 385
________________ १४० मुद्रित पाठ ३ बाघ से ५ होने पर... थी । १२ विद्या के... २२ गिरे हुए २९ लौटा हुआ... पातालपुर २९ रावण... मेजा है । ३० कहा कि आप ३१ में... जाने को २ और ऊँ... और १३ सुख और शान्ति ६० जिनेश्वरदेव... जो ८९ पूर्व दिशा में... एक ३ जल के स्वामी वरुण ने ११ व १५ वृत्तान्त कह २५ दुःख एवं शोक के २९ पुत्र के बारे में ७ हनुरूह के ... हमें ११ कि कायर का २७ चारों... हनुमान १० शोक रहित क्षेमा ११ अलकापुरी के १७ तथा वीर १८ पिहितात्रय १९ चित्तरक्ष २२ सर्वाथसिद्धि २९ संभवनाथ... इन्द्रवृक्ष Jain Education International पठितव्य पाठ व्याध से अपने अङ्ग होने पर बड़े दुःख से (शरीर) को धारण कर रही थी । हे वरुण । विद्याधरों के स्वामी रुष्ट राक्षसभटों की मार से गिरे हुए लौटे हुए पातालपुर रावण ने सभी सामन्तों से मिलकर मुझे आपके पास मेजा है । कहा कि हे तात ! आप मैं स्वतन्त्रता पूर्वक अपने आपही पउमचरिय उद्देश - १६ और ऊँचे तथा श्याम मुख वाळे हो गये और अलकान्त ने अवसर पाकर ( बहाने से ) वृत्तान्त गुरुजनों को कह पुत्र शोक के पुत्र के जीवित रहने के बारे में सुख का स्वाद जिनेश्वर व गुरु के प्रतिकूल दुनियाँ में जो जैसे पूर्वदिशा सूर्य को वैसे ही एक क्षेमा, व्यपगत शोका देवपुरी के तथा धीर पिडितालय चिन्तारक्ष दानवपति (रावण) के द्वारा बुलाये गये हैं और हमें कि हे तात ! कायर का चपलता से से विक्रम को प्रसारित करता उद्देश - १७ ... साथ ३३ मदोन्मत्त हाथी को ४२ अपने... स ४३ फिर भी... रहूँगी । ५३ कमलसमूह में से... थी ५७ विशाल नेत्रोंवाली को ६३ ही अजना के ६४ भागे के हिस्से में ६९ हृदयस्थ ५३ करनेवाली सर्वार्थसिद्धि संभवनाथ, ऐन्द्र नक्षत्र और शालवृक्ष ७९ रति... गुणों से उद्देश - १८ मुद्रित पाठ १०३ सुन्दर माता की १०४ परन्तु स्वजन के १०५ पहचान कर की गई । उद्देश - १९ ३३ राजा के... पुत्रों को २३ त्सावाले...कि. ४५ हुए मैने ४६ निर्वासना का ४८ सखी से युक्त ४० को बुलाया... की ४४ मध्याहकालीन ४४ सुदर्शनचक उद्देश - २० ३० नाम की उत्तम नगरी ३० बर ३७ श्रेयासनाथ ३८ मगवान् ३९ कापिल्य For Private & Personal Use Only पठितव्य पाठ आपको यह आलिंगन का फल दूँगा अर्थात मुझे जाने की मदोन्मत्त वनहस्ती को आपने मुझ पुण्यहीना के साथ फिर भी आप मुझे स्मरण तो कर लेते। कमल समूह को तोड़ती थी मृगाक्षी को ही रात्रि में अञ्जना के बाह्य कमरे में हृदय का इष्ट बहती हुई रति को प्रोत्साहित करने वाले गुणों से सुन्दर माला को परन्तु चिन्हों से और स्वजन के पहचान कर अत्यन्त दुःख से परिव्याप्त शरीर वाली वह अञ्जना वसं तमाला के साथ उस भरण्य में करुण स्वर से रोने लगी । राजा के पुत्रों तथा दूतों को उत्साहवाळे उसको अञ्जना की दुर्दशा के बारे में स्पष्ट रूप से कहने लगा कि, हुए रात्रि में मैने निर्वासन का x निकाल दो हुआ हनुमान को स्वाधीनता पूर्वक (सम्मानपूर्वक बड़े भारी समारोह के साथ लाया । मध्याहकालीन सुदर्शनचक नाम की माता प्रथमपुरी (अयोध्या) नगरी, संवरराजा त्रियांसनाथ भगवान् काम्पिल्य www.jainelibrary.org

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