Book Title: Paumchariyam Part 2
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 361
________________ ११६ २२ जे य नि २२ से साहू तुह व २२ तुहं व० २२ साहेन्तु २३ २४ गडिगजन्त २४ द्वंतराय इमि तस्स २५ २६ सत्तमो २८ के गइ २८ पयाई पभाई, 'ओ महाभडो नि' सो किह २९ २९ २९ जिब्वीही ३० सत्तणं ३० जिपिही ३२ मंतिजणोवदेसेण ३० पत्थावे आणिमो ३८ सत्तुनो ३९ २९ ३१ ४१ मो ४१ ४७ "माओ धरसो ४२ झ परियराणं ४३ ४४ जे विवादेइ विवाद "जन्तसंघाओं ॥ जे Jain Education International क जे ३२ चारपुरिसा ग ३२ तभ प° अस्थित म ३३ २५ पविस ३६ जायं समामत्तजयं ३६ एतद्गाथा नास्ति ३७ "म्मि समए अयाणिओ ब तुमं पुरी महुरा ३७ वें सामिओ पु° क, ख 39 45 सोरग्मि वि. दो 93 क " क जे 33 33 क, ख क, ख ख जे जे जे क, ख ५१ ५२ स ५३ ५३ ५४ ५४ ५५ ५६ ५७ ५९ ६० ६० ६० ६० ६२ ६३ ६४ ६५ ६७ ६७ ६७ ७१ 'कोपज ८ ८ ९. तस्स राया, पयतो सत्तुज्जो सरणियरं नि आंसनो समावण्णे सवसेण "म्मि व भ रम्मे दहस्सेव व को 'संदेहो निययमेण उवज्झायाणं नमो णमो सव्व जयणाभा णय सुद्दावहा भूमी फाया हवइ भूमी तस्सायं 'वं निग्गय वो पिच्छया करेमि " णुभागी इति नाम पव्वं ॥ संमत्तं उद्देश - ८७ ७. पाठान्तराणि राभिमु क, ख जे क, ख जे 33 क, ख जे जे, क, ख जे क, ख ख क, ख क क, ख जे १ हयपयावं २ जहा विसं ३ ६ 'ज्जं अयाण ताव पभवन्ति य भमंति क, ख 'पिसायमा दीया सच्चे जे इत्थस्म यन्मंतरेण असता क, ख जे "" क, ख क, ख क जे ११ १९ १५ दुस्सह १७ सतुज्झो १८ सुज्झ 'यं आनंदिओ क, ख जे १८ २० माटी इति नाम पव्वं "सु वहिंद भि २ ३ ३ ४ ४ उद्देश - ८८ रा. मग्गिज कइगई जे २ सुरपुरिस सुपुरिसमागमाओ १० १३ १४ a° मथुरा २१ २४ २५ रायपुत्तस्स बहवो भवा ६ सं भमइ, म° ५ ५ भवणे गड्डाए सो तओ १५ तस्स घरा १५ कोदग १७ १८ निययभवणं । गेण्डर तो ते अहवं देहि बीया य अंगिया १८ पुतोरही काळे २० मुहाि २१ "न्तो विय २१ कुवमाणो चिय २१ अंकेण य नेत्तवलि चलियेगो कोसम्बीं नरवरसह गरु जे क, ख क जे For Private & Personal Use Only क, ख क, ख जे क, ख जाओ जे क, ख जे मु क, ख जे क, ख जे क, ख मु २५ ए. सिंहायरियं च दो जो २८ २९ २९ ३० ३० ३० कहिति ३१ ३५ ३३ परिजाणिओ ३४ दवं सुरप्पभूयं सपरिवारं चरितेहि अ° ३६ ३७ ३७ सव्वे वि अयलेणं ॥ क, ख सालो तस्सेव वसुदत्तो जे तस्सेव सद्दता ॥ क, ख पचभिया क, ख चिन्हे क, ख ४३ ४३ ४३ ४३ डिसे रिसे २ २ ३ ३ भोग भो कइगईए ३७ ३८ ३८ 'नयरीए ४१ ४१ घो देसवि णेयभवे सेणाणीओ हल वई तभ हरिस्स एवं प लोगे । वराहो सुविउलं "सप्तग्धभवाणु नाम पव्वं सम्मत्तं उद्देश-८९ १ चेव संपता २ सुरमन्नो, २ सिरिमन्नो २ २ ख एतो सत्त ता पहापुरे क, ख जे क, ख जे क जे " 33 क, ख क, ख जे क. ख जे जे 165 = " क, ख जे, मु मु जे ख सिवमण्णो सिरिनिलओ चमरो वि (चरमो वि) मु ह जे 33 क, ख www.jainelibrary.org

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