Book Title: Paumchariyam Part 2
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

Previous | Next

Page 376
________________ ७. पाठान्तराणि १३१ # ८ त उसणिभ कलक लिने । असि ९-१० सुरवरेंदो १. ताडितं ११ 'सिपत्त जे ११ 'येविरङ्गो ११ सितेहि जे १२ छड्रेहि जे,ख १४ ई तओ इहं १५ °हिवती, १६ नुम्हेहिं वि १६ तुम्मे वि धीरहियया सं पेच्छन्ति १८ पउमादिय १८ पोमाइयं १८ कारण? १९ वृत्तन्तं १९ यमतीया २२ पत्तो सो २३ विलयन्ति २४ व सुणसु २६ ण च तिब्वदु 'गतिगमणे गेण्डसु गिण्हह ३. हु एय भू' ३. यं ण भ° ३. ट्ठिया तुम्हे ३१ जीवादिप ३१ पयत्ता ३१ तिलोगर्द ३१ तिलोकद ३१ रो होदि ३२ 'कोडीहिवियणा पत्तहि वि ण पत्त क ३२ अणातिम ख 38 गन्छसु तं आ° जे ३. धम्मफलं चिय, भु क ३५ सोईतो ३८ अच्छर सुरसं ३९ महिपेढे ४० हादीया ४० कमणं गय ४२ जणयतणया ४२ कइगइ ४२ कयगइ ४२ सुप्पभा ४३ °संजमरया, ४३ सा वीरा गच्छोहिति ४४ भणिए सु १४ गती ४६ धणमंतो ४६ वजगो ४८ सीसं तु । प । ५९ तिलया जुति मुणिवरिद । ५. धम्मसवण ५. जायसंविग्गा ५० दो वि जुइस्स य पासे पासं. मैं असोग चरिऊण तव उवरिमे य गे° गेजेि जुई महइमहा उ संविग्गजणिय गयाण सिकयपल्लवं ६१ अहोगई क ८६ °स धणुयाणि पु' , ६१ उध्वट्टिो महा जे ८७ धिर्ति ६१ कमण ख ८८ 'विभूति , ६१ पाविहिति ९० ते अगोयर सुद्धसील६२ लभिहिति कमण संपत्त इति संशोधितम् जे गति च ख ९३ 'चरियं जो पढाइ ६२ को वा भविहामि क सुणेइ परमभावेणं। जे ६२ भमिहामि अहय,एय ९३ जो पढइ परमभावेणं । ख ६३ उक्खित्तणं ९३ मतिपरम ६५ णाभिरया रज्जुसमत्थो वि रिवू जे ६६ सरिसिदासा जे,ख वेजयसत्थो वि रिवू ख ६८ पुत्ता य भवि ख ___णइ सो य पुं क ६८ ता भविस्संति जे ९५ घणत्थी घणं ६८ °त्ता हवीहुन्ति महाविउलं ६९ वायकुमा जे ९६ ल गोत्तथी ६९ 'न्दरूवसरिसा, उ' क,जे _९६ लभद ६९ जयप्पमा ९.६ चेव आरोग ७. नि आणए क ९८ य मुगिस्स हि° जे,ख,मु ७. ठितीया ९९ मादीया जे ७१ हिवती ९९ हि भगवया अ° क ७२ चविया क ९९ हिं भयत्रओ अं स ७२ णा य भविहिति ख १०. कम्मविरया जे ७३ सो उ द . १.१ एवं वि° क,ख ७२ रहाभोय मु १०१ विविहेणिय बद्धमत्थ ख ७४ भवा इमे सु' क १.१ रामा...समत्थ । ७४ मवा सुराइया नासेइ...निच्छाएणं॥ मु,क,जे ७४ हही अ जे १.१ पह इह नि' क °य विमलं समथ क ७६ हस्स गणहरो परमो : १.२ एवं वीर ७८ सो पुण भों १०२ पच्छा गोयमसामिणा उ क ७९ रवतीविदेहे १०२ भूतिणा ७९ व पुरे तिय १.२ सिस्साण णो मविऊण असेस १.५ इत्थे तमत्थं रणं कम्म संघाय । सु ख १०६ जो नेहपणइणीहिं संकई सुणे जे १.६ हि ललिय नो ८२ अभिव देइ सुरवरो , विणयगतो । ८३ चेइयहराति ख १०६ °न्तो यन चेइयघराई क १०६ वञ्चिहइ ८६ सत्तरस सह मु,जे १०६ वञ्चिहिति स्रोव वि ख ५० असा जे सम गयाण सकिउण्णवं सम महप्पातढि ५४ धितीया 'हाए । फारे उत्ता जे सावयागिणे ५. चविहाहार क,ख ५९ कयादी ९ सुन्दरिम " सुरेंदो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406