Book Title: Paumchariyam Part 2
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 365
________________ १२० ७. पाठान्तराणि जे ने 04848 ३८ हि मह व ३९ वीरत्तणं ४० जलणजले दा १२ पवाइओ ४३ रुवइ ४४ मुयंग ४४ °तिसरिय अणुसंतिय १७ सिमिणे ४८ धिति १९ जरेंद २३ खेव, २३ ममहेस २४ देन्तो विय २७ थिरजोगेण णगि २७ मारुड ग २७ पविणिजिणिति २८ रा. धीरा २९ गणरयणपं 'पवपवरा २९ भारव्यहा भव्वा भवते ठिया क जायं ते क.स्व विमलप्पभावजससा जे लवंकुस लन अंकसोयावि नाम पञ्चे ममतं २७ सोहीरा ३० तुर ओहारे ३. 'उ(ह)दओ ब° ३० कुमारवरा ३१ गेण्हता मुंचंता संधेता मरवरे तहा बहुसो। ,, ३२ 'यं लवणंकुसेहि तहेव रिसेण्णं , ३२ रिगेन्नं जे,क,ख २९ 'सोयावि नाम पन्वं पव्वं ॥ ८ पुजिजन्ती ख,मु,जे पूइजंता ९ सुचिरं क ख ९ र सरस्सई दे 'रं सरस्सईए दे १० दियहाई त° ये तिण्हेसु __°इ सा दें जे,क, १५ डाउडिय' जे १६ लुट्ठाइय १६ परिमहिए १६ णचित्तसावज्जे १६ णाछित्तसा १७ मए छ° क,ख जे १९ पायवडणों २० छडेइ अ २१ पहासिहिसि २२ मर सुहंतस्स २३ दुलह २३ वाहणादीयं २३ रजलभ ओ २४ सम्मत्तदसणरओ क,ख एय चिय सेणावयस्स सुणिऊणं पडिहारेण पडिकारण __'द्धो विलवइ सोए क,ख पिय ३० वइदेही ३१ किं वा वि ३३ सीहेण जइ वि घोरेण । किवा , ३४ दड्ढासि तुम सहा क ३४ कते ॥ ३४ लोगंमि ३५ वत्ता य वि ३५ विमलाए ३६ धरिही पा ३८ लच्छिधरो उद्देश-२८ :4040404:94AAV08. २७ उद्देश-१७ १ पोण्ड ४ सुमिणे ५ वि मते ६ अणमिसं ११ दोर वि धातीसु संगिहिया जे १४ गन्तणं म १४ विदित्ता एव पु १४ ता एव पु विदेहाइ । १७ पाणाणं १८ णादीयं १९ सुविम्बाओ . . १९ इ ताव पत्रति , १९ सुविम्हविओ...वि य से । इति नास्ति क प्रती २. नन्दणी दटुं २० किवालं 'रा अइसय नाणा , सिक्खविया संपुण्णा ख न हु कोवि गुरुक्खेवं वचइ सिस्सेसु सत्तिस जे १ कोण २ ससिभई ना २ साव , ३ नरेंदो क ५ पुहईपुर ५ तत्थं पिहु १४ नाऊणं लेह अत्य १९ वित्तन्ते ते १९ समरमज्झमि २. 'हा तओ पु २१ निवसं पि २१ य जिप्पन्ति २२ पुरिसाणुभोजा २२ 'यणंदणी २५ यखिखिणि २५ विभूसिपसु जे,क,ख २७ जयाहिलासी २७ अभिट्टा जे ख ३४ 'णरेंदो क,ख ३९ इ अवद्दारे, अस्थि जे १. कन्तिसंजुत्ता जे,क ख ४० मा धोरा ४१ अणुवो पु ४२ पालन्तो ४२ दण्डा ४३ णो उस ४४ जांव ग १४ तब य ४५ हियादी ४६ °च्छा य तेहि कया क,ख ५२ कह विन क ५२ पट जे ५५ मेलेह °त्तो परिणि ५८ अब्भग्गपुरं ५८ नरेंदवरं ॥ क,ख ६२ वु-कोत° ६२ मंगला ६२ य वाहणा वि ६३ य सेन्धू ६३ यव्वं ॥ ६४ आहीर-ओयक ६४ सागकीरला य पाणा । य पाला य णामाला ६५ वेज्जा ति Fg46454644404404448 क.स 4404 २२ . : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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