Book Title: Paumchariyam Part 2
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 317
________________ ७. पाठान्तराणि अ 4444444 क 44 4 4 ११४ पध्वजा १४३ समतीताऽणा क,ख ११५ ण कालगओ १४४ तित्थगर क,ख ११५ संचए य पुरे , ११५ वइकन्तो १६ पयावले १४५ निवेइओ ध जे,क,ख ११७ पिउसयासेजे,क,ख १४६ पयजा आवरिसो र जे १४७ संभवाहिण ११९ सहस्सनयणो १४७ सुमती . ११९ अहियनेह १७ वासपुज्जो १२. 'गुणेहि ११८ नेमी १२१ ताणं देह कार ११९ पते १२१ किम्बा अच्छेरयं १५१ नामेहि १५२ समदीओ जे अण्णं १५३ बम्भयत्तो १२२ "पुजारुहो १५. 'ओ सुप्पभ जे तिलोगपुच्छोडरिहो क,ख १२२ तिलोगपुज्जोडरिहो न १५१ य होइ ना य व होइ ना ख १२५ खेयरो 'णो चेव होइ ना जे १२५ बलसमिद्धो १५६ रामण १२५ सुयणु जरासेंधु . १२६ सायरवरो १२६ किरिण जरासंध १२६ पज्जलिओ। जे,क,ख जरासंधु १५७ पते १२६ काणणवणेहि १५. मेत्ताए यु समत्तण १५७ उस्सप्पि १२९ 'चित्तपागारा १५७ ओसपि १३. बंधूज' १५८ परमभत्तोए १३१ मणिकिरिणो " १६३ तो उज्झि १३१ देवेहि १६३ परमबन्धू १३२ बारहद्धं १६३ 'बितिज्जयं १३. पागारा , १६. अभिसि १३. •भवणेहि क,ख १६६ उयही जे,क,ख १३४ अइरम्मा १६८ कयविभवो १३७ भुजसु १७. 'णे व संसंति १३८ भाणुमई ख क, य संति म १४. गयबहुकालो, जे १७१ मन्तीहि ११ द य सत्य जे,क,ख १७२ दायं गंगा ११२ गुणेहि जे १७२ नदीप १४२ 'सतेहि १७३ सगरपुत्ते ११३ सयरो १७१ दो विज ११३ वरसंखं क १७४ कारण य * जे 1041948: 4 १७५ सगरसु २.१ भगिरही १७७ कयणुण्णा जं २०२ उफारिय जंपिओ पत्ता क २.५ सुयसायर . जंपिउं पयत्ता २११ गामो वि जे,क,ख १७८ को इत्थ २११ हा जंता हत्यीण जे २११ १८. जस्से य नामसिट्ठो जे परिमिलिया कख परिमलिओ जे - वह कित्तिसंपण्णो २१३ समणुपत्ता-॥ जे,क,ख कित्तिसंपण्णा २१४ कुणई २१४ सहस्सघोरो हुयवहो जं वा २१५ सगरपुत्ताणं हुयवहो जं व २२. विणिस्सन्ति वसभा २२३ परिगणेन्तो १८३ य पायवीढा १८३ । २२३ परिवुढो १८३ उक्खयम्मि २२१ समणेहि १८१ अह एं २२४ कयनिओगं १८४ कुटुंबम्मि २२५ उजाणवाल जेक कुटुम्बम्मि २२८ पीयंकरो ८५ धणुफलसु. पियंकरो १८५ "विज्जुलिया २२९ 'यं करितु ८५ हा सजी २२९ जिणहरे १८६ सोसिति २३. तुमं तं सई सोसेन्ति सुणिय है १८७ चक्कहरादी रिवू स १८८ लोगमि रितू स १९. ण विणा इह २३८ एत्तियमेतो क.ख १९१ णूणं २३९ कूओ १९२ तो पिच्छिलण २१. पुत्तो चिय १९२ वसवम्भलो जुयरज्जे २४१ १९३ मवणेसु य चइऊण चउविहं पि जे २४. चउ विहं च . ,ख १९३ णेसु वि मु २११ सुरोत्तमो १९४ ण व हया २४३ 'भनामधेयराय जे,ख १९४ अवराहिय क,ख भनागधेयरायक १९४ दुट्ठवेरीणं जे क,ख २९१ सया, छचेव य 'कम्पेण वर १९९ नवनिहीहि व जे २४५ सन्निभाई नवहि निहीहिं चरक २४५ सरिसाई नवहि निहीहिं व ख २४५ 'ससुएहि २.. भरहादी 'ससुएण. 4 4 4 4 :4 4 4 : : : ..... 4 4 3 का जे,ख १९४ दुट्ठवेरीणं 4 . 4 4 4 04 . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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