Book Title: Paumchariyam Part 2
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 339
________________ ७. पाठान्तराणि :18 ६८ रज्जे सो विजयरह, जे ६८ गेण्डई दि जे ७. सीलमुक्को ७. धरो ति विरिओ इति जे,क नाम पम्व सम्मत 1556 भद : १५ रडणं व जे.क ३९ सत्तहमो जे ३९ इ एती अ ४१ दसणेहि सा १२ दुन्दुभी ४३ दमणो पडिमछमिनि' ४४ एत्तो सा ४६ सत्तदमस्स ४६ तुहं वन ४६ अम्हं ४७ इमं म ४८ [भणइ य लोमिनि 168 उद्देश-३८ . ३५ १. ४९ आर भिऊण ४९ संनिगासे, ५१ पणमिय साम तत्पठिउं ५२ कुसलादी ५२ 'ओ राइणा ५६ नयराओ अन्नोन्न 581618 १४ १ समाणुरूवा २ कंता वि ३ निमित्तं च । सत्तुजं च है विसयमोक्वं ८ नुरपण वे ९ बंधुपहिय १. न्तरे नि गुणवत्तणं १२ 'जम्मे सुफलं मन्तपयवीटो १५ ‘ण किंचि १६ गम सज्जा १७ य वुत्तो १. नियत्तामो २० मादिपहि २२ प्यारत्थं २३ हो पासे २५ अणुन म २४ जे विमग्गिऊगं २५ त नन्य २८ इम नु सय ३० जियसतुं ३२ मि सब १९ जण सोया, जे ७५ काल कारण २. जोगे सराण एत्तो, कुणति ७९ चविओ । भत्तीए बदणं तुठा । जे ७९य जोइससुरो २२ 'अभिणव जे क,मु 'नियाणभूओ २३ 'चलन्तोरु गहिओ जे,क.मु २३ अत्यमिओ. पंचदंडा २३ दिश्मनाहो पंचडडा ०३ मइलेनो ८५ सुरलोगे २५ जघाटी ८६ चविया २६ हासपसरिय-संखों अवज्झओ २९ राघोणं ९१ अणमिस ओहिविस ९३ जस्सेसा सु ३३ केवलं नाणं जे क ९४ । जे य इम गुण २४ गया नग्गणा ९५ जाणन्ति सुरगणा य ९५ "न्ति तओ दो जे,क रामगोवित्ती ९६ अभिलसिया वीओ ९७ पियरिं मो ओ पेरविओ ९८ विओगे विव निययकाजेणं १०० संघ मोत्तण ११ पने १०. पत्तो य संघ ईमालईए १०. पत्तो संघस्सहिओ १५ हानिन क १०२ पते ५० उजाणाल . १०३ सामी ५१ मादीए १०४ पते ५१ पणमिय स १०५ धूयं च नाग ५६ बस-कलिल-सिभ' १०६ तासपुरओ य जो हत्थि वध . .. १०७ वमो उरू ५८ घरेट १०८ कस्स व दु अजमाइय १०९ गिहाओ ६० करेहि क ११२ उज्जया ६२ मणिऊण ११२ अवगू मेच्छ हतूणमु ११३ सु वरणेण मह भवणे जे ६६ 'नियोगेण ११५ सो धो क ६७ पवनो, ११६ खररज्जूहि स बद्धो दोण्ड वि क ११६ पभायं मे ६८ कहेति जे.क ११६ किलीस ६८ जत्थट्टाण क ११७ धण-सयण-बन्धुर' जे,क ६९ या किवालू जे,क ११९ अनलप्पभो ७. य दो वी, जेक मु १२० हो तो केवली अण्णे जे ७३ तहिं गन्तुं क १२१ नेवाणं जे,क ७३ °णं पयया , १२१ होति :18 'पउमा नाम सम्मत्तं उद्देश-३० जे ५८ .M. २ देवाणिय उवभोगा २ 'उवकरण ४ वोलेंताणं ४ नयरं সন HTM १२ ८ एही में १० एय जणो १० अभिमुहु हो १० 'हा थ(ठ)ति निब्भराइण्णं १२ गहगणाइन्नं १७ गोणसेहि १७ रद्दसुतेहि १८ धणुवरगहेहि विउडिउं ,, ३५ जावुलावो ३५ वेसिणी 'लिपुई ३६ णो विय ३६ पसयच्छी ३७ अरीणदम तुहं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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