Book Title: Paumchariyam Part 2
Author(s): Vimalsuri, Punyavijay, Harman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 323
________________ ७. पाठान्तराणि ८८ सुहावगाढा ८८ कमलोयर ८८ यरभत्तिजुत्ता पत्थाणे स सम्मत्तो जे,क,ख क तो 44. 444444 उद्देश-११ ३३ परमली ३४ नईय मा ३५ नदीऍ मा ३५ उयहिम थणजुयलं ४० थणे ४१ परिगेहि ४३ "निउंडण ४५ नदीपुलीणे ४६ चिय ४. वालुयाए पुलिणे गवेसह ४९. पवेसिया ५० नदी ५. सुरोय म ५१ नदिसलिलं ५१ ‘ण तओ मु क,ख ४४ हत्था निग्गणुज्जय मईया । ५९ सरभ-केसरि ६१ सिलापहे ६४ राहणिय ६५ कत्तो ते पवजा, ६६ घेत्तामि ६८ अह खुविऊण अक्खुविऊण ६९ 'बन्धणोमूलं ७. भीओदय ७. खुसिय ___ अट्ठा चउट्ठाणे ७२ सहियाओ क,ख ७३ 'खेडयकवयतोमरा हत्था जे कप्पतोमरविहत्था मु कापतोमरा इत्था क,ख ७८ रवो को ८. हे य वित्यरिओ ८. पहिया य ८७ दहवयणो ८८ नियम बाहुँ क,ख जिणइंद निवमि पउमपभ ससिनिभं ससिप्पहं ९२ दत्तं जे ९२ पणमितो ९५ कायजोगेसु क,ख सुवुरिस तुट्टो य तुह द पगामेमि 'ण भणि ओ ध ण मुणिो ध १.. फणिमणि' १०० मणिमयूह १.१ पसत्थं १०२ अहिउञ्जि १०४ तिपरिवारं ज,क,ख १.४ पुबन्तो १०४ मङ्गलसतेनु मङ्गलसएहि १०५ मयलमणतं, १०६ विचिट्ठियं १०६ दिव्वाणि स' १०६ सुणेति इइ प जे,क,ख 'नेव्याणग जे उद्देसओ स जे,क,च सम्मत्तो उद्देश-१० २ सिरिमतीए जे २ "हिवस्सदुहिया तारा ३ तुट्ठो ३ अमिलसइ ४ चिन्तेन्तो ४ चिन्तन्तो ६ कस्सेस पवरकना ज,क,ख ६ परिकहेद चिराउ ओ क ,ख १७ रयणग्यदाणेणं १८ दाणविभवेणं १९ वियारयाण २. 'म्बो, गेह अदिबो , २० हयमीको अयमीको सुजडो । उक्को उ किकिन्धी ॥ जे २१ लो गावालसु क,ख २१ अन्ने व य वह जे "वा महासूरा २२ अक्खोहणी क,ख। २३ वाहणादीया २७ ओ तस्स २८ परियरावासोजे,क, यं विमला ॥ जे ३. सुलीणपवहा , वरसरिविमुक्कं क,ख ३३ पवरनदी ५३ मङ्गलसतेहि ५४ उत्तिष्णो ५६ चक्कासि ५९ तुरियं सरीरे ३ जिगहराई ४ पडिमाकुद्धा ४ पुवदिसं पुषदिसा ५ अह एत्तो ५ नरवसभो नरनाहो शीर्षक: यज्ञोत्पत्तिः ६ कहेह ७ समहुराएँ ७ इक्वाग 'उज्जयमतीओ १० वणुइस १० अत्रज्झाओ १२ नरयगामिओ १३ सत्धिमतीप १५ तेग पि ती ख १५ सत्थिमती १६ ओ मे दइओ १८ पय? १८ नदीतडत्थं २० निमुणिऊणं २४ धम्मधरा २५ त्तो यजेसु २५ जा यविजा २५ कूरपडिमुक्का ३२ एक्कयरं ३४ भणियमित्ते ख ११ "म्मागम पितिमेह' ४२ पतेसु १२ सएस नामे य जे १५ धम्मुज्जय कविरा ६२ एतं द ७. ले, धणभंगुच्छां ७० कामते ७१ ताव चिय ७३ "उत्तमङ्गो ७३ केग व ७४ मुणिवसभो "यमती भो ७७ हिया ८१ इ विहेउं । ८१ सरए य घ ८४ अतीयकाले ८५ / जइहं पढमयर ।चिय, परि ८८ भुवणेसु ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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