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११०. लवण-ऽङ्कसतबोवणपवेसविहाणपव्वं अह तत्थ दोण्णि देवा, कुऊहली रयणचूल-मणिचूला। नेहपरिक्खणहेउ, समागया राम-केसीणं ।। १ ।। राम सोऊण मयं, केरिसियं कुणइ लक्खणो चेट्टं ? । रूसइ किंवा गच्छइ ?, किं वा परिभासए वयणं? ॥ २॥ अहवा सोगाउलियं, पेच्छामो लक्खणस्स मुहयन्दं । ते एव कयालाबा, साएयपुरि अह पविट्ठा ॥ ३ ॥ देवा रामस्स घरे, कुणन्ति मायाविणिम्मियं सदं । पउमो मओ मओ त्ति य, वरजुवईणं चिय विलावं ॥ ४ ॥ रामस्स मरणसई, सोउं अक्कन्दियं च जुबईहिं । लच्छीहरो विसणो, जंपइ ताहे इमं वयणं ।। ५॥ हा किं व इमं वत्तं, एव भणन्तस्स तस्स सयराहं । वायाएँ समं जीयं, विणिग्गयं लच्छिनिलयस्स ॥ ६ ॥ कञ्चणथम्भनिसन्नो, अणिमोलियलोयणो तहावत्थो । लक्खिज्जइ चकहरो, लेप्पमओ इव विणिम्मविओ ॥ ७ ॥ दट्टण विगयजीयं, सोमित्तिं सुरवरा विसण्णमणा । निन्दन्ति य अप्पाणं, दोण्णि वि लज्जासमावन्ना ॥ ८ ॥ लक्षणमरणनिहेणं, एएणं एत्थ पुषविहिएणं । जायं परितावयर, अम्हाण मणं तु अप्पाणं ॥ ९ ॥ पच्छातावुम्हविया, जीयं दाऊण तस्स असमत्था । निन्दन्ता अप्पाणं, सोहम्मं पत्थिया देवा ॥ १० ॥ असमिक्खियकारीणं, पुरिसाणं एत्थ पावहिययाणं । सयमेव कयं कम्मं, परितावयरं हवइ पच्छा ॥ ११ ॥ सुरवरमायाएँ कयं, कम्म अविजाणिऊण जुबईओ। पणयकुविओ त्ति काउं, सवाउ पई पसाएन्ति ॥ १२ ॥ एक्का भणइ सुभणिया, जोबणमयगवियाएँ पावाए । सामि! तुम रोसविओ, कवणाए पावबुद्धीए ॥ १३ ॥ पणयकलहम्मि सामिय!, भणिओ नं अविणयं तुम ताए । तं अम्ह खमसु संपइ, जंपसु महुराएँ बायाए ॥ १४ ॥
११०. लवण और अंकुशका तपोवनमें प्रवेश रत्नचूल और मणिचूल नामके दो देव कुतूहलवश राम और लक्ष्मणके स्नेहकी परीक्षा करनेके लिए वहाँ आये । (१) रामको मृत सुनकर लक्ष्मण कैसी चेष्टा करता है? कैसा रुष्ट होता है, कैसे जाता है और कौनसे वचन कहता है ? (२) अथवा लक्ष्मणके शोकाकुल मुखचन्द्रको हम देखें। इस तरह बातचीत करके वे साकेतपुरीमें प्रविष्ट हुए। (३) रामके महलमें मायानिर्मित शब्द करने लगे कि राम मर गये, राम मर गये और सुन्दर युवतियोंका विलाप भी किया। (४) रामकी मृत्युका शब्द और युवतियोंका आक्रन्दन सुनकर दुःखी लक्ष्मणने तब यह वचन कहा । (५) 'हा! यह क्या हुआ ?'ऐसा कहते हुए उस लक्ष्मणके वाणीके साथ प्राण भी निकल गये । (६) सोनेके स्तम्भका अवलम्बन लेकर बैठा हुआ तथा खुली आँखोंवाली-ऐसी अवस्था में स्थित लक्ष्मण मूर्ति जैसा बन गया हो ऐसा प्रतीत होता था। (७)
लक्ष्मणको निर्जीव देखकर मनमें खिन्न दोनों देव लजित होकर अपने आपको निन्दा करने लगे-(८) पूर्वकर्मोंसे विहित लक्ष्मणके इस मरणके कारण हमारा अपना मन हमें परितापजनक हो गया है। () पश्चात्तापसे तप्त और उसके लिए अपने प्राण देने में असमर्थ वे देव अपनी निन्दा करते हुए सौधर्म देवलोककी ओर गये । (१०) मनमें पापयुक्त और असमीक्ष्यकारी पुरुषोंके लिए अपना किया हुआ कार्य बादमें दुःखजनक हो जाता है। (११) -
देवताओंकी मायासे यह कार्य हुआ यह न जानकर सब युवतियाँ, 'प्रणय-कुपित हैं' ऐसा मानकर पतिको प्रसन्न करने लगी। (१२) एक वचन-कुशल युवतीने कहा कि, नाथ ! यौवनमदसे गर्वित किस पापबुद्धि और पापी स्त्रीने आपको रुष्ट किया है ? (१३) हे स्वामी ! प्रणय-कलहमें उसने आपसे जो अविनययुक्त कहा हो उसके लिए आप हमें क्षमा करें। अब आप मधुर वाणीसे बात करें। (१४) सुन्दर कमलके समान कोमलांगी कोई स्त्री स्नेहसे युक्त आलिंगन करने लगी तो
१. बत्तं, इमं भ.-मु.। २. •मओ चेव निम्म०-मु.। ३. महुरक्खराए वायाए–प्रत्यः ।
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