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१०२. रामधम्मसवणविद्दा गपव्वं
बारस सणकुमारे, माहिन्दे चेव अट्ठ लक्खाई । चत्तारि पुणो बम्भे, विमाणलक्खा तहिं होन्ति ॥ पन्नाससहस्साईं, संखाए लन्तए विमाणा । तत्तो य महासुक्के, चचालीसं सहस्साई ॥ छचेव सहस्सखल, हवन्ति कप्पे तहा सहस्सारे । आणय-पाणयकप्पेसु होन्ति चचारि उ सयाई ॥ तिण्णेव सया भणिया, आरणकप्पे तहऽचुए चेव । तिण्णि सया अट्ठारस, उवरिमगेवेज्जमाईसु ॥ पाइक - तुरय-रह-गय- गोविस - गन्धब- नट्टियन्ताइं । अणियाई होन्ति एयाइं सत्त सक्कस्स दिबाई ॥ बाउ हरि मायली वि य, तहेव एरावणो य दोमिडी । रिट्ठञ्जस णीलंनस, एए अणियाण मयहरया ॥ तत्थ सुधम्मविमाणे, एरावणवाहणो उ वज्जधरो । इन्दो महाणुभावो, जुइमन्तो रिद्धिसंपन्नो ॥ चत्तारि लोगपाला, जम- वरुण - कुवेर - सोममाईया | सामाणियदेवाण वि, चउरासीइं सहस्साइं ॥ तत्थ सुधम्मसहाए, परिसाओ तिण्णि होन्ति देवाणं । समिया चन्दा नउणा, भणाभिरामा रयणचित्ता ॥ पमा सिवाय सुलसा, अञ्जु सामा तहा, विहा अयला । कालिन्दी भाणू वि य, सकस्स य अग्गमहिसीओ एक्केक्का वरजुवई, सोलसदेवीसहस्सपरिवारा । उत्तमरूवसिरोया, संक्कं रामेन्ति गुणनिलया ॥ सो ताहि समं इन्दो, भुञ्जन्तो उत्तमं विसयसोक्खं । कालं गमेइ बहुयं, विसुद्धलेसो तिनाणीओ ॥ सो तस्स विउलतवपुण्णसंचओ संनमेण निप्पन्नो । नं चइज्जइ वण्णेडं, अवि वाससहस्सकोडीहिं ॥ एवं अन्ने विसुरा, हाणुरूवं सुहं अणुहवन्ता । अच्छन्ति विमाणगया, देविसहस्सेहिं परिकिष्णा ॥ एवं ह सोहम्म, तह ईसाणाइएस वि कमेणं । कप्पेसु होन्ति इन्दा, सलोगपाला सदेवीया ॥ दो सत्त दस य चोइस, सतरस अट्ठार वीस बावीसा । एक्कोत्तर परिवड्डी, अहमिन्दाणं तु तेत्तीस ॥
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सनत्कुमारमें बारह लाख, माहेन्द्र में आठ लाख और ब्रह्मलोकमें चार लाख विमान होते हैं । ( १५० ) लान्तक में विमानोंकी संख्या पचास हजार है। महाशुक्रमें चालीस हजार विमान हैं । (१५१) सहस्रार कल्पमें छः हजार ही विमान होते हैं। आनत एवं प्राणत कल्पोंमें चार सौ होते हैं । (१५२) आरण एवं अच्युतकल्पमें तीन सौ ही विमान कहे गये हैं। ऊपरके ग्रैवेयक आदिमें तीन सौ अठारह होते हैं । (१५३) पदाति सैनिक, अश्व, रथ, हाथी, वृषभ, गन्धर्व और नर्तक - ये सात दिव्य सैन्य इन्द्रके होते हैं । ( १५४) वायु, हरि, मातलि, ऐरावत, दामर्थि, रिष्टयशा और नीलयशा- ये सेनाओंके नायक हैं । (१५५) वहाँ सुधर्मा नामक विमानमें रहा हुआ इन्द्र ऐरावतका वानवाला, वज्रको धारण करनेवाला उदात्तमना, द्युतिमान् तथा ऋद्धिसम्पन्न होता है । (१५६) उसके यम, वरुण, कुबेर और सोम ये चार लोकपाल तथा चौरासी हजार सामानिक देव होते हैं । (१५७) वहाँ देवोंकी सुधर्म नामक सभाकी मनोहर एवं रत्नोंसे शोभित शमिता चन्द्रा व यमुना नामकी तीन परिषद् होती हैं । (१५८) पद्मा, शिवा, सुलसा, अंजू, श्यामा, विभा, अचला, कालिन्दी और भानु—ये शक्रकी पटरानियाँ हैं । (१५६) उत्तम रूप और कान्ति से सम्पन्न और गुणोंके आवासरूप इन सुन्दर युवतियों में से एक-एकका परिवार सोलह हजार देवियोंका होता है । ये इन्द्र के साथ रमण करती हैं । (१६०) विशुद्ध लेश्या और तीन ज्ञानवाला वह इन्द्र इनके साथ उत्तम विषयसुख का अनुभव करता हुआ बहुत समय बिताता है । (१६१) उसके संयमसे निष्पन्न विपुल तप एवं पुण्यके संचयका वर्णन तो हजारों करोड़ वर्षों में भी नहीं किया जा सकता । (१६२) इसी प्रकार हज़ारों देवियोंसे घिरे हुए दूसरे भी देव यथानुरूप सुखका अनुभव करते हुए विमानोंमें रहते हैं । (१६३) जिसप्रकार सौधर्म में उसीप्रकार अनुक्रमसे ईशान आदि कल्पों में भी लोकपाल एवं देवियोंसे युक्त इन्द्र होते हैं । (१६४) दो, सात, दस, चौदह, सत्रह, अठारह, बीस, बाईस और फिर एक एक की वृद्धि करते हुए अहमिन्द्रोंके तेत्तीस - इतने सागरोपम कल्पवासी देवोंकी उत्कृष्ट आयु होती है । मोहरहित अहमिन्द्रोंकी तो यह आयु नियत होती है, अर्थात्
१. दामिट्ठी मु० । २. सका रामेइ-मु० । ३. गुण किलया - प्रत्य० । ४. न वि नज्जइ व० मु० । ५. तेत्तीसा - प्रत्य• ।
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