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१०३. रामपुव्वभव-सीयापव्वज्जाविहाणपव्वं
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सबायरेण तइया, उद्धरिओ रावणेण कइलासो । अगुट्टएण सो पुण, नीओ वाली ण संखोहं ॥ झाणाणलेण डहिउँ, निस्सेसं कम्र्मकयवरं बाली । संपत्तो परमपयं, अजरामरनीस्यं ठाणं ॥ एवं अन्नोन्नवहं, कुणमाणा पुब बद्धदढवेरा । संसारे परिभमिया, दोण्णि वि वसुदत्त - सिरिकन्ता ॥ जेणं सा वेगवई, आसि सयंभुस्स वल्लहा तेणं । अणुबन्धेणऽवहरियां, सीया वि हु रक्खसिन्देणं ॥ नो 'बिय सो सिरिभूई, वेगवईए कए सयंमूणा । वहिओ धम्मफलेणं, देवो नाओ विमाणम्मि ॥ चइउं पइट्ठनयरे, पुणवसू खेयराहिवो जाओ । महिलाहेउ सोयं, करिय नियाणं च पब इओ ॥ १३८ ॥ काऊ तवं घोरं, सणकुमारे सुरो समुत्पन्नो । चइओ सोमित्तिसुओ, नाओ वि हु लक्खणो एसो ॥ १३९ ॥ सत्तू जेण सयंभू, सिरिभूइपुरोहियस्स आसि पुरा । तेण इह मारिओ सो, दहवयणो लच्छिनिलएणं ॥ १४० ॥ जो जेण हओ पुवं, सो तेण वहिज्जए न संदेहो । एसा ठिई बिहीसण, संसारत्थाण जीवाणं ॥ १४१ ॥ एवं सोऊण इमं, जीवाणं पुबवेरसंबन्धं । तम्हा परिहरह सया, वेरं सबे वि दूरेणं ॥ वयणेण वि उब्बेओ, न य कायबो परस्स पीडयरो। "सीयाऍ नहऽणुभूओ, महाववाओ वयणहेऊ ॥ मण्डलिया उज्जाणे, सुदरिसणो आगओ मुणिवरिन्दो । दिट्ठो य वन्दिओ सो, सम्मद्दिट्ठीण लोएणं ॥ साहुं पलोइउं सा, वेगवई कहइ सयललोयस्स । एसो उज्जाणत्थो, महिलाऍ समं मए दिट्टो ॥ तत्तो गामनणेणं, अणायरो मुणिवरस्स आढत्तो । तेण वि य कओ सिग्धं, अभिग्गहो धीरपुरिसेणं ॥ न मज्झ इमो दोसो, फिट्टिहिइ असण्णिदुज्जणनिउत्तो । तो होही आहारो, भणियं चिय एव साहूणं ॥ १४७॥
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१. ०म्मरयमलं वा० – मु० । २. पुव्ववेरपविद्धा । सं० प्रत्य० । ३. वि हु सो— प्रत्य० धम्मफलेलं देवो जाओ अह वरचिमाणम्मि—मु० । ५. वि दुब्बाओ - मु० । ६. सीयाए जह अणुओ, म०
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साथ विरोध करके वैराग्ययुक्त उसने दीक्षा ली और धीर-गम्भीर उसने कैलास पर्वत पर तप किया । (१३२) उस समय सर्वथा निर्भय होकर रावणने कैलास उठाया और वालिने अंगूठे से उसे संक्षुब्ध किया । (१३३) ध्यानरूपी अभिसे समय कर्म कचरे को जलाकर वालिने अजर, अमर, और रजहीन मोक्ष स्थान प्राप्त किया । (१३४)
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इस तरह पहले बाँधे हुए दृढ़ वैरभावके कारण एक-दूसरेका वध करते हुए वसुदेव और श्रीकान्त दोनों संसारमें घूमने लगे । (१३५) स्वयम्भूकी वल्लभा वेगवती थी वह कर्मविपाकवश सीताके रूपमें राक्षसेन्द्र रावण द्वारा अपहृत हुई । (१३६) वेगवती के लिए जो श्रीभूति स्वयंभूके द्वारा मारा गया था वह धर्म के फलस्वरूप विमानमें देव हुआ । (१३७) वहाँसे च्युत होकर वह प्रतिष्ठनगर में विद्याधरों का राजा पुनर्वसु हुआ । पत्नीके लिए शोक और निदान करके उसने दीक्षा ली । (२३८) घोर तप करके सनत्कुमार देवलोकमें वह देवरूपसे पैदा हुआ। वहाँसे च्युत होने पर सुमित्राका पुत्र यह लक्ष्मण हुआ है । ( १३६) चूँकि पूर्वजन्म में स्वयम्भू श्रीभूति पुरोहितका शत्रु था, इसलिए लक्ष्मणने इस जन्म में उस रावणका वध किया । (१४०) जो जिसको पूर्वभवमें मारता है वह उसके द्वारा मारा जाता है, इसमें सन्देह नहीं । हे विपण ! संसार में रहनेवाले जीवोंकी यह स्थिति है । (१४१ ) इस तरह जीवोंके पहलेके चैर के बारेमें तुमने यह सुना । अतः सबलोग वैरका दूरसे ही त्याग करें । (१४२) वचनसे दूसरेको पीड़ा देनेवाला उद्वेग नहीं करना चाहिए उदाहरणार्थ - वचन के कारण सीताने बड़े भारी अपवादका अनुभव किया । (१४३)
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एक बार मण्डलिक उद्यान में सुदर्शन नामक मुनि पधारे। सम्यग्दृष्टि लोगोंने उनका दर्शन एवं वन्दन किया । (१४४) साधुको देखकर उस वेगवतीने सब लोगों से कहा कि उद्यानमें ठहरे हुए इस मुनिको मैंने स्त्रीके साथ देखा था । (१४५ ) तब गाँव के लोगोंने मुनिवरका अनादर किया । उस धीर पुरुषने भी शीघ्र ही अभिग्रह किया कि अज्ञानी और दुर्जन लोगों द्वारा आरोपित यह दोष जब दूर होगा तभी मेरा भोजन होगा । उसने साधुओंसे यह कहा भी । (१४६-१४७)
४. • वइकएण संभुणा वहिओ । प्रत्य० । ७. सत्बैलो० - प्रत्य० ।
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