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पउमचरियं
बम्भिन्दो वि य चविउँ, जाओ अवराइयाऍ देवीए । दसरहनिवस्स पुत्तो, रामो तेलोक्कविक्खाओ ॥ ११६ ॥ नो सो नयदत्तसुओ, धणदत्तो आसि बम्भलोगवई । सो हु इमो पउमाभो, बलदेवसिरिं समणुपत्तो ॥ ११७॥ वसुदत्तो वि य जो सो, सिरिभूई आसि बम्भणो तइया । सो लक्खणो' य जाओ, संपइ णारायणो एसो ॥११८॥ सिरिकन्तो य सयम्भू, कमेण जाओ पहासकुन्दो सो । विज्जाहराण राया, जाओ लङ्काहिवो सूरो ॥ ११९ ॥ सागुणमई कमेणं, सिरिभूइपुरोहियस्स वेगवई । दुहिया बम्भविमाणे, देवी इह बट्टए सीया ॥ १२० ॥ जो आसि गुणमईए, सहोयरो गुणधरो चि नामेणं । सो नणयरायपुत्तो, नाओ भामण्डलो एसो ॥ १२१ ॥ जो नन्नवक्कविप्पो, सो हु बिहीसण ! तुमं समुप्पन्नो । वसहद्धओ वि जाओ, सुग्गीवो वाणराहिवई ॥१२२॥ एए सबे वि पुरा, आसि निरन्तरसिणेहसंबन्धा । रामस्स तेण नेहं, वहन्ति निययं च अणुकूला ॥ १२३ ॥ एत्तो बिहीसणो पुण, परिपुच्छइ सयलभूसणं नमिउं । वालिस्स पुबनणियं, कहेहि भयवं ! भवसमूहं ॥ १२४॥ निसुणसु बिहीसण! तुमं, एक्को परिहिण्डिऊण संसारं । नीवो कम्मवसेणं, दण्डारणे मओ जाओ ॥ १२५॥ साहुं सज्झायंतं, सुणिऊणं कालधम्मसंजुत्तो । उप्पन्नो एरखए, मघदत्तो नाम धणवन्तो ॥ १२६ ॥ तस्स पिया विहियक्खो, सुसावओ सिवमई हवइ माया । मघदत्तस्स वि जाया, निणवरधम्मे मई विउला ॥१२७॥ पञ्चाणुद्दयधारी, मओ य सो सुरवरो समुत्पन्नो । वरहार-कुण्डलधरो, निदाहरविसन्निहसरीरो ॥ १२८ ॥ चइओ पुबविदेहे, गामे विजयावईऍ आसन्ने । अह मत्तकोइलवे, कंतासोगो तर्हि राया ॥ तस्स रयणावईए, भज्जाए कुच्छिसंभवो नाओ । नामेण सुप्पभो सो, रज्जं भोत्तूण पवइओ ॥ चरिय तवं कालगओ, सबट्ठे सुरवरो समुत्पन्नो । तत्तो चुओ वि जाओ, वाली आइचरयपुत्तो ॥
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काऊ विरोहं जो, तइया सह रावणेण संविग्गो । पबइओ कइलासे, कुणइ तवं धीरगम्भीरो ॥ अपराजिता देवीसे दशरथका पुत्र तीनों लोकों में विख्यात रामके रूपमें पैदा हुआ । (११६) जो नयदत्तका पुत्र ब्रह्मदत्त ब्रह्मलोकका स्वामी था, उसीने इस रामके रूपमें बलदेवका ऐश्वर्य प्राप्त किया । ( ११७) जो वसुदन्त उस समय श्रीभूति ब्राह्मण था वही लक्ष्मण हुआ । इस समय वह नारायण है । (११८) श्रीकान्त जो क्रमशः स्वयम्भू और प्रभासकुन्द हुआ था वह, विद्याधरों का राजा शूरवीर रावण हुआ । ( ११६ ) वह गुणमती अनुक्रमसे श्रीभूति पुरोहितकी वेगवती पुत्री और ब्रह्मविमान में देवी होकर यहाँ सीता के रूपमें है । (१२०) गुणमतीका गुणधर नामक जो भाई था वह जनकराजका पुत्र यह भामण्डल हुआ है । (१२१) जो याज्ञवल्क्य ब्राह्मण था वह विभीषण के रूपमें उत्पन्न हुआ है। वृषभध्वज वानराधिपति सुग्रीव हुआ है । (१२२) ये सब पहले निरन्तर स्नेहसे सम्बद्ध थे । इससे सतत अनुकूल रहनेवाले वे रामके लिए स्नेह धारण करते हैं । (१२३)
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इसके बाद विभीषणने पुनः सकलभूषण से नमन करके पूछा कि, हे भगवन् ! बालिके परभवके जन्मों के बारे में आप कहें । (१२४) इस पर उन्होंने कहा कि, विभीषण! तुम सुनो। संसार में परिभ्रमण करके कोई एक जीव कर्मवश दण्डकारण्य में मृग हुआ । (१२५) साधु द्वारा किये जाते स्वाध्यायको सुनकर काल-धर्मसे युक्त होने पर ( मरने पर) बह ऐरावत क्षेत्र में धनसम्पन्न मघदत्त के नामसे उत्पन्न हुआ । (१२६ उसका पिता सुश्रावक विहिताक्ष और माता शिवमती थी । मदत्तको जिनवरके धर्म में उत्तम बुद्धि हुई । (१२७) पाँच महाव्रतोंको धारण करनेवाला वह मरकर उत्तम हार एवं कुण्डल धारण करनेवाला तथा ग्रीष्मकालीन सूर्यके समान तेजस्वी शरीरवाला देव हुआ । ( १२८) च्युत होने पर वह पूर्वविदेह में आई हुई विजयावती के समीपवर्ती मत्त कोकिलरव नामक ग्राम के कान्ताशोक राजाकी भार्या रत्नावतीकी कुक्षिसे सुप्रभ नामसे उत्पन्न हुआ । राज्यका उपभोग करके उसने प्रव्रज्या ली । (१२६-१३०) तप करके मरने पर वह सर्वार्थसिद्ध विमानमें देवके रूप में उत्पन्न हुआ । वहाँसे च्युत होने पर आदित्यराजाका पुत्र वालि हुआ । (१३१) उस समय रावणके
१. ०णी पहाणी, संपइ नारा० - मु० । २. ० स समणं । वा०मु० । ३. सिरिमई - मु० । ४. कयलासे – प्रत्य• ।
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