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६६. ५१] ६६. लवणं-ऽकुसजुज्झपव्वं
५१३ एत्तो पासल्लीणं, विराहियं भणइ राहवो सहसा । हरि-गरुड-वाहण-धयं, रणपरिहत्थं कुणह सेन्नं ॥ ३५ ॥ भणिऊण वयणमेयं, नन्दोयरनन्दणेण आहूया । सबे वि नरवरिन्दा, समागया कोसलानयरिं ॥ ३६ ॥ दट्ठण राहवबलं, सिद्धत्थो भणइ नारयं भीओ। भामण्डलस्स गन्तुं, एयं साहेहि वित्तन्तं ॥ ३७ ॥ तो नारएण गन्तुं, वित्तन्ते साहिए अपरिसेसे । जाओ दुक्खिये विमणो, सहसा भामण्डलो राया ॥ ३८ ॥ सोऊण भाइणेज्जे, आसन्ने रणवलेण महएणं । भामण्डलो पयट्टो, समयं पियरेण पुण्डरिय ।। ३९ ।। माया-वित्तेण समं, समागयं भायरं पलोएउ । सीया भवणवराओ. विणिग्गया निब्भरसिणेहा ॥ ४० ॥ सीया कुणइ पलावं, कलुणं पिउ-भाइ-माइसंजोए । निवासणाएँ दुक्खं, साहेन्ती जं जहावत्तं ।। ४१ ॥ संथाविऊण बहिणि, नंपइ भामण्डलो सुणसु देवी! । रणसंसयं पवन्ना, तुज्झ सुया कोसलपुरीए ॥ ४२ ॥ नारायण-बलदेवा, न य जोहिज्जन्ति सुरवरेहिं पि । लवण-ऽङसेहि खोहं, नीया ते तुज्झ पुत्तेहिं ॥ ४३ ॥ जाव न हवइ पमाओ, ताण कुमाराण देवि ! एत्ताहे । गन्तूण कोसला हं, करेमि परिरक्खणोवायं ॥ ४४ ॥ सोऊण वयणमेयं, सीया भामण्डलेण समसहिया । दिबविमाणारूढा, पुत्ताण गया समीवम्मि ॥ ४५ ॥ अह ते कुमारसीहा, मायामहजुवलयं च जणणि च । संभासन्ति य माम, सयणसिणेहेण परितुद्रा ।। ४६ ॥ को राम-लक्खणाणं, सेणिय ! वण्णेइ सयलबलरिद्धि ? । तह वि य सुणेहि संपइ, संखेवेणं भणिज्जन्तं ॥ ४७ ।। केसरिरहे विलग्गो, पउमो लच्छीहरो य गरुडङ्क । सेसा वि पवरसुहडा, जाण-विमाणेसु आरूढा ॥ ४८ ।। रायो उ तिसिरनामो, वहिसिहो सीहविक्कमो मेरू । एत्तो पलम्बबाहू, सरहो तह वालिखिल्लो य ॥ ४९ ॥ सूरो य रुद्दभूई, कुलिस्ससवणो य सीहउदरो य । पिहुमारिदत्तनामो, मइन्दवाहाइया बहवे ॥ ५० ॥
एवं पञ्चसहस्सा, नारन्दचन्दाण बद्धमउडाणं । विज्जाहराण सेणिय!, भडाण को लहइ परिसंखं? ॥ ५१ ।। वाहनवाली सेनाको युद्धके लिए तैयार करो । (३५) ऐसा वचन कहकर चन्द्रोदरके पुत्र विराधितके द्वारा बुलाए गए सभी राजा साकेत नगरीमें आये। (३६) रामकी सेनाको देखकर भयभीत सिद्धार्थने नारदसे कहा कि भामण्डलसे जाकर यह वृत्तान्त कहो। (३७) तब नारदने नाकर सारा वृत्तान्त उसे कह सुनाया। उसे सुनकर भामण्डल राजा सहसा दुःखित और विषण्ण हो गया। (३८) भानजे बड़े भारी सैन्यके साथ समीपमें हैं ऐसा सुनकर भामण्डलने पिताके साथ पौण्डरिकपुरकी
ओर प्रयाण किया। (३६) माता-पिताके साथ भाईको आया देख स्नेहसे भरी हुई सीता भवनमेंसे बाहर निकली। (४०) पिता, भाई और मातासे निर्वासनका जैसा हुआ था वैसा दुःख कहती हुई सीता करूण स्वरमें विलाप करने लगी। (४६) बहनको सान्त्वना देकर भामण्डलने कहा कि, देवी ! सुनो। सातपुरी में तुम्हारे पुत्र युद्धके कारण संशयावस्थामें आ पड़े हैं। (४२) देव भी नारायण और बलदेवके साथ युद्ध नहीं कर सकते। वे तुम्हारे पुत्र लवण और अंकुश द्वारा क्षुब्ध किये गये हैं। (४३) हे देवी ! इस समय उन कुमारोंके लिए प्रमाद न हो, अतः मैं अयोध्या जाकर रक्षाका उपाय करता हूँ। (४४) यह वचन सुनकर भामण्डलके साथ सीता दिव्य विमान पर आरूढ़ हो पुत्रोंके पास गई । (४५) वजन के स्नेहसे आनंदमें आये हुए वे कुमारसिह नाना-नानीके युगल तथा माता एवं मामाके साथ वार्तालाप करने लगे। (४६)
हेणिक ! राम और लक्ष्मणके समग्र सैन्यकी ऋद्धिका वर्णन कौन कर सकता है ? फिर भी तुम संक्षेपसे कही जाती उस ऋद्धिके बारेमें सुनों। (४) केसरी रथमें राम और गरुड़से चिह्नित रथमें लक्ष्मण बैठे थे। बाक़ीके उत्तम सुभट यान एवं विमानोंमें सवार हुए थे। (४८) त्रिशिर नामका राजा, वह्निशिख, सिंहविक्रम, मेरु, प्रलम्बवाहु, शरभ, वालिखिल्य, सूर्य, रुद्रभृति, कुलिशश्रवण, सिंहोदर, पृथु, मारिदत्त, मृगेन्द्रवाहन आदि बहुत-से राजा थे। ऐसे पाँच हजार तो विद्याधरों के मुटुधारी राजा थे। हे श्रेणिक ! सुभटोंकी तो गिनती ही कौन कर सकता है। (४९-५१) घोड़ों
१. ०ण एवमेयं-प्रत्य० । २. ० यमणसो, स०-प्रत्यः । ३. सुपिउ.ण-प्रत्यः । ४. माया पियरेण-प्रत्यः । ५. राओ य-प्रत्यः ।
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