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पउमचरियं
[६६.५२. आसेसु कुञ्जरेसु य, केइ भडा रहवरेसु आरूढा । खर-करह-केसरीसु य, अन्ने गो-महिसयविलग्गा ॥ ५२ ॥ एवं रामस्स बलं, विणिग्गय पहयतूरनिग्धोसं । नाणाउहगहियकर, विमुक्तपाइक्वोक्कारं ॥ ५३ ॥ एत्तो परबलसह. सुणिउं लवण-ऽङकुसानियं सर्व । सन्नद्धं रणदच्छं, अणेयवरसुहडसंघाय ॥ ५४॥ कालाणलंसुचूडा, गवङ्गनेवालबब्बरा पुण्डा । मागहय-पारसउला, कालिङ्गा सीहला य तहा ।। ५५ ।। एक्काहिया सहस्सा, दसनरवसहाण पवरवीराणं । लवण-ऽङ्कुसाण सेणिय!, एसा कहिया मए संखा ।। ५६ ॥ एवं परमवलं तं, राहवसेन्नस्स अभिमुहावडियं । पसरन्तगय-तुरंगं विसमाहयतूरसंघायं ॥ ५७ ॥ जोहा जोहेहि समं, अभिट्टा गयवरा सह गएहिं । जुज्झन्ति रहारूढा, समयं रहिएसु रणसूरा ॥ ५८ ।। खग्गेहि मोग्गरेहि य, अन्ने पहणन्ति सत्ति-कुन्तेहिं । सीसगहिएकमेक्का, कुणन्ति केई भुयाजुझं ॥ ५९ ॥ जाव य खणन्तरेक, ताव य गयतुरयषवरजोहेहिं । अइरुहिरकद्दमेण य, रणभूमी दुग्गमा जाया ।। ६० ॥ बहुतूरनिणाएणं, गयगज्जियतुरय हिंसियरवेणं । न सुणेइ एकमेकं, उल्लावं कण्णवडियं पि ॥ ६१ ॥ जह भूमिगोयराणं, वट्टइ जुझं पहारविच्छड्डे । तह खेयराण गयणे, अभिट्ट संकुलं भीमं ॥ ६२ ।। लवण-ऽङकुसाण पक्खे, ठिओ य भामण्डलो महाराया । विजुप्पभो मयको, महाबलो पवणवेगो य ॥ ६३ ।। सच्छन्द-मियङ्काई, एए विज्जाहरा महासुहडा । लवण-ऽकुसाण पक्खं, वहन्ति संगामसोडीरा ॥ ६४ ।। लवण-ऽङकुससंभूई, सुणिऊणं खेयरा रणमुहम्मि । सिढिलाइउमारद्धा. सबे, सुग्गीवमाईया ॥ ६५ ।। टठण जणयतणय, सुहडा सिरिसेलमाइया पणई। तीए कुणन्ति सबे. समरे य ठिया उदासीणा ॥ ६६ ॥
पर, हाथियों पर तो कोई सुभट उत्तम रथों पर आरूढ़ हुए। दूसरे गधे, ऊँट, सिंह, बैल और भैंसे पर सवार हुए। (५२) इस तरह रणवायोंका बड़ा भारी घोष करता हुआ, हाथमें नानाविध आयुध लिया हुआ तथा प्यादे जिसमें गर्जना कर रहे हैं ऐसा रामका सैन्य निकला । (५३) उधर शत्रुसैन्यकी आवाज सुनकर लवण और अंकुशकी युद्ध में दक्ष और अनेक उत्तम सुभटों से युक्त समय सेना तैयार हो गई। (५४) कालानल, अंशुचूड़, गवंग, नेपाल, बर्बर, पुण्ड्र, मागध, पारसकुल, कलिंग तथा सिंहल-यह लवण और अंकुश के दश अत्यन्त वीर राजाओंकी ग्यारह हजारकी संख्या, हे श्रेणिक ! मैंने तुमसे कही। (५५-६)
इस तरह हाथी और घोड़ोंसे व्याप्त तथा भयंकर रूपसे पीटे जाते वाद्योंके समूह से युक्त वह उत्तम सैन्य रामकी सेनाके सम्मुख उपस्थित हुआ। (५७) योद्धा योद्धाओंके साथ और हाथी हाथियोंके साथ भिड़ गये। रणशूर रथिक रथिकोंके साथ युद्ध करने लगे। (५८) कोई तलवार और मुद्गरसे तो दूसरे शक्ति और भालों से प्रहार करते थे। कोई एक-दूसरेका सिर पकड़कर बाहुयुद्ध करते थे। (५९) एक क्षणभर बीतने पर तो हाथी, घोड़े एवं उत्तम योद्धाओंसे तथा रक्तजन्य अत्यधिक कीचड़से रणभूमि दुर्गम हो गई । (६०) बहुत-से वाद्योंके निनादसे तथा हाथियोंकी चिंघाड़ एवं घोड़ोंकी हिनहिनाहटसे कानमें पड़ा हुआ एक-दूसरेका शब्द सुनाई नहीं पड़ता था। (६१) आयुध जिसमें फेंके जा रहे हैं ऐसा भूमि पर चलनेवाले मनुष्योंका जैसा युद्ध हो रहा था वैसा ही आकाशमें खेचरोंके बीच संकुल और भयंकर युद्ध हो रहा था। (६२) लवण और अंकुशके पक्षमें महाराज भामण्डल स्थित हुआ। विद्युत्प्रभ, मृगांक महाबल, पवनवेग, स्वच्छन्दमृगांक आदि युद्ध में वीर महासुभट विद्याधरोंने लवण और अंकुराका पक्ष लिया। (६३-४) लवण और अंकुशकी विभूतिके बारेमें सुनकर युद्ध में सुीव आदि सब खेचर शिथिल होने लगे । (६५) जनकपुत्री सीताको देखकर हनुमान आदि सुभटोंने उसे प्रणाम किया और वे युद्धसे उदासीन हो गये। (६६)
१. गुणिऊण लवं-ऽङ्कुसा णिययसेण्यं । स.-प्रत्य० । २. ०ण धीरपुरिसाणं । ल०-प्रत्य०। ३. •तुरंगमविस०-मु.। ४. सीसं गहिएकामणा, कु.-प्रत्य०। ५. गयनिवह जोहणिवहेहि-प्रत्य०। ६. यहेसिय-प्रत्य० ।
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