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पउमचरियं
[६८.६३उत्तरिऊण य सिन्धु', अवरेण निणन्ति ते बहू देसा । आरिय-अणारिया वि य, इमेहि नामेहि नायबा ॥६३॥ आहीर-बोय-जवणा, कच्छा सगकेरला य नेमाला । वरुला य चारुवच्छा, वरावडा चेव सोपारा ॥ ६४ ॥ कसमीर-विसाणा वि य, विज्जातिसिरा हिडिंबयं-ऽबट्टा । सूला बब्बर-साला, गोसाला सरमया सबरा ॥ ६५ ॥ आणंदा तिसिरा वि य. खसा तहा चेव होन्ति मेहलया। सुरसेणा वल्हीया. खंधारा कोल-उलुगा य ॥६६॥ पुरि-कोबेरा कुहरा, अन्धा य तहा कलिङ्गमाईया । एए अन्ने य बहू, लव-ऽङ्कुसेहिं जिया देसा ॥ ६७ ॥ एवं लव-ऽकुसा ते, सेविज्जन्ता नरिन्दचक्केणं । पुणरवि पुण्डरियपुरं, समागया इन्दसमविहवा ॥ ६८ ॥ सोऊण कुमाराणं, आगमणं वज्जजङ्घसहियाणं । धय-छत्त-तोरणाई, लोएण कया नयरसोहा ॥ ६९ ॥ उवसोहिए समत्थे, पुण्डरियपुरे सुरिन्दपुरसरिसे । लवणकुसा पविट्टा, नायरलोएण दीसन्ता ॥ ७० ॥ सीया दट्टण सुए, समागए निग्गया वरघराओ । लवण-ऽङ्कु सेहि पणया, जणणी सबायरतरेणं ॥ ७१ ॥ तीए वि ते कुमारा, अवगूढा हरिसनेहहिययाए । अङ्गेषु परामुट्ठा, सिरेसु परिचुम्बिया अहियं ॥ ७२ ॥
सपस्थिवा सगयतुरंगवाहणा, विसन्ति ते सियकमलायरे पुरे । मणोहरा पयलियचारुकुण्डला, लव-ऽङ्क सा विमलपयावपायडा ॥ ७३ ॥ ॥ इइ पउमचरिए लवङ्कसदेसविजयं नाम अट्ठाणउयं पव्वं समत्तं ।।
९९. लवणं-ऽकुसजुज्झपव्वं एवं ते परमगुणं, इस्सरियं पाविया वरकुमारा । बहुपस्थिवपरिकिण्णा, पुण्डरियपुरे परिवसन्ति ॥१॥
तत्तो कयन्तवयणं, परिपुच्छइ नारओ अडविमज्झे । विमणं गवेसमाणं. जणयसुयं उज्झिउद्देसे ॥२॥ उन्होंने जीत लिये। उनके ये नाम जानो । (६३) आभीर, बोक, यवन, कच्छ, शक, केरल, नेपाल, वरुल, चारुवत्सी, बरावट, सोपारा, काश्मीर, विषाण, विज, त्रिशिर, हिडिम्ब, अम्बष्ट, शूल, बर्बरसाल, गोशाल, शर्मक, शवर, आनन्द, त्रिशिर, खस, मेखलक, शूरसेन, वाइलीक, गान्धार, कोल, उलूक, पुरीकोवेर, कुहर, आन्ध्र तथा कलिंग आदि-ये तथा दूसरे भी बहुतसे देश लवण और अंकुशने जीत लिये। (६४-६७)
इस तरह राजाओंके समूह द्वारा सेवित वे इन्द्रके समान वैभववाले लवण और अंकुश पुनः पौण्डरिकपुरमें लौट आये। (६८) वनजंघके साथ कुमारोंका आगमन सुनकर लोगोंने ध्वज, छत्र, तोरण आदिसे नगरकी शोभा की । (६६) पूर्णरूपसे सुरेन्द्रकी नगरीके समान शोभित पौण्डरिकपुरमें नगरजनों द्वारा देखे जाते लवण और अंकुशने प्रवेश किया। (७०) पत्रोंका आगमन देखकर सीता सुन्दर घरमेंसे बाहर निकली। लवण और अंकुशने माताको सम्पूर्ण श्रादरके साथ प्रणाम किया। (७१) हृदयमें हर्ष और स्नेहयुक्त उसने भी उन कुमारों का श्रालिंगन किया, अंगोंको सहलाया और मस्तकों पर बहुत बार चुम्बन किया । (७२) राजाओंके साथ, हाथी, घोड़े और वाहनसे युक्त, मनोहर, भूमते हुए सुन्दर कुण्डलवाले तथा निर्मल प्रतापसे देदीप्यमान उन लवण और अंकुशने पौण्डरिकपुरमें प्रवेश किया। (७३)
॥ पद्मचरितमें लवण और अंकुशका देशविनय नामक अठ्ठानवेवाँ पर्व समाप्त हुआ। ॥
९९. लवण-अंकुशका युद्धवर्णन इस तरह वे वरकुमार परम उत्कर्ष और ऐश्वर्य प्राप्त करके अनेक राजाओंसे घिरे हुए पौण्डरिकपुरमें रहने लगे। (१ जंगलके बीच जिस प्रदेश में सीताका त्याग किया था वहाँ खोजते हुए दुःखी कृतान्तवदनसे नारदने पूछा । (२) सारा वृत्तान्त कहने
१. ०र-ओय-प्रत्य० । २. गकीरला-प्रत्यः। ३. पाणा-प्रत्यः । ४. ला रसमया-प्रत्यः । ५. खिसा--प्रत्य। ६..णा वण्होया गंधारा कोसला लूया-प्रत्य० । ७. पल्हीया मु.। ८. वसंति-प्रत्य।
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