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पउमचरियं
[७६. १६
भणन्ति तं पणयसिरा महाभडा, सुभे ! तुम कमलसिरी न संसयं । अणोवमं विसयसुहं नहिच्छियं, निसेवसू विमलजसं हलाउहं ॥ २६ ॥ ।। इइ पउमचरिए सीयासमागमविहाणं नाम छहत्तर पबं समत्तं ।।
७७. मयवक्खाणपव्वं अह सो महाणुभावो, भुवणालङ्कारमत्तमायङ्ग । आरूढो पउमाभो, समयं सीसाएँ' सोममुहो ॥ १ ॥ खेयरभडेहि समय, जयसददुग्घुट्टमङ्गलरवेणं । पत्तो रावणभवणं, पविसइ समयं पिययमाए ॥ २ ॥ भवणस्स तस्स मज्झे, थम्भसहस्सेण विरइयं तुङ्गं । सन्तिजिणिन्दस्स घरं.वरकणयविचित्तभत्तीयं ॥ ३ ॥
ओइण्णो य गयाओ, समयं सीयाए रियइ जिणभवणं । रामो पसन्नमणसो, काउस्सग्गं कुणइ धीरो ॥ ४ ॥ रइऊण अञ्जलिउड, सीसे सह गेहिणीऍ पउमाभो । संथुणइ सन्तिनाहं, सब्भूयगुणेहि परितुट्ठो ॥ ५॥ नस्साऽवयारसमए, जाया सबत्थ तिहुयणे सन्ती । सन्ति त्ति तेण नामं, तुज्झ कयं पावनासयरं ॥ ६ ॥ बाहिरचक्केण रिखू, जिणिऊण इमं समज्जियं रज्जं । अब्भिन्तररिउसेन्नं, विणिज्जियं झाणचक्केणं ॥ ७ ॥ सुर-असुरपणमिय ! नमो, बवगयजरमरण ! रागरहिय ! नमो। संसारनासण! नमो, सिवसोक्खसमज्जिय ! नमो ते॥८॥ लच्छीहरो विसल्ला, दोणि वि काऊण अञ्जली सीसे । पणमन्ति सन्तिपडिमं, भडा य सुग्गीवमादीया ॥ ९॥
काऊण थुइविहाणं, पुणो पुणो तिवभत्तिराएणं । तत्थेव य उवविट्ठा, जहासुहं नरवरा सबे ॥ १० ॥ सिर झुकाये हुए महाभट उसे कहते थे कि, हे शुभे! तुम कमलश्री (लक्ष्मी) हो, इसमें सन्देह नहीं। हलायुध (राम) के साथ तुम अनुपम विषयसुखका यथेच्छ उपभोग करो और विमल यश प्राप्त करो। (२६)
। पद्मचरितमें सीतासमागम-विधान नामक छिहत्तरवाँ पर्व समाप्त हुआ।
७७. मय आख्यान तत्पश्चात् चन्द्र के समान मुखवाले वे महानुभाव राम सीताके साथ भुवनालंकार नामक मत्त हाथी पर सवार हुए। (१) जयघोष और गाये जाते मंगल-गीतोंके साथ खेचर-सुभटोंसे युक्त वे रावणके महलके पास आ पहुँचे और प्रियतमाके साथ उसमें प्रवेश किया। (२) उस महलके बीच हज़ार खम्भोंसे बनाया गया, ऊँचा और सोनेकी बनी हुई विचित्र दीवारोंवाला शान्तिजिनेन्द्रका मन्दिर था। (३) हाथी परसे उतरकर सीताके साथ वे जिनमन्दिरमें गये। धीर रामने प्रसन्न मनसे कायोत्सर्ग (ध्यान) किया । (४) सच्चे गुणोंसे परितुष्ट रामने मस्तक पर हाथ जोड़कर सीताके साथ शान्तिनाथ प्रभुकी स्तुति की कि
जिसके अवतारके समय त्रिभुवनमें सर्वत्र शान्ति हो गई, अतः आपका पापका नाश करनेवाला शान्ति नाम रखा गया । (५-६) आपने बाह्य चक्रसे शत्रुओंको जीतकर यह राज्य प्राप्त किया था। आपने ध्यानरूपी चक्रसे अभ्यन्तर शत्रु सैन्यको जीता था। (७) सुर एवं असुरों द्वारा प्रणाम किये जाते आपको नमस्कार हो। जरा और मरणसे रहित तथा रागहीन आपको नमस्कार हो। संसारका नाश करनेवाले आपको नमस्कार हो। शिव-सुख पानेवाले आपको नमस्कार हो । (5) लक्ष्मण और विशल्या दोनोंने तथा सुग्रीव आदि सुभटोंने भी मस्तक पर अंजलि करके भगवान् शान्तिनाथकी प्रतिमाको प्रणाम किया। (ह) तीव्र भक्तिरागसे पुनः पुनः स्तुति विधान करके सभी लोग वहीं पर सुखपूर्वक बैठे । (१०)
१. ०ए पउममुहो-प्रत्य। २. सहिओ, जय-प्रत्य० । ३. उत्तिण्णो-प्रत्यः। ४. • गए संतिजिणं-प्रत्य० । ५. पावणासणयं-प्रत्य०। ६. न्तरारिसिन्नं - प्रत्य० ।
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