________________
४८२
पउमचरिय
२ ॥
•
३ ॥
४ ॥
५ ॥
६ ॥
जे रामसासणे गया, विज्जाहरपत्थिवा महिड्डीया । निसुणेहि ताण सेणिय !, नामाई रायहाणीणं ॥ आइचाहं नयरं, तहेव सिरिमन्दिरं गुणपहाणं । कञ्चणपुरं च एत्तो, भणियं सिवमन्दिरं रम्मं ॥ गन्धबं अमयपुरं तहेव लच्छीहरं मुणेयबं । मेहपुरं रहगीयं, चकउरं नेउरं हवइ ॥ सिरिबहुरवं च भणियं, सिरिमलयं सिरिगुहं च रं विभूसं । तह य' हरिद्धयनामं, नोइपुरं होइ सिरिछायं ॥ गन्धारपुरं मलयं, सीहपुरं चेव होइ सिरिविनयं । नक्खपुरं तिल्यपुरं, अन्नाणि वि एव बहुयाणि ॥ नयराणि लक्खणेणं, जियाइ विज्जाहराणुकिण्णाईं । वसुहा य वसे ठविया, सत्तसु रयणेसु साहोणा ॥ ७ ॥ चक्क छत्त च धणुं, सत्ती य गया मणी असी चेव । एयाइ लच्छिनिलओ, संपत्तो दिवरयणा ॥ ८ ॥ रवि महाहिवई, पुच्छइ गणनायगं पणमिऊणं । भयवं ! लवंकुसाणं, उप्पत्ति मे परिकहि ॥ ९ ॥ लच्छीहरस्स पुत्ता, कइ वा महिलाउ अग्गमहिसीओ । एव परिपुच्छिओ सो, कहिऊण मुंणी समादत्तो ॥ निसुणेहि मगहसामिय!, पहाणपुरिसाण उत्तमं रज्जं । भुञ्जन्ताण य बहुया, मासा वरिसा य वचन्ति ॥ तुङ्गकुलजाइयाणं, उत्तमगुण-रूव-नोबणधरीणं । दस छ च्चेव सहस्सा, रामकणिट्ठस्स महिलाणं ॥ अट्ठ महादेवीओ, सबाण वि ताण उत्तमगुणाओ । ताओ निसुणेहि नरवइ !, नामेहि कहिज्जमाणीओ ॥ दोणघणसुया पढमा, होइ विसल्ल ति नाम नामेणं । बिइया पुण रूवमई, तइया कल्लाणमाला य ॥ वणमाला य चउत्थी, पञ्चमिया चेव होइ रइमाला । छट्टी विय जियपउमा, अभयमई सत्तमी भणिया ॥ अन्ते मणोरमा विय, अट्ठमिया होइ सा महादेवी । लच्छीहरस्स एसा, रूवेण मणोरमा इट्टा ॥ पउमस्स महिलियाणं, अट्ट सहस्साइ रुवकलियाणं । ताणं पुण अहियाओ, चत्तारि इमेहि नामेहिं
१० ॥
११ ॥
१२ ॥
१३ ॥
१४ ॥
१५ ॥
१६ ॥
१७ ॥ पढमा उ महादेवी, सीया बीया पहावई भणिया । तइया चेव रइनिहा, सिरिदामा अन्तिमा भवइ १८ ॥ हे कि ! रामके शासनमें जो बड़ी भारी ऋद्धिवाले विद्याधरराजा थे उनकी राजधानियोंके नाम तुम सुनो । (२) श्रादित्याभनगर, गुणोंसे सम्पन्न श्रीमन्दिरनगर, कंचनपुर, सुन्दर शिवमन्दिर, गान्धर्वनगर अमृतपुर, लक्ष्मीधर, मेघपुर, रथगीत, चक्रपुर, नूपुर, श्रीबहुरव, श्रीमलय, श्रीगुह, रविभूप, हरिध्वज, ज्योतिःपुर, श्रीच्छाय, गान्धारपुर, मलय, सिंहपुर, श्रीविजय, यक्षपुर, तिलकपुर तथा दूसरे भी बहुत-से विद्याधरोंसे व्याप्त नगर लक्ष्मणने जीत लिये, पृथ्वी बसमें की और सातों रत्न स्वाधीन किये । ( ३-७) चक्र, छत्र, धनुष, शक्ति, गदा, मणि और तलवार-ये दिव्य रत्न लक्ष्मणने प्राप्त किये । (८)
[ ६१.२
श्रेणिक गणनायक गौतमको प्रणाम करके पुनः पूछा कि भगवन् ! लवण और कुशकी उत्पत्तिके चारेमें तथा लक्ष्मणके पुत्र, खियाँ और पटरानियाँ कितनी थीं इसके बारे में आप मुझे कहें। इस तरह पूछे गये वे मुनि कहने लगे कि, हे मगधनरेश ! तुम सुनो। उत्तम राज्यका उपभोग करनेवाले प्रधानपुरुषों के बहुत-से मास और वर्ष व्यतीत हो गये । ( ६-१२) ऊँचे कुलमें उत्पन्न, उत्तम गुण, रूप एवं यौवनधारी दस हज़ार महिलाएँ रामकी और छः हजार छोटे भाई लक्ष्मणकी थीं । ( १२ ) उन सबमें उत्तम गुणोंवाली आठ पटरानियाँ थीं । हे राजन् ! नाम लेकर मैं उनका निर्देश करता हूँ । तुम सुनो । (१३) पहली द्रोणघनकी विशल्या नामकी पुत्री है। दूसरी रूपमती, तीसरी कल्याणमाला, चौथी वनमाला, पाँचवीं रतिमाला छठी जितपद्मा, सातवीं अभयमति और अन्तिम आठवीं मनोरमा - ये आठ लक्ष्मणकी पटरानियाँ थीं । लक्ष्मण के रूपसे मनोरम यह मनोरमा इष्ट थी । (१४-१६) रामकी आठ हजार रूपवती महिलाएँ थीं, उनमें इन नामोंवाली चार उत्तम थीं । ( १७ ) पहली पटरानी सीता, दूसरी प्रभावती कही गई है। तीसरी रतिनिभा और अन्तिम श्रीदामा थी। (१=) लक्ष्मणके गुणशाली ढाई सौ पुत्र थे । उनमें से
१. ० परया मु० । २. ० पुरं नरगीयं मु० । ३. रविभासं - प्रत्य० । रविभारं प्रत्य० । ४. अरिंजयणामं - प्रत्य० । ५. गणी - मु० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org