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६८. ३०]
६८. लवणं-ऽकुसदेसविजयपव्वं
ताव य पुण्डरियपुरं, तूरन्तो वज्जनवनरवइणा । पुरिसो उ लेहवाहो, पवेसिओ निययपुत्ताणं ॥ १५ ॥ अह ते कुमारसीहा, आणं पिउसन्तियं पडिच्छेउं । सन्नाहसमरभेरिं, दावेन्ति य अप्पणो नयरे ॥ १६ ॥ एत्तो पुण्डरियपुरे, जाओ कोलाहलो अइमहन्तो । बहुसुहडतूरसद्दो, वित्थरिऊणं समाढत्तो ॥ १७ ॥ सुणिऊण असुयपुर, तं सदं समरभेरिसंजणियं । किं किं ? तिऽह पासत्थे, पुच्छन्ति लव-ऽङ्कुसा तुरियं ॥ १८ ॥ सुणिऊण य सनिमित्तं, वित्तन्तं ते तहिं कुमारवरा । सन्नज्झिउं पयत्ता, गन्तुमणा समरकजम्मि ॥ १९ ॥ रुभन्ता वि कुमारा, अहियं चिय वजजङ्घपुत्तेहिं । गन्तूण समाढत्ता, भणइ विदेहा य ते पुत्ते ॥ २० ॥ तुब्भे हि पुत्त ! बाला, न खमा जुज्झस्स ताव निमिसं पि । न य जुप्पन्तिऽह वच्छा, महइमहारहधुराधारे ॥२१॥ तेहि वि सा पडिभणिया, अम्मो ! किं भणसि दीणयं वयणं । वीरपुरिसाण भोज्जा, वसुहा कि एत्थ विद्धेहिं ? ॥२२॥ एवं ताण सहावं, नाऊणं जणय नन्दिणी भणइ । पावेह पत्थिवजसं, तुब्भे इह सुहडसंगामे ॥ २३ ॥ अह ते मज्जियनिमिया, सबालंकारभूसियसरीरा । सिद्धाण नमोक्कार, काऊणं चेव जणणीए ॥ २४ ॥ धय-चमर-कणय-किकिणि-विहूसिएसुं रहेसु आरूढा । असि-कणय-चक्क-तोमर-करालकोन्तेसु साहीणा ॥ २५ ॥ अड्राइएसु पत्ता. दिणेस ते. वजनकानरवसहं । सन्नद्धबद्धकवया. हयगयरहनोहपरिकिण्णा ॥ २६ ॥ दट्टण वज्जजङ्घ, समागय पिहुनरिन्दसामन्ता । तुरिया जसाहिलासी, अभिट्टा समर सोण्डीरा ॥ २७ ॥ असि-परसु-चक्क-पट्टिस-सएसु पहरन्ति उभयबलजोहा । जुज्झन्ति सवडहुत्ता, अन्नोन्नं चेव घाएन्ता ॥ २८ ॥ एवंविहम्मि जुज्झे, वट्टन्ते सुहडमुक्कवुक्कारे । लवण-ऽङ्कसा पविट्ठा, चक्का-ऽसि-गयातमन्धारे ॥ २९ ॥
अह ते तुरओउ(हु)दए, बहुभडमयरे सुसत्थकमलवणे । लीलायन्ति नहिच्छं, समरतलाए कुमारगया ॥ ३० ॥ भेजा । (१५) सिंह जैसे उन कुमारोंने पिताकी आज्ञा जानकर अपने नगरमें युद्धकी तैयारीके लिए भेरी बजाई । (१६) तब पौण्डरिकपुरमें बहुत भारी कोलाहल मच गया। सुभटों व वाद्योंकी बहुत बड़ी आवाज़ चारों ओर फैल गई । (१७) अश्रुतपूर्व युद्धकी भेरीसे उत्पन्न अश्रुतपूर्व उस आवाजको सुनकर लवण और अंकुश पासके लोगोंसे सहसा पूछने लगे कि यह क्या है ? यह क्या है ? (१८) अपने निमित्तका वृत्तान्त सुनकर वे कुमारवर युद्धकार्यमें जानेके लिए तैयार होने लगे। (१९) वनजंघके पुत्रों द्वारा बहुत रोके जाने पर भी कुमार जानेके लिए प्रवृत्त हुए। इस पर जानकीने अपने पुत्रोंसे कहा कि, हे पुत्रों ! तुम बच्चे हो। तुम क्षण भरके लिए भी युद्ध करने में समर्थ नहीं हो। बड़े भारी रथकी धुराको बहन करने में वत्स (बछड़े और छोटे बच्चे) नहीं जोड़े जाते। (२०-२१ ) उन्होंने भी उसे प्रत्युत्तरमें कहा कि माता जी! आप ऐसा दीनवचन क्यों कहती हैं ? वसुधा वीरपुरुषों द्वारा भोग्य है। इसमें वृद्धोंका क्या काम ? (२२) उनका ऐसा स्वभाव जानकर सीताने कहा कि इस सुभट-संग्राममें तुम राजाओंका यश प्राप्त करो । (२३)
इसके पश्चात् स्नान और भोजन से निवृत उन्होंने शरीर पर सब अलंकारोंसे विभूषित हो सिद्धोंको और माताको प्रणाम किया। (२४, ध्वज, चँवर, सोनेकी छोटी छोटी घण्टियोंसे विभूषित रथमें आरूढ़, तलवार, कनक, तोमर, चक एवं भयंकर भालोंसे लैस, कवच बाँधकर तैयार और घोड़े, हाथी, रथ और योद्धाओंसे घिरे हुए वे ढाई दिनोंमें वनजंघ राजाके पास जा पहुँचे । (२५-२६) वनजंघको आया देख पृथुराजाके यशके अभीलापी तथा लड़ाई में बहादुर सामन्त जल्दी ही भिड़ गये । (२७) दोनों सेनाओंके योद्धा सैकड़ों तलवार, फरसे, चक्र और पट्टिसोंसे प्रहार करने लगे। एक-दूसरेको घायल करते हुए वे एक दूसरेके साथ युद्ध करने लगे। (२८) जिसमें सुभट गर्जना कर रहे थे तथा चक्र, तलवार और गदाके तमसे जो अन्धकारित हो गया था ऐसा जब युद्ध हो रहा था तब उसमें लवण और अंकुशने प्रवेश किया। (२९) वे कुमाररूपी हाथी घोड़ेरूपी जलवाले, सुभट रूपी बहुतसे मगरमच्छोंसे युक्त तथा अच्छे शस्त्ररूपी कमलवनसे सम्पन्न ऐसे युद्धरूपी
१. हा तओ पु.-प्रत्य० । २. .यणंदणी-प्रत्य। ३. व्यखिंखिणिविभूसि०-प्रत्य०। ४. जयाहि-प्रत्यः । ५. रसोडीरा-प्रत्य० । ६. तुरउद्दारे, ब• मु.।
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