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पउमचरियं
[८६.३१
हत्थी करेण भञ्जइ. तुङ्ग पि य पायवं वियडसाहं । सीहो कि न वियारइ. पयलियगण्डत्थलं हत्थि ॥ ३१ ॥ अह मन्तिजणाएसेण पत्थिया चारिया गया महुरं । वत्तं लद्धण तओ, सामिसयासं पुणो पत्ता ॥ ३२ ।। निसुणेहि देव वयणं, अस्थि हु महुरापुरीऍ पुचणं । वरपायवसुसमिद्ध, कुबेरनामं वरुज्जाणं ॥ ३३ ॥ सहिओ य जयन्तीए, देवीए सयलपरियणसमग्गो । कोलइ तत्थुज्जाणे, इन्दो इद नन्दणे मुइओ ।। ३४ ।। तस्स पुण छट्टदिवसो, वट्टइ वरकाणणे प'इट्ठस्स । मयणाउरस्स एवं परिवज्जियसेसकम्मस्स ॥ ३५॥ सयलं च साहणं पुरवराओ नीसरिय तस्स पासत्थं । जोयं सामन्तजुयं, सूलं पुण नयरिमज्झमि ॥ ३६ ॥ जइ एरिसम्मि सामिय!; पत्थावे आणिओ पुरिं महुरं । न य गेण्हसि रयणीए, कह महुरायं पुणो जिणसि ॥ ३७ ॥ चारियवयणेण तओ, सत्तुग्यो साहणेण महएणं । काऊण दारभङ्ग, पविसइ महुरापुरि रत्तिं ॥ ३८ ॥ सत्तग्यो जयइ जए, दसरहपुत्तो जयंमि विजियारी । बन्दिजणुग्घुट्ठरवो, वित्थरिओ पुरवरीमज्झे ॥ ३९ ॥ तं सोऊण जयरवं, नयरनणो भयपवेविरसरोरो। किं किं ति उल्लवन्तो, अइसुट्ट समाउलो जाओ ॥ ४०॥ महुरापुरिं पविढें, सत्तुग्धं जाणिऊण महुराया । उज्जाणाउ सरोसो, विणिग्गओ जह दसग्गीवो ॥ ४१ ॥ सूलरहिओ महू चिय, अलहन्तो पुरवरीपवेसं सो। सत्तग्यकुमारेणं, निक्खमिउं वेढिओ सहसा ॥ ४२ ॥ अइरहसपसरियाणं, उभयबलाणं रणं समावडियं । गय-तुरय-जोह-रहवर-अन्नोन्नालग्गसंघट्ट ॥ ४३ ।। जुज्झइ गओ गएणं, समयं रहिओ वि रहवरत्थेणं । तुरयविलग्गो वि भडो, आसारूढे विवाएइ ॥ ४४ ॥ सर-झसर-मोग्गरेहि, अन्नोन्नावडियसत्थनिवहेहिं । उट्ठन्ति तक्खणं चिय, फुलिङ्गजालासहस्साइं ॥ ४५ ॥ एत्तो कयन्तवयणो, आढत्तो रिउबलं खयं नेउं । महुरायस्स सुएणं, रुद्धो लवणेण पविसन्तो ॥ ४६ ॥
शाखाओंवाले ऊँचे पेड़को हाथी तूंढ़से तोड़ता है तो क्या चूते हुए गण्डस्थलवाले हाथीको सिंह नहीं फाड़ डालता ? (३१)
इसके पश्चात् मन्त्रियोंके आदेशसे मथुराको भेजे गये गुप्तचर संदेश लेकर अपने स्वामीके पास वापस आये । (३२) उन्होंने कहा कि मथुरापुरीके पूर्व में उत्तम वृक्षोंसे समृद्ध कुबेर नामका एक सुन्दर उद्यान है। (३३) जयन्ती देवीके साथ समग्र परिजनसे युक्त मधुराजा आनन्दित हो, नन्दनवनमें इन्द्र को भाँति, उस उद्यानमें क्रीड़ा करता है। (३४) उत्तम उद्यानमें प्रविष्ट, मदनसे पीड़ित और शेष कार्योंका त्याग किये हुए उसका छठा दिन है । (३५) सामन्तोंके साथ सारी सेना नगरमें से निकलकर उसके पास गई है, किन्तु शूल नगरीमें है। (३६) हे स्वामी! यदि ऐसे अवसर पर आये हुए आप मथुरापुरीको रातके समय ले नहीं लेंगे, तो फिर मथुराको कैसे जीतोगे ? (३७)
तब गुप्तचरोंके कथनके अनुसार बड़े भारी सैन्यके द्वारा रातके समय दरवाजा तोड़कर शत्रुघ्नने मथुरापुरीमें प्रवेश किया। (३८) शत्रुओंको जीतनेवाले दशरथके पुत्र शत्रुघ्नका संसारमें विजय हो-ऐसी स्तुतिपाठकों द्वारा उद्घोषित जय 'ध्वनि नगरमें फैल गई । (३६) उस जयघोपको सुनकर भय से कापते हुए शरीरवाले नगरजन 'क्या है, क्या है ?' ऐसा कहते हुए अत्यन्त व्याकुल हो गये। (४०) मथुरापुरीमें शत्रुघ्नने प्रवेश किया हैं ऐसा जानकर मधु राजा रोषके साथ उद्यानमेंसे, रावणकी भाँति, बाहर निकला । (४१) शूलरहित होनेसे नगरीमें प्रवेश नहीं पानेवाले उस मधुको शत्रुघ्न कुमारने निकलकर सहसा घेर लिया। (४२) अतिवेगसे फैले हुए दोनों सैन्योंके बीच हाथी, घोड़े, प्यादे और रथ जिसमें आपसमें भिड़ गये हैं ऐसा युद्ध होने लगा। (४३) हाथीके साथ हाथी जूझने लगे। रथ और अनसे रहित होनेपर भी घोड़ेपर सवार हो सुभट घुड़सवारोंको मारने लगा। (४४) एक दूसरे पर गिरनेवाले बाण, झसर, मुद्गर जैसे शस्त्र समूहोंसे तत्काल ही चिनगारियोंसे व्याप्त हजारों ज्वालाएँ उठीं। (४५) उधर कृतान्तवदनने शत्रुसैन्यका क्षय करना शुरू किया। प्रवेश करनेवाले उसको मधुराजाके पुत्र लवणने रोका । (४६) लवण और कृतान्तके बीच युद्धभूमिमें तलवार, कनक, चक्र और तोमरके
शूलराहमने प्रवेश कर शरीरवाले र
प्रतिवेगसे
१. पविठ्ठस्स प्रत्य० ।
२.
तो रणम्मि वि. प्रत्य० ।
३. विवाडेइ-प्रत्य० ।
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