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८८. सत्तुग्घकयंतमुहभवाणुकित्तणपव्वं अह अन्नया निवो सो, सयराहं आगओ नियं गेहं । पेच्छइ देवीऍ समं, तं चिय एक्कासणनिविट्ठ ॥ १० ॥ मायाविणीऍ तीए, गाढं चिय कन्दियं भवणमज्झे । संतासं च गओ सो, गहिओ य नरिन्दपुरिसेहिं ॥ ११ ॥ आणत्तं नरवइणा इमस्स अट्टङ्गनिग्गहं कुणह । नयरस्स बहिं दिट्टो, मुणिणा कल्लाणनामेणं ॥ १२ ॥ भणिओ जइ पबजे, गेण्हसि तो ते अहं मुयावेमि । तं चिय पडिवन्नो सो, मुक्को पुरिसेहि पबइओ ॥ १३ ॥ काऊण तवं घोरं, कालगओ सुरवरो समुप्पन्नो। देवीहि संपरिवुडो, कीलइ रइसागरोगाढो ॥ १४ ॥ नामेण चन्दभद्दो, राया महुराहिवो पणयसत्त् । तस्स वरा वरभज्जा, तिण्णि य एकोयरा तोए ॥ १५ ॥ सूरो य जउणदत्तो, देवो य तइज्जओ समुप्पन्नो । भाणुप्पह-उग्गु-ऽक्का-मुहा य तिण्णेव पुत्ता से ॥ १६ ॥ विइया य तस्स भज्जा, कणयाभा नाम चन्दभद्दस्स । अह सो चविऊण सुरो, तीए अयलो सुओ जाओ ॥ १७ ॥ अवरो त्थ अङ्कनामो, धम्म अणुमोइऊण अइरूवो । जाओ य मङ्गियाए, कमेण पुत्तो तहिं काले ॥ १८ ॥ सावस्थिनिवासी सो, अविणयकारी जणस्स अइवेसो । निद्धाडिओ य तो सो, कमेण अइदुक्खिओ भमइ ॥ १९ ॥ अह सो अयलकुमारो, इट्टो पियरस्स तिष्णि वाराओ। उग्गुकमुहन्तेहिं, घाइज्जन्तो च्चिय पणट्टो ॥ २० ॥ पुहई परिहिण्डन्तो, तिलयवणे कण्टएण विद्धो सो। किणमाणो च्चिय दिट्टो, अङ्केणऽयलो य वलियङ्गो ॥ २१ ॥ मोत्तण दारुभारं, अङ्केण उ कण्टओ खणघेणं । आयड्डिओ सुसत्थो, अयलो त भणइ निसुणेहि ॥ २२ ॥ जइ नाम सुणसि कत्थइ, अयलं नामेण पुहइविक्खायं । गन्तवं चेव तुमे, तस्स सयासं निरुत्तेणं ॥ २३ ॥ भणिऊण एवमेयं, सावत्थि पत्थिओ तओ अङ्को । अयलो वि य कोसम्बि, कमेण पत्तो वरुज्जाणं ॥ २४ ॥
सो तत्थ इन्ददत्तं, नरवसभं गरुलियागयं दटुं । तोसेइ धणुधे ए, विसिहायरियं च दोनीहं ॥ २५ ॥ बैठे हए उसको देखा । (१०) यह मायाविनी महल में जोरोंसे चिल्लाने लगी। इससे वह भयभीत हो गया। राजाके
आदमियोंने उसे पकड़ लिया। (१) रजाने श्राज्ञा दी कि इसके आठ गोंका निग्रह करो। कल्याण नामक मुनिने उसे नगरके बाहर देखा । (२२) कहा कि यदि प्रवज्या ग्रहण करोगे तो मैं हुडाउँगा। उसने यह बात स्वीकार की। इसपर राजपुरुषोंने छोड़ दिया। उसने दीक्षा ली। (१३) घोर तप करके मरने पर वह देव हुआ। देवियोंसे घिरा हुघा वह रतिके सागरमें लीन हो क्रीड़ा करने लगा। (१४)
शत्रुओंको भुकानेव.ला चन्द्रभद्र न.मका एक मथुरा नरेश था। उसकी वर नामकी एक सुन्दर भार्या थी। उसके (वराके) तीन सहोदर भाई थे। (१५) सूर्य, यमुनादत्त और तीसरा देव उत्पन्न हुआ, उसके ( वराके) अनुक्रमसे भानुप्रभ, उग्र और उल्कामुख ये तीन ही पुत्र थे। (१६) चन्द्रभद्रकी कनकाभा नामकी दूसरी भार्या थी। वह देव च्युत होकर उसका अचल नामले पुत्र हुअा। (१७) दूसरा हक अंक नामका था। धर्मका अनुमोदन करनेसे वह उस समय मंगका का अतिरूपवान् पुत्र हुआ। (८) विनयकारी और लोगोंका अत्यन्त हेपी वह श्रावस्तीवासी बाहर निकाल दिया गया। अतिदःखित वह इधर उधर भटकने लगा । (१६) पिताका प्रिय वह अचल-कुमार भी एन और उल्कामुखसे तीन बार घायल होने पर भाग गया । (२०) पृथ्वी पर पारमण करता हुआ वह तिलय.वन में कॉटसे बींधा गया। घायल और कॉपते हए शरीरवाला वह थचल बैंक द्वारा देखा गया । (२१) लकड़ी के बोभेका परित्याग करके अंकने काँटा आधे क्षण में निकाल दिया । सुस्वस्थ प्रचलने उसे कहा कि, तुम सुनो। (२२) पृवं में कहीं पर भी यदि तुम विख्यात श्रचलका नाम सुनो तो उसके पास अवश्य ही जाना । (२३) सावहकर 'कने श्रावस्तीकी ओर प्रस्थान वि.या तो श्रचलने कौशाम्बीकी ओर गमन किया।
___ क्रमशः चलता हुआ वह एक सुन्दर उद्यानमें श्रा पहुँचा। (२४) वहाँ वन-विहारके लिए आये हुए राजा इन्द्रदत्तको उसने देखा । दुष्ट विशिखाचार्य को धनुदमें (हराकर ?) उसने राजाको सन्तुष्ट किया । (२५) राजाने अपनी लड़की मित्रदत्ता
१. राहसमागओ-मु०। २. देवेहि-प्रत्य० । ३. साणु०-मु.। ४. उग्ग-ऽकमुहंतेहि,-मु०। ५. ०ण य नेत्तचलियंगो-प्रत्य०। ६. ण वयणमेयं,-मु०। ७. •ए, सिंहायरियं च दो जोहं-प्रत्य० ।
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