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७७. मयवक्खाणपव्वं तह य विसल्लासहिओ, अच्छइ लच्छीहरो जणियतोसो । रइसागरोवगाढो, सुरवइलील विडम्बन्तो ॥ ४३ ॥ एवं ताण रइसुह, अणुहवमाणाणऽणेयवरिसाई। वोलीणाणि दिणं पिव, अइसयगुणरिद्धिजुत्ताणं ॥ ४४ ॥ अह लक्खणो कयाई, पुराणि सरिऊण कुबरादीणि । कन्नाण कए लेहे, साहिन्नाणे विसज्जेइ ॥ ४५ ॥ विज्जाहरेहि गन्तुं, ताण कुमारीण दरिसिया लेहा । लक्षणमणुस्सगाणं, अहियं नेहं वहन्तीणं ॥ ४६ ॥ दसपुरवईण धया, रूवमई वज्जयण्णनरवइणा । वीसज्जिया य पत्ता, लङ्कानयरिं सपरिवारा ॥ १७ ॥ अह वालिखिल्लदुहिया, कुबरनयराहिवस्स गुणकलिया। सा वि तहिं संपत्ता, कन्ना कल्लाणमाल ति ॥ १८ ॥ पुहवीधरस्स दुहिया, पुहइपुरे तत्थ होइ वणमाला । विजाहरेहि नीया, सा वि य लच्छीहरसमीयं ॥ १९ ॥ खेमञ्जलीयनयरे, जियसत्त नाम तस्स जियपउमा । धया परियणसहिया, सा वि य लङ्कापुरि पत्ता ॥ ५० ॥ उज्जेणिमाइएसु य, नयरेसु वि जाओ रायकन्नाओ । लङ्कापुरी गयाओ, गुरूहि अणुमन्नियाओ य ॥ ५१ ॥ परिणेइ लच्छिनिलओ, परमविभूईएँ ताओ कनाओ । सबङ्गसुन्दरीओ, सुरवहुसमसरिसरूवाओ ।। ५२ ॥ परिणेइ पउमणाहो, कन्नाओ जाओ पुवदिन्नाओ । नवजोवणुजलाओ, रइगुणसारं वहन्तीओ ॥ ५३ ॥ एवं परमविभूई, हलहर-नारायणा समणुपत्ता । लङ्कापुरोएँ रज्जं, कुणन्ति विज्जाहरसमग्गा ॥ ५४ ॥ छबरिसाणि कमेण य, गयाणि तत्थेब पवरनयरीए । सोमित्ति-हलहराणं, विज्जाहररिद्धिजुत्ताणं ॥ ५५ ॥ एयं तु कहन्तरए, पुणरवि निसुणेहि अन्नसंबन्धं । इन्दइमुणिमाईणं, सेणिय ! लद्धीगुणहराणं ॥ ५६ ॥ झाणाणलेण सबं, दहिऊणं कम्मकयवरं धीरो । इन्दइमुणी महप्पा, केवलनाणी तओ जाओ ।। ५७ ।। अह मेहवाहणो वि य, धीरो अन्नोन्नकरणजोएल । जिणिऊण कम्ममलं, गेण्हइ सो केवलिपडायं ॥ ५८ ।।
है। (४२) इसी प्रकार त.पयुक्त, प्रेगके सागर में डूबा हुआ और देवेन्द्र की लीलाकी विडम्बना करनेवाला लक्ष्मण विशल्याके साथ रहता था। (४३) इस तरह रतिसुखका अनुभव करनेवाले तथा आतशय गुण और ऋद्धिसे सम्पन्न उनके अनेक वर्ष दिनकी भाँति व्यतीत हुए। (४४)
एक दिन कभी कूवर आदि नगरों को याद करके लक्ष्मणने कन्याओंके लिए अभिज्ञानके साथ लेख भेजे । (४५) विद्याधरोंने जाकर लक्ष्मणके लिए मनमें उत्सुक और अधिक स्नेह धारण करनेवाली उन कन्याओं को लेख दिखाये। (४६) दशपुरपतिकी पुत्री रूपमतीको बचकर्ण राजाने जानेकी अनुमति दी। वह परिवारके साथ लंकानगरीमें था पहुँची। (४७) कृवरनगरमें स्वामी वालिखिल्यकी कल्याणमाला नामकी गुणवती पुत्री थी। वह भी वहाँ पहुँच गई। (४८) पृथ्वीपुरमें पृथ्वीधरकी पुत्री वनमाला थी। विद्याधरोंके द्वारा वह भी लक्ष्मणके पास लाई गई। (४६) मांजलिक नगरमें जितशत्रु नामक राजा था। उसकी पुत्री जितपद्मा थी। वह भी परिजनोंके साथ लंकापुरीमें पहुंच गई। (५०) उज्जयिनी आदि नगरोंमें जो राजकन्याएँ थीं वे भी गुरुजनों द्वारा अनुमति मिलने पर लंकापुरीमें पहुँच गई । (५१) लक्ष्मणने सर्वांगसुन्दर और देवकन्याओंके समान सुन्दर रूपवाली उन कन्याओंके साथ अत्यन्त वैभवपूर्वक विवाह किया । (५२) नवयौवनसे उज्ज्वल और उत्तम रतिगुण धारण करनेवाली जो कन्याएँ पहले दी गई थीं उनके साथ रामने शादी की । (५३) इस तरह परमविभूति प्राप्त राम और लक्ष्मण विद्याधरोंके साथ लंकापुरीमें राज्य करते थे। (५४) विद्याधरोंकी ऋद्धिसे युक्त लक्ष्मण और रामके अनुक्रमसे छः वर्ष उसी सुन्दर नगरीमें व्यतीत हुए । (५५)
हे श्रेणिक ! अब मैं दूसरी कथा कहता हूँ। लब्धि और गुणसम्पन्न इन्द्रजित आदि मुनियोंका तुम दूसरा वृत्तान्त भी सुनो । (५६) ध्यानाग्निसे कर्मके सारे कतवारको जलाकर धीर और महात्मा इन्द्रजित मुनि केवलज्ञानी हुए। (५७) विभिन्न करण और योगसे धीर मेघवाहनने भी कर्मरूपी मल्लको जीतकर केवलीरूपी पताका ग्रहण की । (५८) दर्शन, ज्ञान
१. तत्थ वि०--प्रत्य० ।
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