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४०६ पउमचरियं
[६६.६. संथाविऊण एवं महिलाओ निग्गओ जिणहराओ। पविसइ मज्जणहरयं, उवसायिसबकरणिज्ज ॥६॥ एत्तो वेरुलियमए, मजणपीढे विहाइ घणसामो । मुणिसुबयजिणवसहो, पण्डुसिलाए व अभिसेए ॥ ७ ॥ सुविसुद्धरयण-कञ्चणमएसु कुम्भेसु सलिलपुण्णेसु । सुमहग्घमणिमएसु य, अन्नेसु य ससियरनिहेसु ॥ ८ ॥ गम्भीरभेरि-काहल-मुइङ्ग-तलिमा-सुसङ्खपउराइं । एत्तो पवाइयाई, तूराई मेहघोसाई ॥ ९ ॥ उबट्टणेसु सुरभिसु, नाणाविहचुण्णवण्णगन्धेहिं । मज्जिज्जइ दणुइन्दो, जुवईहि मयङ्कवयणाहिं ॥ १० ॥ अङ्गसुहसीयलेणं, सलिलेणं सुरहिगन्धपवरेणं । कुन्तलकयकरणिज्जो, हाओ लङ्काहियो विहिणा ॥ ११ ॥ सो हार-कडय-कुण्डल-मउडालंकारभूसियसरीरो । पविसरइ सन्तिभवणं, नाणाविहकुसुमकयपूयं ॥ १२ ॥ अह विरइऊण पूर्य, काऊण य वन्दणं तिपरिवारं । पविसरइ लीलायन्तो, अह भोयणमण्डवं धीरो ॥ १३ ॥ दिन्नासणोवविठ्ठो, सेसा वि भडा सएसु ठाणेसु । अत्थरय-वरमसूरय-वेत्तासणकञ्चणमएसु ॥ १४ ॥ दिन्ना भिङ्गारविही, उवणीयं भोयणं बहुवियप्पं । भुञ्जइ लङ्काहिबई, समयं चिय सबसुहडेहिं ॥ १५ ॥ अट्ठसयखज्जयजुर्य, अह तं चउसट्टिवञ्जणवियप्पं । सोलसओयणभेयं, विहिणा जिमिओ वराहारं ॥ १६ ॥ निबत्तभोयणविही, लीलायन्तो भडेहि परिकिण्णो । कीलणभूमिमह गओ, विज्जाएँ परिक्खणं कुणइ ॥ १७ ॥ विज्जाएँ रक्खसवई, करेइ नाणाविहाई रूवाई । पहणइ करेसु भूमि, नणयन्तो रिउनणायम्पं ॥ १८ ॥ एत्थन्तरे पवुत्ता, निययभडा दहमुहं कयपणामा । मोत्तण तुमं रामं, को अन्नो घाइडं सत्तो ? ॥ १९ ॥
सो एव भणियमेत्तो, सबालंकारभूसियसरीरो । पविसइ पमउज्जाणं, इन्दो इव नन्दणं मुइओ ॥ २० ॥ स्त्रियोंको आश्वासन देकर वह जिनमन्दिरमेंसे बाहर निकला और सब उपकरणोंसे सम्पन्न स्नानगृहमें प्रवेश किया । (६) जिस अभिपेकके समय पाण्डुशिला पर मुनि सुव्रत जिनवर शोभित हो रहे थे उसी तरह वैदूर्यके बने हुए स्नानपीठ पर बादलोंके समान श्याम वर्णका रावण शोभित हो रहा था। (७) मणियोंसे खचित अत्यन्त विशुद्ध सोनेके बने घड़े तथा चन्द्रमाकी किरणोंके समान दूसरे बहुत महँगे मणिमय घड़े पानीसे भरे हुए थे। (८) उधर गम्भीर आवाज़ करनेवाली भेरि, काहल, मृदंग, तलिमा तथा सुन्दर शंखसे युक्त बादल की भाँति गर्जना करनेवाले वाद्य बज रहे थे । (६) चन्द्रमाके समान सुन्दर मुखवाली युवतियाँ रावणको नानाविध चूर्ण, वर्ण एवं गन्धसे युक्त सुगन्धित उबटन मल रही थीं। (१०) बालोंमें जो कार्य करना था वह करके रावणने सुगन्धित गन्धसे युक्त शरीरको सुख देनेवाले शीतल जलसे विधिवत् स्नान किया। (११) हार, कटक, कुण्डल, मुकुट तथा अलंकारोंसे विभूषित शरीरवाले उसने भगवान् शान्तिनाथके मन्दिरमें प्रवेश किया और नानाविध पुष्पोंसे पूजा की । (१२) पूजाकी रचना करके तथा तीन बार प्रदक्षिणा देकर वन्दन करके धीर वह लीलापूर्वक भोजनमण्डपमें प्रविष्ट हुआ। (१३) दिये गये आसन पर वह बैठा। बाकीके सुभट भी अपनेअपने निर्मल मशूरक ( वस्त्र या चर्मका वृत्ताकार आसन), वेत्रासन तथा सोनेके बने हुए आसनों पर बैठे। (१४) हाथपैर धोनेके लिए जलपात्र दिये गये। बहुत प्रकारका भोजन लाया गया। सव सुभटोंके साथ रावणने भोजन किया । (१५) एक सौ आठ खाद्य पदार्थोंसे युक्त, चौसठ प्रकारके व्यंजनोंवाले तथा सोलह प्रकारके चावलसे सम्पन्न उत्तम आहार उसने विधिपूर्वक खाया। (१६) भोजनके कार्यसे निवृत्त हो सुभटोंसे घिरा हुआ वह लीला करता हुआ क्रीड़ाभूमिमें गया और वहाँ विद्याकी परीक्षा की । (१७) विद्याके बलसे राक्षसपतिने नानाविध रूप किये और शत्रुओंको कम्पित करते हुए उसने हाथोंसे ज़मीनको ठोका । (१८) तब अपने सुभटोंने रावणको प्रणाम करके कहा कि आपको छोड़ दूसरा कौन रामको मारनेमें समर्थ है ? (१६) इस प्रकार कहने पर सब अलंकारोंसे भूषित शरीरवाले उसने मुदित हो इन्द्र जिस तरह नन्दनवनमें प्रवेश करता है उस तरह पद्मोद्यानमें प्रवेश किया। (२०) रावणकी विशाल सेनाको देखकर विदीर्ण हृदयवाली सीता सोचने लगी कि इसे इन्द्र भी जीत नहीं सकता । (२१) मनमें इस तरह चिन्तित सीताको रावणने कहा कि, हे
१. एत्तो फलिहमणिमए-प्रत्य।
२. पउमुजाण-प्रत्य० ।
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