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की अपनी आकांक्षा की उसने अपने भाई को सलाह से रोक रखा था। बड़े संयम • से रहना सीख लिया था उसने । इसलिए वामशक्ति पण्डित की याद आते ही उसने सोचा-किसी का ध्यान इस ओर नहीं है, क्यों न उसके यहाँ हो आएँ! उसमें जैसे साहस आ गया। बच्चे पढ़ाई में लगे ही थे। नौकरानी से कहकर कि वसदि (मन्दिर) जा रही है, वह चल पड़ी। शाम का समय था, अँधेरा छाने लगा था। चली ही थी कि एकाएक लगा, कोई उसका पीछा कर रहा है, उसने चारों ओर नजर दौड़ायी। पर ऐसा कोई उसके पीछे आते नहीं दिखाई दिया। क्या करें? अपने ही भीतर शैतान जो बैठा था। घामशक्ति पण्डित के घर पहुंची तो वह पान खाता एक खम्भे से टिककर बैठा दिखाई दे गया। दण्डनायिका के यों अचानक आने से वह कुछ हड़बड़ा-सा गया। उसने सोच रखा था कि कभी दण्डनायिका आएँ तो बड़ी रकम हाथ लग जाएगी, परन्तु लम्बी अवधि तक उनके न आने से वह निराश हो गया था। शायद यह बात भूल ही गया था। अक्ल का तेज वामशक्ति पण्डित दण्डनायिका को आते देख बहत प्रसन्न हुआ। पीक को मुँह में ही भरे उसने दण्डनायिका जी को बैठने के लिए कहा और फिर पीक थूककर मुँह धोकर आ गया। चामव्ये तब तक वहीं बैठी रही। उसके सामने वह भी आकर बैठ गया और बोला, "दण्डनायिका जी, क्या मैं ऐसा समयूं कि मेरा वह सर्वतोभद्र यन्त्र' अभी भी अपना प्रभाव दिखा रहा है।"
दण्डनायिका का हाथ तुरन्त अपनी छाती पर लटक रहे तावीज पर जा लगा। वामशक्ति पण्डित की दृष्टि उस पर पड़ गयी। चामब्बे ने मन-ही-मन कहा, सुरक्षित है।"
वामशक्ति ने पूछा, “इस तरफ़ आये करीब-करीब एक साल बीत रहा है। आप इधर आर्थी नहीं, इसलिए मैंने समझा कि सब कुशल है। ठीक है न"
"हाँ, ठीक है।" 'कहिए, मैं और क्या सेवा कर सकता हूँ?' बामशक्ति ने पूछा।
''बस और कुछ नहीं। यह बताएँ कि मेरा वह पहले का भय सदा के लिए दूर हो जाएगा या बह और पास आकर तकलीफ़ देता रहेगा" दण्डनायिका ने
पूछा।
"यदि दण्डनायिका जी को ऐसी कोई शंका हो गयी है तो बताइए कौन हैं वे लोग? मैं आवश्यक क्रिया द्वारा रोक लगा दूँगा।" वामशक्ति बोला।
'मुझे कुछ मालूम नहीं । मुझे ऐसा लगा सो आपको बता देना उचित समझा और जैसे बैठी थी वैसे ही उठकर वहाँ से चली आयी। मेरी तरफ़ से अंजन लगाकर आप ही देख लें और कहें कि कोई ऐसी बाधा दिखाई देती है या नहीं? और अगर है तो उसके निवारण का उपाय भी बताएं।" दण्डनायिका ने कहा।
10 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो