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उन्होंने यात्रा की तैयारी की। अपना भाई, उसकी पत्नी सिरियादेवी अब बलिपर के हेग्गड़े-हेगड़ती थे। इसलिए उन्हें लोगों के साथ किस तरह का व्यवहार करना चाहिए, यह सब भलीभांति समझा दिया। बुतुगा बलिपुर में रहने को राजी नहीं हुआ। उसका कहना था, 'जब तक जीऊँ तब तक मुझे मालिक की सेवा में ही जीने दें। मुझे और कुछ नहीं चाहिए। वह अपनी ही बात पर जिद पकड़कर डटा रहा । इसलिए हेग्गड़े, हेग्गड़ती, शान्तला, बुतुगा, दासथे और कवि बोकिमय्या तथा शिल्पी गंगाचारी ये दोनों सपरिवार, दोरसमुद्र की यात्रा के लिए तैयार होकर निकले। इस तरह बलिपुर में हेग्गड़े मारसिंगय्या के रहते हुए महादण्डनायक का सपरिवार वहाँ जाना नहीं हो सका। फिर उस हालत में बल्लाल का वहाँ जाना भला कैसे सम्भव हो सकता था।
वालपुर के हेग्गड़े पारसिंगय्या को राजाज्ञा मिलने के पहले ही दण्डनायिका चामब्बे का इस बात को ख़बर मिल चुकी थी। उसे सबसे ज़्यादा परेशानी थी तो यह कि उसके पति ने इस बात की सहमति कैसे दी। कहीं कुछ और पहले यदि उसके कानों में इस बात की जरा-सी भी भनक पड़ी होती तो शायद वह कुछ सोचती-करती। लेकिन अब वह इस स्थिति में नहीं थी। और फिर उसके भाई भी इस परिवर्तन से सहमत थे। महाराज भी सहमत हैं। ऐसी हालत में वह अकेली क्या कर सकती थी?
परेशान होने पर भी उसने एक बात अच्छी तरह सोच रखी थी। वह यह कि हेगड़े को यदि रहना ही है तो एक अलग निवास की व्यवस्था होनी चाहिए। पहले की तरह हेग्गड़ती युवरानी जी से सटकर अन्तःपुर में तो रह नहीं सकेगी। इसलिए अभी से समझा-बुझाकर मालिक से कहना होगा कि राजधानी के उत्तर-पूर्व के कोने में उन्हें ठहराने की व्यवस्था करें। यों करने से हेग्गड़ती राजमहल से दूर रहेगी और जब चाहे आ-जा भी न सकेगी। इसी तरह न जाने क्या-क्या सोचती रहती और अपने मन को तसल्ली देती रहती। एकाएक उसके दिमाग में
आया.-अरे इतनी दूर बलिपुर में रहकर भी इन सब पर जब इस औरत का जादू चल सकता है, फिर यहाँ पास रहकर तो उसकी पाँचों उँगलियाँ घी में समझो। उसका मन उस वामशक्ति पण्डित की तरफ़ दौड़ पड़ा। क़रीब-करीब एक साल से उसने मूलकर भी किसी से वामशक्ति की बात नहीं की थी, उसके यहाँ कभी गयी भी नहीं। युवरानी और युवराज के लौटने के बाद ऐसा कोई प्रसंग भी नहीं आया था, जिससे उसे अपमानित होना पड़ा हो या कोई कड़वी बातें सुननी पड़ी हों। राजमहल में जाने और युवरानी जी के सामने हँसी-खुशी से बात कर आने
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 59