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गये तब आपको भीतर-ही-भीतर थोड़ा दुःख-सा हुआ था। आपका मन दुःखी हो, ऐसा हप नहीं चाहेंगे। इसलिए आपकी सलाह लेकर ही निर्णय करेंगे यही हमाग विचार हैं।" ___ "प्रभु का निर्णय हमें शिरोधार्य होगा।"
"प्रम का निर्णय ठीक न जचे तो वह किस कारण से ठीक नहीं-इसे कहने का साहस भी आपको होना चाहिए न?"
"कभी-कभी उससे ग़लतफ़हमी होने की आशंका बन जाती है।" "चों समझकर सचाई को कहने से पीछे हटना चाहिए क्या?" "बुजुर्ग यही कहते हैं कि अप्रिय सत्य मत कहो।"
"सारे राष्ट्र का हित ही जब प्रमुख हो तो कितना ही कद क्यों न हो, सत्य का प्रकाशन होना ही चाहिए। सत्य को कटु मानकर छिपा रखें और उससे राष्ट्र की हानि हो तो वह अच्छा नहीं। आपने जो कहा वह व्यक्तिगत जीवन और एक परिवार के हिताहित से सम्बन्धित हो तब तो कुछ हद तक ठीक हो सकता हैं परन्तु जहाँ तक हमारी व्यक्तिगत राय है, सत्य को कभी भी नहीं छिपाना चाहिए।"
“प्रभु ने जैसा कहा, राष्ट्र का हित सर्वोपरि है।" "इसीलिए तो आपसे सलाह माँगी।'
मरियाने दण्डनायक ने तुरन्त कोई उत्तर नहीं दिया। प्रभु को अच्छा लग सकनेवाले किसी व्यक्ति का नाम सुझाया जाय तो उसका क्या परिणाम होगा, कहा नहीं जा सकता। कुछ लोगों के नाम तो उनके दिमाग़ में चक्कर काट ही रहे थे। एक का नाम तो जिदान तक पहुँचा भी। उन्हें लगा प्रभु उसे स्वीकार भी कर लेंगे परन्तु वह नाम कह दें और वे कुछ का कुछ समझ बैठे तो...? शायद वे कहें कि 'हमें खुश करने के लिए उस व्यक्ति का नाम बता रहे हैं, आपने अपने अनुभव से यह व्यक्त किया ही है कि आपको उनपर विश्वास नहीं, तब मैं क्या उत्तर दे सकता हूँ? इस आमन्त्रण-पत्र के प्रसंग में मेरी पत्नी ने जो कुतन्त्र रचा उसके कारण यदि मैंने कोई सलाह दी तो उसका मूल्य भी क्या हो सकता है। यों सोचता हुआ मरियाने दण्डनायक मौन बैठे रहे। __ "तत्काल नहीं सूझता हो तो सोचकर बताइए। आपकी सलाह लिये विना कोई निर्णय हम नहीं करेंगे। क्योंकि कोई भी यहाँ आए, हमारे लिए आप्त होने पर भी आखिर उन्हें आप ही के अधीन काम करना पड़ेगा। इसलिए आपको ठीक लगनेवाले और आपकी शक्ति पर आघात न करनेवाले व्यक्ति को ही यहाँ बुलवाना चाहिए। ठीक है न?"
अब कुछ कहे बिना यहाँ से जाना ठीक न समझकर मरियाने ने सलाह
पष्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 37