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तरह चारदीवारी के बीच बने रहने से सारा दोरसमुद्र जैसे उत्साह शून्य हो गया हैं। सारी जनता अत्यन्त प्रेम और आदर से युवराज और राजकुमार का वीरोचित स्वागत करने के लिए उत्साहित हो प्रतीक्षा कर रही थी। पर यह सब तो दूर, आपके दर्शन तक प्राप्त नहीं हो सके। सबको जैसे पाला मार गया है। इसलिए चैधजी की सलाह के अनुसार करना अच्छा होगा। आपकी जैसी आज्ञा होगी, ध्यवस्था कर ली जाएगी।"
"हाँ, सन्तोष है कि आपकी स्वीकृति और सम्मति मिल गयी। एक बात और है। अब इस हालत में हमें दोरसमुद्र में ही रहना होगा। चिण्णम दण्डनाथ जी को सोसेफस में ही रहना चाहिए । वेलापुरी की रक्षा के काम पर आपके पुत्र डाकरस जी को रखना होगा। यादवपुर में आपके बड़े पुत्र माचण दण्डनाथ जी तो हैं ही। फिलहाल इसी भाग में हमें अधिक बाधाएँ हैं। वैसे डाकरस दण्डनाथ जी जहाँ रहें वहीं उनके साथ राजकुमार रहते तो अच्छा होता लेकिन इन परिस्थितियों में ऐसा होना सम्भव नहीं।"
"डाकरस को यहीं बुलवा लें और वेलापुरी में किसी और को भेज दिया जाए"-बीच में ही मरियान ने कहा।
''वर्तमान परिस्थिति में राजकुमारों के शिक्षण से भी अधिक राष्ट्ररक्षा का कार्य हमारे लिए प्रधान है। इसलिए इस विषय में दूरदृष्टि रखकर सोचना चाहिए।'
"जैसी आपकी मर्जी।"
"हमारे साथ अभी किसी का रहना विशेष आवश्यक नहीं लगता। कुमार बल्लाल अब काफी अनुभव प्राप्त कर चुके हैं। फिर भी अनेक बातों में बराबरी के साथ उनसे बातें करना हमारे लिए कठिन हो जाता है। इसलिए अन्य किसी विश्वासपात्र व्यक्ति को बुलवाना होगा। वे व्यक्ति ऐसे रहें जैसे चिण्णम दण्डनाथ जी हैं। किसे बुलवाएँ?"
'प्रभु के दामाद हैम्माडी अरस जी आएँ तो नहीं बनेगा?"
"सगे-सम्बन्धियों को नहीं रखना चाहिए, दण्डनायक जी। उसमें भी दामाद को तो ऐसे सेवाक्षेत्र में रखना ही नहीं।" __ "तब तो सोचना होगा कि ऐसे और कौन हैं? प्रभु ने तो सोचा होगा?"
''सोचा तो है परन्तु उच्चस्तरीय राजकीय परिसरों में उस पर कैसी प्रतिक्रिया होगी, इस बात की हमें शंका हैं। इसलिए एंसी शंका ही न हो, ऐसी रीति से कार्य का निर्वाह हो तो अच्छा है। इसीलिए आपसे पूछा।"
"तत्काल कुछ भी नहीं सोच पा रहा हूँ। प्रधानजी से भी पूछा होगा प्रभु ने?"
"उनसे भी पूछेये। आप भी सोचें, क्योंकि पोय्सल राज्य के आप महादण्डनायक हैं। पिछली बार आपकी सलाह के बिना जब कुछ परिवर्तन किये
26 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो