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अध्याय ।
सुबोधिनी टीका। नहीं बिगाड़ सकता है। सभी पदार्थ द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावसे अपने २ स्वरूपमें ही स्थित हैं, यदि इन चारोंमेंसे किसी एककी अपेक्षासे भी पदार्थ दूसरे रूपमें आनाँय तो वह अपनी सीमासे बाहर हो जाँय । कोई भी पदार्थ क्यों न हो अपनी सीमाका उल्लङ्घन कभी किसी अंशमें नहीं कर सकता। जब ऐसा नियम है तो क्या कारण है कि जीव और पुद्गलमें व्याप्य व्यापक भाव सम्बन्ध न होनेपर भी मूर्तिमान् पुद्गल द्रव्य जीवके वैभाविक भावों में कारण हो जाता है । यदि विना किसी प्रकारके सम्बन्धके भी पुद्गलकर्म जीवके वैभाविक भावमें कारण हो जाता है तो उसी स्थलपर रहनेवाला धर्मादिक अपर द्रव्यभी जीवके विकारका कारण क्यों न माना जाय ? इसके उत्तरमें यदि यह कहा जाय कि सन्निकर्ष-सम्बन्ध विशेष होनेसे पुद्गलद्रव्य ही जीवके विभावका कारण होता है, धर्मादिक नहीं होते, तो भी यह दोष आता है कि उसी स्थानपर रहनेवाला सन्निकर्ष सम्बन्ध विशिष्ट विनसोपचयरूप पुद्गलपिण्ड जीवके विकारका कारण क्यों नहीं हो जाता है ?
उत्तर
सत्यं बद्धमबद्धं स्याचिद्व्यं चाथ मूर्तिमत् । स्वीयसम्बन्धिभिबद्धमबद्ध परबन्धिभिः ॥१०॥ बडाबडत्वयोरस्ति विशेषः पारमार्थिकः।
तयोर्जात्यन्तरत्वेपि हेतुमडेतुशक्तितः॥१०१॥ ___ अर्थ-आपने जो शंका उठाई है सो ठीक, परन्तु बात यह है कि सभी जीव पुद्गल बद्ध तथा अबद्ध नहीं होते किन्तु कोई बद्ध होते हैं और कोई अबद्ध होते हैं। संसारी जीव पुद्गल कर्मोंसे बँधे हुए हैं, मुक्त नहीं। इसी प्रकार पुद्गल द्रव्यमें भी ज्ञानावरणीय आदि कर्म परिणत पुद्गल द्रव्य ही जीवसे बँधे हुए हैं, अन्य ( पांच प्रकारकी. वर्गणाओंको छोड़कर ) पुद्गल नहीं । और भी जो बन्ध योग्य जीव व पुद्गल द्रव्य हैं, उनमें भी सभी जीव संसारकी समस्त कर्मवर्गणाओंसे एक साथ नहीं बंध जाते, और न समस्त कर्मवर्गणायें ही प्रत्येक जीवके साथ प्रतिसमय बँध जाती हैं, किन्तु जिस समय जिस जीवके जैसी कषाय होती है उसीके योग्य कर्मोंसे जीव बँध जाता है अन्य प्रकारकी कषायसे बँधने योग्य कर्मोंके साथ नहीं बँधता । इसलिये कोई पुद्गलद्रव्य जीवमें विकार करता है कोई नहीं करता । ऐसा भी नहीं है कि सांख्यमतकी तरह पुरुष (जीवात्मा) को सर्वथा शुद्ध मान लिया जाय और बन्धको केवल प्रकृति (कर्म)का ही धर्म मान लिया जाय तथा बद्धजीव और मुक्तजीवमें वास्तवमें कुछ अन्तर ही न माना जाय । और ऐसा भी नहीं है कि किसी द्रव्यमें दूसरे द्रव्यके निमित्तसे विकार सर्वथा हो ही नहीं सकता । ऐसा माननेसे पदार्थोका निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध ही उड़जाता है । और निमित्त नैमित्तिक संबंधके अभावमें किसी कार्यकी