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[ दूसरा
पंचाध्यायी ।
कैषाश्चिद्रव्यतः साङ्गः पुंवेदो भावतः पुनः । स्त्रीवेदः क्लबवेदो वा पुंवेदो वा त्रिधापि च ॥ १०९४ ॥ केषाञ्चित्क्लीवेदो वा द्रव्यतो भावतः पुनः । पुंवेदो क्लीषवेदो वा स्त्रीवेदो वा त्रिधोचितः ॥ १०९५ ॥ कचिदापर्ययन्यायात्क्रमादस्ति त्रिवेदवान् ।
ऐसे ही किन्हीके द्रव्य अथवा स्त्री वेद तीनों
कदाचिक्लीववेदो वा स्त्री वा भावात् कचित् पुमान् ॥ १०९६ ॥ अर्थ – कर्मभूमिमें होनेवाले मनुष्योंके, मानुषियोंके, तिर्यञ्चके और तिर्यश्चिनियोंके कर्मोदयके अनुसार तीनों ही वेद होते हैं । किन्हींके द्रव्य वेद तो पुंवेद वेद होता है अर्थात् उनके शरीर में पुरुषवेदका चिन्ह होता है, परन्तु भाव वेद उनके स्त्रीवेद, अथवा नपुंसक वेद होता है । अथवा द्रव्यवेद के अनुसार भाववेद भी पुरुषवेद ही होता है। इस प्रकार एक द्रव्यके होते हुए भाववेद कर्मोदयंके अनुसार तीनों ही हो सक्ते हैं। वेद तो नपुंसक वेद होता है परन्तु भाववेद पुंवेद, अथवा नपुंसक वेद ही हो सक्ते हैं । इसी प्रकार यह भी समझ लेना चाहिये कि किन्हींके होता है परन्तु भाव वेद पुंवेद अथवा नपुंसक वेद अथवा स्त्री वेद तीनों ही हो सक्ते हैं। कोई आपर्यय न्यायसे अर्थात् क्रमसे परिवर्तन करता हुआ तीनों वेदवाला भी हो जाता है, कभी भावसे नपुंसक वेदवाला, कभी स्त्रीवेदवाला और कभी पुरुष वेदवाला । इसका आशय यह है कि कोई तो ऐसे होते हैं जिनके द्रव्य वेदके समान ही भाव वेद होता है, कोई ऐसे हैं जिनके द्रव्य वेद दूसरा और भाव वेद दूसरा ही सदा रहता है जैसे कि जनखा हिजड़ा आदि । परन्तु कोई ऐसे होते हैं जिनके कर्मोदयके अनुसार भाव वेद वदलता भी रहता है । किन्तु वेद सदा सभी एक ही होता है और वह आ जन्म नहीं बदल सक्ता ।
द्रव्य वेद तो स्त्री वेद
त्रयोपि भाववेदास्ते नैरन्तर्योदयात्किल ।
नित्यंचाबुद्धि पूर्वाः स्युः कचिद्वै बुद्धिपूर्वकाः ॥ १०९७ ॥
अर्थ- ये तीनों ही भाव वेद निरन्तर कर्मेकि उदयसे होते हैं । किन्हींके अबुद्धि
पूर्वक होते हैं और किन्हींके बुद्धिपूर्वक होते हैं । भावार्थ - बुद्धिपूर्वक भाव उन्हें कहते हैं पूर्वक-जान करके स्त्रीत्व पुंस्त्व भावोंमें चित्तको लगाया जाता है । और है जहां पर मैथनोपसेवन की बाच्छा होती है वहा बाद्धपूर्वक भाव वद ह ।
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मात्र भी नहीं है पूर्वक भाव होते हैं एकेन्द्रिय लेकर जी पञ्चेन्द्रिय तक tath अबुद्धिपूर्वक ही भाव वेद होता है। केवल कर्मोदय मात्र है। तथा नवमें गुणस्थान तक जो ध्यानी मुनियोंके भाव वेद बतलाया गया है वह भी केवल कर्मोदय मात्र अबुद्धिपूर्वक ही है । जहाँ पर मैथुनोपसेवनकी वाञ्छा होती है वहीं बुद्धिपूर्वक भाव वेद है ।