Book Title: Panchadhyayi Uttararddh
Author(s): Makkhanlal Shastri
Publisher: Granthprakash Karyalay

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Page 309
________________ पञ्चाध्यायी। - Aw अर्थ-सम्पूर्ण क के उदयमें दो प्रकारकी शक्तियां हैं। एक सामान्य शकि, एक विशेषशक्ति । इस लिये उनका रस भी दो प्रकार ही होता है। __सामान्य शक्तिका स्वरूपसामान्याख्या ग्रंथा कृत्स्नकर्मणामेकलक्षणात् । जीवस्याकुलतायाः स्याद्धेतु पाकागतो रसः ॥१११३ ॥ अर्थ-समान्य शक्ति सभी कर्मोंकी एक ही है, और वह यही है कि-सम्पूर्ण काँका उदय रस जीवकी आकुलताका कारण है । भावार्थ-आठों ही कोंक उदयसे जीव व्याकुल होता है । कर्मोंका उदय मात्र ही जीवकी व्याकुलताका कारण है, और जहां व्याकुलता है वहां सुख कहां ? इसलिये सभी कर्मों में सामान्य शक्ति एक है, उसीसे सुख गुणका घात होता है। विशेष शक्ति उनमें भिन्न २ गुणोंके घात करनेकी है। एक पदार्थमें दो शक्तियां भी होती हैं इसीको दृष्टान्त पूर्वक दिखाते हैं। न चैतदप्रसिद्ध स्याद दृष्टान्तादिषभक्षणात् । दुःखस्य प्राणघातस्य कार्यद्वैतस्य दर्शनात् ॥ १११४॥ अर्थ-कर्मों में सामान्य और विशेष ऐसी दो शक्तियां हैं यह बात अप्रसिद्ध असिद्ध भी नहीं है । दृष्टान्त मी है-विष खानेसे दुःख भी होता है और प्राणोंका नाश भी होता. है। इसी प्रकार ज्ञानावरण कर्म ज्ञानका घात भी करता है और दुःख भी देता हैं। अन्यान्य कर्मों में भी यही बात है। एक ही विषमें दो कार्य देखनेसे कर्मों में भी दो कार्य भलीभांति सिद्ध हैं। सारांशकर्माष्टकं विपक्षि स्यात् सुखस्यैकगुणस्य च । अस्ति किञ्चिन्न कर्मक तद्विपक्षं ततः पृथक् ॥ १११५ ॥ अर्थ-इसलिये आठों ही कर्म सुख गुणके विपक्षी हैं, कोई जुदा खास कर्म सुख गुणका विपक्षी नहीं है। वेदनीय कर्म सुखका विपक्षी नहीं हैवेदनीयं हि कर्मकमस्ति चेत्तद्विपक्षि च। न यतोस्यास्त्यघातिस्वं प्रसिद्ध परमागमात् ॥ १११६ ॥ . अर्थ--यदि वेदनीय कर्मको सुख गुणका विपक्षी कर्म माना जाय तो भी ठीक नहीं है, क्योंकि जैन सिद्धान्तसे यह कर्म अघातिया प्रसिद्ध है। भावार्थ-वेदनीय कर्म अघातिया कर्म है, अघातिया कर्म अनुजीवी गुणोंका घात नहीं कर सक्ता है । सुख गुण

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