Book Title: Panchadhyayi Uttararddh
Author(s): Makkhanlal Shastri
Publisher: Granthprakash Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 315
________________ पश्चाध्यायी। [दूसरा अर्थ-चारित्र मोह कर्ममें भी स्वभावसे दो शक्तियां हैं-(१) असंयत (२) कषाय । शङ्काकारननु चैवं सति न्यायात्तत्संख्या चाभिवर्धताम् । यथा चारित्रमोहस्य भेदाः षविशतिः स्फुटम् ॥ ११३३ ॥ अर्थ-यदि कषाय और असंयतभाव दोनों चारित्र मोहके ही भेद हैं तो चारित्रमोहनीयकी संख्याका बढ़ना भी न्याय संगत है । पच्चीसके स्थानमें असंयत भावको मिलाकर छब्बीस भेद उसके होने चाहिये ? उत्तरसत्यं यजातिभिन्नास्ता पत्र कार्माणवर्गणाः । + आलापापेक्षयाऽसंख्यास्तत्रैवान्यत्र न कचित् ॥ ११३४ ।। नात्र तजातिभिन्नास्ता यत्र कार्माणवर्गणाः। किन्तु शक्तिविशेषोस्ति सोपि जात्यन्तरात्मकः ॥ ११३५ ॥ अर्थ-ठीक है, जहांपर भिन्न भिन्न जातियोंमें वटी हुई कार्माण वर्गणायें होती हैं, वहीं पर आलाप ( भेद ) की अपेक्षासे असंख्यात वर्गणायें भिन्न २ होती हैं । अथवा जहां भिन्न जातिवालीं वर्गणायें होती हैं वहीं पर आलापकी अपेक्षासे संख्या भेद होता है, जहां ऐसा नहीं होता वहां कर्मोंकी संख्या भी भिन्न नहीं समझी जाती है। यहां पर भिन्न जातिवालीं वर्गणायें नहीं हैं किन्तु एक चारित्र मोहनीयकी ही हैं इसलिये चारित्र मोहकी छव्वीसवीं संख्या नहीं हो सक्ती है परन्तु शक्ति भेद अवश्य है, वह भी भिन्न स्वभाव वाला है। भावार्थ-जहां पर जातिकी अपेक्षासे वर्गणाओंमें भेद होता है वहीं पर कौके नाम भी जुदे २ हो जाते हैं जैसे–मतिज्ञानावरण श्रुतज्ञानावरण आदि । परन्तु जहां पर जातिभेद नहीं है किन्तु शक्ति भेद है वहां पर कौकी नाम संख्या जुदी जुदी नहीं होती । जैसे-एक ही मतिज्ञानावरण क्षयोपशमके मेदसे अनेक भेदवाला है । दृष्टान्तके लिये धत्तुरको ही ले लीजिये । धत्तुरकी जड़ भिन्न काममें आती है उसके पत्ते भिन्न काममें आते हैं तथा उसके फल भिन्न काममें आते हैं परन्तु वृक्ष एक धत्तुरके नामसे ही कहा जाता है। इसलिये जहां पर शक्ति भेद होता है वहां पर नाम भेद नहीं भी होता । यदि विना जातिभेदके केवल शक्तिभेदसे ही नाम भेद माना जाय तो चारित्र मोहनीयका ही भेद-अनन्तानुवन्धी कषाय सम्यक्त्व और चारित्रको घात करनेकी शक्ति रखता है, उसके भेदसे भी चारित्र मोहनीयके छब्बीस भेद होने चाहिये । इसी प्रकार संज्वलन + 'आलापापेझया संख्या तत्रैवान्यत्र न कचित् ऐसा संशोधित पुस्तकमें पाठ है। यही ठीक प्रतीत होता है इसीलिये ऊपरसे दूसरा अर्थ लिखा गया है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338