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पश्चाध्यायी।
[दूसरा
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है। अर्थात् विग्रहगतिमें ही उच्च अथवा नीच कर्मका उदय प्रारंभ होजाता है, और जैसा कर्मका उदय होता है वैसी ही इस जीवको पर्याय मिलती है इसीलियेउस कर्मोदयके कारण ही उस जीवको जन्म समयसे ही संसार उच्च नीचका व्यवहार करने लगता है । लोकमें यह व्यवहार भी प्रसिद्ध है कि कोई आदमी यदि ब्राह्मण कुलमें जन्म लेकर शिल्पीका कार्य करने लगे तो लोग उसे यही कह कर पुकारते हैं कि यह जातिका तो ब्राह्मण है परन्तु हीन कर्म करता है, उसे हीन कर्म करते हुए भी उस पर्यायमें शुद्र कोई नहीं कहता है । यदि साक्षात् आचारणोंसे ही वर्ण व्यवस्था मान ली जाय तो उच्च गोत्र कर्म और नीच गोत्र कर्मका उदय ही निरर्थक है । कर्मोदयको निरर्थक मान लेनेसे संसारका सब रहस्य ही उठ जाता है । आयु कर्मका बन्ध नित्य होता है वह छूटता नहीं है और जीवको उस पर्यायमें नियमसे ले जाता है । यदि इसको भी अकिंचित्कर समझ लिया जाय तो फिर जीवका घूमना ही बन्द हो जाय परन्तु जब तक कर्म हैं तब तक ऐसा होना असंभव है। वे अपना शुभाशुभ फल देते ही हैं। दूसरी बात यह भी है कि एक मनुष्यने जीवनभरमें कोई काम न किया हो, वैसे ही पड़े २ आनंदसे जीवन विताया हो तो उस जीवनमें संसार उसे किस वर्णका कहकर पुकारेगा ! उससे उच्चताका व्यवहार किया जायगा या नीचताका ? क्योंकि उसने साक्षात् आचरण तो कोई किया नहीं है । विना साक्षात आचरणके वर्ण व्यवस्था नहीं मानने पालोंके मतसे उसे वर्ण रहित कहें अथवा चारों वर्णोसे अतिरिक्त कुल हीन- पञ्चमवर्णवाल, कहें ! क्योंकि उसके साथ उच्चता अथवा नीचताका कुछ न कुछ व्यवहार करना ही होगा। उस व्यवहारका आधार वहां आचरण तो है नहीं, इसलिये विना कुल. परम्परासे आई हुई उच्चता नीचताको स्वीकार किये किसी प्रकार काम नहीं चल सक्ता । जो लोग कुलागत वर्ण व्यवस्थाका लोप करते हैं वे अविचारितरम्य-कर्म विनयी साहसी हैं । आश्चर्य तो यह है कि ऐसे लोग भी माता पिताको उपदेश देते हुए कहा करते हैं यदि तुम योग्य पुत्र चाहते हो तो अपने भाव उन्नत रक्खो, तुम्हारे जैसे भाव होंगे पुत्रमें भी वे भाव होंगे, इस उपदेशसे स्वभावकृत संस्कारोंका ही प्राधान्य सिद्ध होता है । इसलिये गुण कर्मसे नहीं,
* यदि स्वभावकृत उच्चता नीचता न हो, और संस्कारोंको कारणता न मानी जाय तो भारतवासी क्यों लार्ड घरानों-राज घरानोंके शासकोंको चाहते हैं ? इसीलिये न, कि वे स्वभावसे उदारचेता होते हैं ? स्वभावसे जैसे कुलमें यह जीव उत्पन्न होता है वैसे मार्गपर स्वयं चलने लगता है, इस विषयमें एक दृष्टान्त है कि किसी जंगलमें एक गीदड़का बचा सिंहिनीके हाथ लग गया। सिंहिनीने उसे छोटा-प्यारा होनेके कारण पाल लिया । जब सिंहिनीके बच्चे पैदा हुए तब वह गीदड़ उन्हींके साथ खेलने लगा। एकवार सब बच्चे किसी दूसरे