Book Title: Panchadhyayi Uttararddh
Author(s): Makkhanlal Shastri
Publisher: Granthprakash Karyalay

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Page 312
________________ अध्याय। सुबोधिनीटीका। - MAANAAAAAAAAAAAAAAN ~ सक्रिय संयमका दूसरा भेदस्थावराणां च पञ्चानां त्रसस्यापि च रक्षणात् । असुसंरक्षणाख्यः स्यादद्वितीयः प्राणसंयमः ॥ ११२० ॥ अर्थ-सक्रिय संयमके दूसरे भेदका नाम असुसंरक्षण है उसीको प्राण संयम भी कहते हैं । वह पांच स्थावर और त्रस जीवोंकी रक्षा करनेसे होता है । प्रश्न- . ननु किं नु निरोधित्वमक्षाणां मनसस्तथा । संरक्षणं च किन्नाम स्थावराणां त्रसस्य च ॥ ११२१ ॥ अर्थ-मन और इन्द्रियों को रोकना तो क्या है और स्थावर तथा त्रस जीवोंकी रक्षा करना क्या है ? अर्थात् इन दोनोंका स्वरूप क्या है ? उत्तर-- सत्यमक्षार्थसम्बन्धाज्ज्ञानं नासंयमाय यत् । । तत्र रागादिबुद्धिर्या संयमस्तन्निरोधनम् ॥ ११२२ ॥ प्रसस्थावर जीवानां न वधायोद्यतं मनः । न वचो न वपुः कापि प्राणिसंरक्षणं स्मृतम् ॥ ११२३ ॥ अर्थ-इन्द्रिय और पदार्थके सम्बन्धसे जो ज्ञान होता है वह असंयम नहीं करता है किन्तु इन्द्रिय पदार्थके सम्बन्ध होने पर उस पदार्थमें जो रागद्वेष परिणाम होते हैं वे ही असंमयको करनेवाले हैं। उन रागद्वेषरूप परिणामोंको रोकना ही इन्द्रिय निरोष संयम है । तथा त्रस स्थावर जीवोंका मारनेके लिये मन वचन कायकी कभी प्रवृत्ति नहीं करना ही प्राण संयम है भावार्थ-इन्द्रिय संमय और प्राण संयम इन दोनों में इन्द्रिय संयम पहले किया जाता है, प्राण संयम पीछे होता है । उसका कारण भी यह है कि बिना इन्द्रिय संयमके हुए प्राण संयम हो नहीं सक्ता । इन्द्रियों लालसाओंका रुक जाना ही इन्द्रिय संयम कहलाता है। जब तक शक्तियोंकी लालसा नहीं रुकती तब तक जीवोंका रक्षण होना असंभव है। जितने अनर्थ होते हैं सब इन्द्रियोंकी लालसासे ही होते हैं * अभक्ष्य तथा हरितादि सजीव पदार्थोंका भक्षण भी यह जीव इन्द्रियों की लालसासे ही करता है । यद्यपि पुरुष जानता है कि कन्द मूलादि पदार्थोंमें अनन्त जीवराशि है, तथा अचार आदि पदार्थोंमें त्रस राशि भी है तथापि इन्द्रियोंकी तीव्र लालसासे उन्हें छोड़ नहीं सक्ता । इसलिये सबसे पहले इन्द्रिय संयमका धारण करनेकी बड़ी आवश्यकता है। बिना इन्द्रियोंको वशमें किये किसी प्रकारका धर्म निर्विघ्न नहीं पल सका है। इसी * मद्यमांसादि अभक्ष्य पदार्थोंके सेवन करनेवाले अनेक त्रसजीवोंका घात करते हैं,

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