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पश्चाध्यायी।
[दूसरा
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अर्थ-सूत्रोंके अर्थक विस्तारसे जीवके भाव असंख्यातलोक प्रमाण हैं। तथा उन भावोंकी जातियोंकी अपेक्षासे पांच भाव कहे गये हैं।
पांच भावोंके नामतत्रौपशमिको नाम भावः स्यात्क्षायिकोपि च । क्षायोपशमिकश्चेति भावोप्यौदर्यिकोस्ति नुः ॥९६६ ॥ पारिणामिकभावः स्यात् पञ्चेत्युद्देशिताः क्रमात् ।
तेषामुत्तरभेदाश्च त्रिपञ्चाशदितीरिताः ॥ ९६७ ॥
अर्थ-औपशमिकभाव, क्षायिकभाव, क्षायोपशमिकभाव, औदयिकभाव और पारिणामिकभाव ये मनुष्य ( जीव ) के पांच भाव क्रमसे कहे गये हैं। इनके त्रेपन उत्तरभेद भी कहे गये हैं । भावार्थ-ये पांच जीवके असाधारणभाव हैं। यद्यपि भेदकी अपेक्षासे असंख्यात लोकप्रमाण जीवके भाव हैं अथवा अनन्तभाव हैं पान्तु स्थूलरीतिसे इन्हीं पाचोंमें सब गर्भित होजाते हैं। जो जीवके चौदह गुणस्थान कहे गये हैं वे भी इन पांच भावोंसे बाहर नहीं हैं अथवा दूसरे शब्दों में यह कहना चाहिये कि इन पांच भावों में ही चौदह गुणस्थान बँटे हुए हैं ।* जीवके गुणोंमें सम्यग्दर्शन ही प्रधान गुण है, और उसके तीन भेदोंमेंसे पहले औपशमिक ही होता है इसलिये औपशमिक भावका पहले नाम लिया गया है । औपशमिककी अपेक्षासे क्षायिक भाववालोंका द्रव्य ( जीव राशी) असंख्यात गुणा है इसलिये औपशमिकके पीछे क्षायिकका नाम लिया गया है । क्षायिककी अपेक्षा क्षायोपशमिकका द्रव्य असंख्यात गुणा है, तथा उपर्युक्त दोनों भावोंके मेलसे यह होता है इसलिये तीसरी संख्या क्षायोपशमिकके लिये कही गई है। उन तीनोंसे औदयिक पारिणामिक भावोंका द्रव्य अनन्त गुणित है इसलिये अन्तमें इन दोनोंका नाम लिया गया है । औपशमिक और क्षायिक भाव सम्यग्दष्टिके ही होते हैं । मिश्र भाव भव्य और अभव्य दोनोंके होता है, परंतु इतना विशेष है कि भव्यके सम्यक्त्व और चारित्रकी अपेक्षासे भी होता है । अभव्यके केवल अज्ञानादिकी अपेक्षासे होता है। औदयिक और पारिणामिक ये दो भाव सामान्य रीनिसे सभी संसारी जीवोंके होते हैं। औपशमिक भाव दो प्रकारका है, क्षायिक भाव नौ प्रकारका है, क्षायोपशमिक भाव अठारह प्रकारका है, औदयिकभाव इक्कीस प्रकारका है, और पारिणामिक भाव तीन प्रकारका है। इसप्रकार ये जीवके त्रेपन भाव हैं इनका खुलासा ग्रन्थकार स्वयं आगे करेंगे ।
* जेहिं दुलक्खिजंते उदयादिसु संभवेहि भावहिं ।
जीवा ते गुणसण्णा णिद्दिहा सब्बदरसीहि ॥ औदायकादिक यथासंभव भावोंमें जीव पाये जाते हैं इसलिये उन भावोंका नाम ही गुणस्थान है। ऐसा सर्वज्ञ देवने कहा है।
गोमट्टसार।