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अध्याय । ]
सुबोधिनी टीका ।
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उनमें ६२ प्रकृतियां पुद्गल विपाकी हैं। पांच शरीरोंसे लेकर स्पर्श पर्यन्त * १० प्रकृतियां, तथा निर्माण, आताप, उद्योत, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, प्रत्येक साधारण, अगुरुलघु, उपघात परघात ये नाम कर्मकी ६२ प्रकृतियां पुद्गल विपाकी हैं इनका फल शरीरमें ही होता है । नरकादि चारों आयु भव विपाकी हैं। आयुका कार्य प्राप्त हुई पर्याय में नियमित स्थिति तक रोकना है । इसलिये आयुका फल नरकादि चारों पर्यायोंमें ही होता है। चार आनुपूर्वी प्रकृतियाँ क्षेत्र विपाकी हैं । आनुपूर्वी कर्म उसे कहते हैं कि जिस समय जीव पूर्व पर्यायको छोड़ कर उत्तर पर्याय में जाता है, उस समय जब तक वहां नहीं पहुंचा है, तब तक मध्यमें उस जीवका पहली पर्यायका आकार बनाये रक्खे । चार गतियां हैं इस लिये आनुपूर्वी प्रकृतियां भी चार ही हैं। जिस आनुपूर्वीका भी उदय होता है वह पहली पर्यायके आकारको रखती है । इसी लिये आनुपूर्वी प्रकृतियां क्षेत्र विपाकी हैं। इनका फल परलोक गमन करते समय जीवकी मध्य अवस्था में ही आता है । निम्न लिखित ७८ प्रकृतियां जीव विपाकी हैं। dattant २, गोत्रकी २, घातिया कर्मोंकी ४७ और २७ नाम कर्मकी । नाम कर्मकी २७ प्रकृतियाँ इस प्रकार हैं । तीर्थकर, उच्च्छास, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, यशस्कीर्ति, अयशस्कीर्ति, त्रस, स्थावर, शुभविहायोगति, अशुभ विहायोगति, सुभग, दुर्भग, नरकगति, तिर्यञ्चगति मनुष्यगति, देवगति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय जाति, ये प्रकृतियां जीव विपाकी हैं ।
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अंगोपात और शरीर नामकर्मके कार्य — अङ्गोपाङ्गं शरीरं च तद्भेदौस्तोष्यभेदवत् ।
_aauratत्त्रिलिङ्गानामाकाराः सम्भवन्ति च ॥ १०८२ ॥
अर्थ - उसी नाम कर्मके भेदोंमें एक अंगोपांग और एक शरीर नाम कर्म भी है । ये दोनों ही भेद नाम कर्मसे अभिन्न हैं । इन्हीं दोनोंके उदयसे स्त्रीवेद, पुंवेद और नपुंसक वेद : आकार होते हैं । भावार्थ - शरीर और अंगोपांग नाम कर्मके उदयसे इस जीवके शरीर और अंग तथा + उपांग बनते हैं, शरीरके मध्य तीनों वेदोंके आकार भी इन्हीं दोनों कम उदयसे बनते हैं । वेदोंसे यहां पर द्रव्य वेद समझना चाहिये ।
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* ५ शरीर, ३ आङ्गोपाङ्ग, ५ बन्धन, ५ संघात, ६ संस्थान, ६ संहनन, ८ स्पर्श, ५ रस, २ गन्ध, ५ वर्ण ।
+ णलया वाहूय तहा णियंव पुट्टी उरोय सीसोय । अद्वेष दु अंगाई देहे सेसा उवंगाई ॥
अर्थ- दो पैर, दो हाथ, नितम्ब, ( चूतड़ ), पीठ, पेट, शिर ये आठ तो अंग कहलावे हैं बाकी सब उपांग' कहलाते है। जैसे उंगलियां, कान, नाक, मुंह, आंखे आदि ।
गोमसार ।