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अध्याय । ]
सुबोधिनी टीका ।
वह लक्षण इस प्रकार है
तल्लक्षणं स्वापूर्वार्थविशेषग्रहणात्मकम् ।
एकोऽर्थो ग्रहणं तत्स्यादाकारः सविकल्पता ॥ ८३८ ॥ अर्थ - क्षायिकज्ञानका लक्षण इस प्रकार है- स्व- आत्मा और अपूर्व पढ़ार्थको विशेष रीतिसे ग्रहण करना। यहां पर अर्थ नाम पदार्थका है और ग्रहण नाम आकारका है । स्व और पदार्थ ज्ञानका ज्ञेयाकार होना ही ज्ञानमें सविकल्पता है । भावार्थ - जो ज्ञान अपने आपको जानता है साथ ही पर पढ़ार्थोंको जानता है परन्तु उपयोगसे उपयोगान्तर नहीं होता है उसीको क्षायिक ज्ञान कहते हैं । यद्यपि क्षायिक ज्ञानमें भी पदार्थोंके परिवर्तनकी अपेक्षासे परिवर्तन होता रहता है तथापि उसमें उद्मस्थ ज्ञानकी तरह कभी किसी पदार्थका और कभी किसी पदार्थका ग्रहण नहीं है । क्षायिक ज्ञान सभी पदार्थोंको एक साथ ही जानता है इसी लिये उसमें उपयोग संक्रान्तिरूप लक्षण घटित नहीं होता है परन्तु ज्ञेयाकार होनेसे वह सविकल्प अवश्य है ।
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ऐसे अविकल्पका सराग ज्ञानमें ग्रहण नहीं है— विकल्पः सोधिकारेस्मिन्नाधिकारी मनागपि । योगसंक्रान्तिरूपो यो विकल्पोधिकृताऽधुना ॥ ८३९ ॥
अर्थ — जो विकल्प क्षायिक ज्ञानमें घटित किया गया है वह विकल्प इस अधिकारमें कुछ भी अधिकारी नहीं है। यहां पर तो उपयोग के पलटने रूप विकल्पका ही अधिकार है । ऐसे विकल्पका अधिकार क्यों है ? -
ऐन्द्रियं तु पुनर्ज्ञानं न संक्रान्तिमृते क्वचित् ।
यतोप्यस्य क्षणं यावदर्थादर्थान्तरे गतिः ॥ ८४० ॥
अर्थ - यहां पर इन्द्रियजन्य ज्ञानका अधिकार है और इन्द्रिजन्य ज्ञान विना संक्रान्तिके कभी होता ही नहीं है । क्योंकि उसकी प्रतिक्षण अर्थसे अर्थान्तर में गति होती रहती है । भावार्थ - यहां पर विचार यह था कि सराग सम्यक्त्व सविकल्प है उसमें ज्ञानचेतना नहीं होती है किन्तु वीतराग सम्यक्त्वमें ही वह होती है । आचार्य कहते हैं कि उपर्युक्त कहना ठीक नहीं है, सविकल्प सम्यक्त्वमें भी ज्ञानचेतना होती है उसके होनेमें कोई बाधक नहीं है । यदि कहा जाय कि सराग सम्यक्त्व सविकल्प है इसलिये उसमें ज्ञानचेतना नहीं होती है इसके उत्तर में आचार्यका कहना है कि विकल्प नाम ज्ञानोपयोगके पलटनेका है । ज्ञानोपयोगका पलटना यह उसका स्वभाव है । अर्थात् वह उपयोग कभी निजात्मानुभव ही करता है और कभी वह बाह्य पदार्थों को भी जानता है । परन्तु वह ज्ञानचेतनामें किसी प्रकार बाधक नहीं हो सकता है। सराग सम्यग्दृष्टिके ज्ञानोपयोगका पलटन भी क्यों होता है, इसका कारण
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