________________
पञ्चाध्यायी।
__ अवुद्धि पूर्वक दुःख ही साध्य हैसाध्यं तन्निहितं दुःखं नाम यावदबुद्धिजम् । ...
कार्यानुमानतो हेतुर्वाच्यो वा परमागमात् । ३११ ॥ ___ अर्थ-जो छिपा हुआ-अबुद्धिपूर्वक दुःख है वही सिद्ध करने योग्य है। उसकी सिद्धि दो ही प्रकारसे हो सक्ती है, यातो कार्यको देखकर हेतु कहना चाहिये, अथवा परमागमसे उसकी सिद्धि माननी चाहिये।
भावार्थ-किसी अप्रत्यक्ष वस्तुके जाननेके लिये दो ही उपाय हैं । यातो उसका कार्य देख कर उसका अनुमान करना, अथवा आगमप्रमाणसे उसे मानना ।
. अनुमानमें दृष्टान्तअस्ति कार्यानुमानाकै कारणानु मितिः कश्चित् । दशेनान्नदपूरस्य देवो वृष्टो यथोपरि ॥३१२॥
अर्थ-कहीं पर कार्यको देखकर कारणका अनुमान होजाता है। जिस प्रकार किसी नाले ( छोटी नदी ) के बढे हुए प्रवाहको देखकर यह अनुमान कर लिया जाता है कि ऊपरकी ओर मेघ बर्षा हैं। बिना मेघके बरसे नदका प्रवाह नहीं चल सक्ता । इसी प्रकार कार्यसे उसके कारणका अनुमान कर लिया जाता है।
___ अबुद्धिपूर्वक दुःख सिद्धिका अनुमानअस्त्यात्मनो गुणः सौख्यं स्वतःसिद्धमनश्वरम् । घातिकर्माभिघातत्वादसहाऽदृश्यतां गतम् ॥ ३१३ ॥ सुखस्यादर्शनं कार्यलिङ्गं लिङ्गमिवात्र तत् ।।
कारणं तद्विपक्षस्य दुःखस्यानुमितिः सतः ॥ ३१४॥ .
अर्थ-आत्माका सुख गुण स्वाभाविक है, वह स्वतः सिद्ध है और नित्य है, परन्तु घातिया कमौके घातसे नष्टसा होगया है अर्थात् अदृश्य होगया है। वही सुखका अदर्शन (अभाव) कार्य रूप हेतु है । वह हेतु सुखके विपक्षी दुःखका ( जो कि आत्मामें मौजूद है ) अनुमान कराता है।
भावार्थ-आत्मामें कर्मोंके निमित्तसे सुख गुणका अभाव दीखता है। उस सुख गुणके अभावसे ही अनुमान कर लिया जाता है कि आत्मामें दुःख है । क्योंकि सुखका विपक्षी दुःख है । जब सुख नहीं है तब दुःखकी सत्ताका अनुमान कर लिया जाता है। यदि आत्मामें दुःस्व न होता तो आत्मीक सुख प्रकट होजाता। वह नहीं दीखता इसलिये दुःखका सद्भाव सिद्ध होता है बस यही कार्य-कारणभाव है। सुखका अदर्शन कार्य है उससे दुःम्वरूप कारणका बोध होता है।