Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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द्वितीय अध्याय । अर्थहीन दुःखित पुरुष, अल्प बुद्धि को गेह ॥
तासु क्रिया सब छिन्न हों, ग्रीष्म कुनदि जल जेह ॥ ११६॥ धनहीन पुरुष सदा दुःखी ही रहता है और सब लोग उस को अल्पबुद्धि का घर (मूर्ख) समझते हैं तथा धनहीन पुरुष का किया हुआ कोई भी काम सिद्ध नहीं होता है किन्तु उस के सब काम नष्ट हो जाते हैं-जैसे ग्रीष्म ऋतु में छोटी २ नदियां सूख जाती हैं ॥ ११६ ॥
धनी सबहि तिय जीत ही, सभा जु वचन विशाल ॥
उद्यमि लक्ष्मिाह जीतही, साधु सुवाक्य रसाल ।। ११७॥ धनवान् पुरुष स्त्रियों को जीत लेता है, वचनों की चतुराईवाला पुरुष सभा को जी। लेता है, उद्यम करने वाला पुरुष लक्ष्मी को जीत लेता है और मधुर वचन डालने वाला पुरुप साधु जनों को जीत लेता है ॥ ११७ ॥
दीमक मधुमाखी छता, शुक्ल पक्ष शशि देख ॥
राजद्रव्य आहार ये, थोड़े होत विशेख ॥ ११८ ॥ दीमक ( उदई), मधुमक्खी का छता, शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा, राजाओं का धन और आहार, ये पहिले थोड़े होकर भी पीछे वृद्धि को प्राप्त हो जाते हैं ॥११८॥
धन संग्रह पथ चलन अरु, गिरि पर चढ़न सुजान ॥
धीरे धीरे होत सब, धर्म काम हु मान ॥ ११९ ॥ हे मुजान ! धन का संग्रह, मार्ग का चलना, पर्वत पर चढ़ना तथा धर्म और काम आदि का सेवन, ये सब कार्य धीरे धीरे ही होते हैं ॥ ११९॥
अञ्जन क्षयहिँ विलोकि नित, दीमक वृद्धि विचार ॥
वन्ध्य दिवस नहिँ कीजिये, दान पठन हित कार ॥१२०॥ अंन के क्षय और दीमक के सञ्चय को देखकर-मनुष्य को चाहिये किदान, टन और अच्छे कार्यों के द्वारा दिन को सफल करे ॥ १२० ॥
क्रिया कष्ट करि साधु हो, विन क्षत होवै शूर ॥
मद्य पिये नारी सती, यह श्रद्धा तज दूर ॥ १२१ ॥ क्रियाकष्ट करके साधु वा महात्मा हो सकता है, विना घाव के भी शूर वीर हो १-- इन दोहे का सारांश यही है कि बुद्धिमान् पुरुष को सब कार्य विचार कर धीरे धीरे ही करने चाहियें-क्योंकि धनसंग्रह तथा धर्मोपार्जन आदि कार्य एकदम नहीं हो सकते हैं। २-दपिये अंजन नेत्र में ज़रा सा डाला जाता है लेकिन प्रतिदिन उस का थोडा २ खर्च होने से पहाड़ों के पहाड़ नेत्रों में समा जाते हैं-इसी प्रकार दीमक (जंतुविशेष ) थोड़ा २ बमाक का संग्रह करता है तो नी जमा होते २ वह बहुत बड़ा वल्मीक बन जाता है-इसी बात को सो कर मनुष्य को प्रतिदिन यथाशक्ति दान, अध्ययन और शुभ कार्य करना चाहियेक्योंकि उक्त प्रकार से थोड़ा २ करने पर भी कालान्तर में उन का बहुत बड़ा फल दीख पड़ेगा।
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