________________ 3. नन्दी : यह ग्रन्थ आगम साहित्य के अध्ययन में परिशिष्ट जैसा है। इसलिए इसे चूलिका-सूत्र भी कहा जाता है। इसमें 1 अध्ययन व 700 श्लोक परिमाण मूल पाठ है; जिसमें 57 गद्य-सूत्र और 97 पद्य-गाथाएँ हैं। द्रव्यानुयोगमय इस ग्रन्थ के रचनाकार आचार्य देववाचक माने जाते हैं। डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, डॉ.नेमिचन्द्र शास्त्री, मुनि पुण्यविजय, पं. दलसुख मालवणिया आदि के मतानुसार देववाचक देवर्द्धिक्षमाश्रमण से भिन्न हैं। 4. अनुयोगद्वार : अनुयोग का अर्थ है - व्याख्या या विवरण और द्वार का अर्थ है - प्रश्न। इस प्रकार प्रश्न या प्रश्नों के मनन द्वारा वस्तु के तह तक पहुँचने को अनुयोगद्वार कहते हैं।' दार्शनिक सिद्धान्तों के अलावा इस ग्रन्थ में सामाजिकसांस्कृतिक सामग्री भी पर्याप्त मिलती हैं। द्रव्यानुयोग प्रधान इस आगम में 4 द्वार और 1899 श्लोक प्रमाण मूल पाठ है; जिसमें 152 गद्य-सूत्र और 143 पद्य-सूत्र हैं। इसका रचना काल वीर निर्वाण संवत् 827 से पूर्व माना जाता है तथा आचार्य आर्यरक्षित इसके रचनाकार माने जाते हैं।' छेद-सूत्र श्रमण परम्परा का मुख्य आधार है इसका आचार-शास्त्र / आचार-संहिता के विवेचन को चार भागों में बाँटा गया हैं- उत्सर्ग, अपवाद, दोष और प्रायश्चित। इस प्रकार के विवेचन का समग्र विवरण छेद-सूत्रों में मिलता हैं। छेद शब्द पर आचार्य कुन्दकुन्द का कहना है कि सोना, बैठना, चलना, अदि क्रियाओं में साधक की जो अनायास प्रवृत्ति होती है, उसमें यदि असजगता रखी जाती है तो वह हिंसा रूप होती है और शुद्धोपयोग रूप मुनिधर्म के छेद (विनाश) का कारण होने से उसे छेद (अशुद्ध उपयोग रूप) कहा जाता है। प्रो. एच. आर. कापड़िया के अनुसार छेद का अर्थ छेदन है और छेद सूत्रों का अभिप्राय उन शास्त्रों से है, जिनमें श्रमणों द्वारा नियमों का अतिक्रमण कर देने पर उनकी वरिष्ठता (दीक्षा पर्याय) का छेदन करने वाले नियम होते हैं। अन्य अर्थ के अनुसार जिन शास्त्रों की शिक्षा केवल परिणत (योग्य व समर्थ) शिष्य को दी जा सकती है, अपरिणत या अतिपरिणत को नहीं, वे छेद-सूत्र कहे जाते हैं। छेद-सूत्रों में दोषों से बचने और दोष लग जाने पर प्रायश्चित का विधान होता है। इन छेद सूत्रों में अनुशासन के जो नियम प्राप्त होते हैं, उन्हें शासन, प्रशासन, सेना और प्रबन्ध में अनुशासन के लिए उत्तम मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है। डॉ. जैकोबी और शुबिंग के अनुसार (14)