________________ 6. यौधेय जाति के सिक्के तीन भागों में विभक्त हैं। उनमें से प्रथम प्रकार के सिक्के प्रचीन हैं और उन्हें ही जैन सिक्के माना गया है। उन पर वृषभ व हाथी का अंकन है। 7. ईस्वी सन् प्रथम शती के राजा भूमिकस और इनके उत्तराधिकारी क्षत्रप नहपान जैन थे तथा उन्होंने जैन प्रतीकों के अंकन से युक्त सिक्के जारी किये थे। 8. गौतमीपुत्र राजा शातकर्णी (प्रथम शती) को व्रती श्रावक माना जाता है। उनके सिक्कों में जैन प्रतीक अंकित हैं। 9. इसी प्रकार आन्ध्रवंशी तथा पल्लववंशी राजाओं ने भी जैन प्रतीकों से युक्त सिक्के जारी किये हैं। पल्लववंश का राजा महेन्द्रवर्मन जैन धर्मानुयायी था। 10. इसी प्रकार मध्यकाल के अनेकानेक राजाओं ने जैन प्रतीकों से युक्त सिक्के जारी करके जैन धर्म और उसके अहिंसादि सिद्धान्तों के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की है। इनके अतिरिक्त वर्तमान में भगवान महावीर के 2600वें जन्म-कल्याणक के उपलक्ष्य में सन् 2001 में भारत सरकार ने पाँच रुपये का सिक्का जारी किया। सिक्के पर एक ओर तत्वार्थ-सूत्र के अमर वाक्य 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' के साथ जैन-प्रतीक अंकित है और दूसरी ओर राष्ट्रीय चिह्न और मूल्य अंकित है। इस विवरण से कई बातें स्पष्ट होती हैं। जैसे अनेक राजाओं के शासनकाल का कोई भी सिक्का आज उपलब्ध नहीं है और अनेक के शासनकाल के एक-दो या कुछ सिक्के ही वर्तमान में प्राप्त होते हैं। निश्चित रूप से आगम काल और उससे पूर्व में हुए शासकों ने भी अपनी मुद्राओं पर अपनी धर्म-भावनाएँ अंकित की होंगी। हजारों वर्षों के दीर्घ कालखण्ड में उस समय की मुद्राओं का अनुपलब्ध होना स्वाभाविक भी है। इस बात की प्रबल संभावना इसलिए भी है कि उस काल में जैन धर्म का नेतृत्व क्षत्रिय और शासक वर्ग के हाथों में था। हालांकि सभी वर्गों और वर्गों के व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के जैन धर्म का पालन कर रहे थे। इन तथ्यों के आलोक में समता और अहिंसामूलक अर्थव्यवस्था की मौजूदगी का अनुमान लगाया जा सकता है। क्रय-शक्ति __ मुद्रा की क्रय-शक्ति वस्तुओं की उपलब्धता पर निर्भर करती है। सुलभ वस्तुएँ थोड़ी मुद्रा से अधिक मात्रा में पाई जा सकती हैं। जबकि कम सुलभ या (70)