________________ तम्बाकू, पानमसाला, चरस, भांग, गांजा, अफीम आदि नशीली चीजों का सेवन, नशीली दवाओं का सेवन आदि व्यसन समाज को खोखला बना रहे हैं। हम उदाहरण के तौर पर धूम्रपान/तम्बाकू-सेवन के आर्थिक तथ्यों को देखेंगे तो चौंक पड़ेंगे। व्यापारी और उद्योगपति अपने मुनाफे के चक्कर में जन-स्वास्थ्य की कोई फिक्र नहीं करते हैं। सुगन्धित तम्बाकू और गुटका उत्पादित करने वाली देश की छोटी-बड़ी 300 कम्पनियाँ वर्ष में 1200 करोड़ रुपयों का व्यापार करती हैं। इसके अतिरिक्त भारत के सिगरेट उपभोक्ता प्रतिवर्ष 23000 करोड़ रुपयों की सिगरेटें फूंक डालते हैं। 500 सिगरेटों के उत्पादन में एक पेड़ को अपनी जान गँवानी पड़ती है। वर्ष 1997-98 में देश की तीन बड़ी सिगरेट कम्पनियों ने केवल विज्ञापनों पर 257 करोड़ रुपये खर्च किये। भारत में प्रतिवर्ष करीब 3 करोड़ 50 लाख लोग तम्बाकू जनित बीमारियों के शिकार होते हैं और 7 लाख लोग मारे जाते हैं। तम्बाकू जनित बीमारियों के नियन्त्रण के लिए तम्बाकू-उद्योग से होने वाली आय से करीब 800 करोड़ रुपये अधिक खर्च होते हैं। सरकार को यह गलतफहमी है कि उसे सिगरेट उद्योग से प्रतिवर्ष 8 अरब रुपयों का राजस्व मिलता है। सच तो यह है कि इस उद्योग की वजह से उसे कैंसर के इलाज पर हर साल 30 अरब रुपयों से अधिक व्यय करना पड़ता है। __ व्यसन अर्थतन्त्र, लोकतन्त्र और जनस्वास्थ्य के लिए घातक होते हैं। गृहस्थाचार की निर्मल निर्दोष भूमिका के रूप में इनका त्याग परमावश्यक है। यह तथ्य है कि जैन समुदाय की सम्पन्नता की एक वजह व्यसन-मुक्त जीवन शैली है। मार्गानुसारी के गुणों का आर्थिक पक्ष ___गृहस्थाचार की भूमिका के रूप में सप्त व्यसन त्याग के साथ आचार्यों ने विविध सन्दों में आगम-वाणी के आधार पर अनेक नियमों और उपनियमों की 'स्थापना की हैं। उनमें श्रावक के इक्कीस गुणों की चर्चा होती रहती है। किंचित फेरबदल के साथ अन्य आचार्यों या विद्वानों ने भी ऐसे नियम-उपनियम बनाये हैं। उनमें आचार्य हेमचन्द्र द्वारा सुझाये गये मार्गानुसारी के 35 गुणों में सबका समावेश हो जाता है। इन गुणों में इतनी सारी बातें आ जाती हैं कि इन्हें जीवन के सफलता के सूत्र कह सकते हैं। आर्थिक दृष्टि से इन्हें 'जीवन में आर्थिक उन्नति के उपाय' अथवा 'व्यावसायिक सफलता के सूत्र' के रूप में देखा जा सकता है। यहाँ अर्थिक दृष्टि से मार्गानुसारी के 35 मुणों की चर्चा की जा रही है। (231)